आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि हमें गुस्सा नहीं आता, लेकिन जब कोई कुछ ग़लत बात बोल देता है तो हम अपना टेम्पर लूज़ कर जाते हैं | यानी लोग अपने गुस्से का इलज़ाम दूसरों पर डाल देते हैं कि ये तो दूसरे लोग हैं जिनके कारण हमें गुस्सा आता है | या कभी ऐसा भी होता है कि कोई बोल देता है “तुम बेवकूफ हो” और हम उसे सच मान बैठते हैं | हमारे मन में हीन भावना आ जाती है | हम अपने आपको निरर्थक समझने लगते हैं | ऐसा नहीं होना चाहिए |
कोई दूसरा आपके विषय में क्या सोचता है आप पर इस बात से कोई असर क्यों पड़े ? क्यों आप दूसरों की बातों से प्रभावित होते हैं ? आप जो हैं – जैसे भी हैं – वैसे ही हैं | किसी दूसरे के आपको बेवकूफ कहने से आप बेवकूफ नहीं हो जाते | ये उन दूसरे लोगों की धारणा है आपके विषय जो बहुत से कारणों से बन सकती है – सम्भव है किसी अन्य व्यक्ति ने उन्हें बेवकूफ़ कहा हो और उसका बदला लेने के लिए वे आपको बेवकूफ़ बोल रहे हैं | या फिर उनकी अपनी हीन भावना या कुछ भी हो सकता है | तो उस सबका असर आप पर होना ही नहीं चाहिए | आप जो हैं – जैसे भी हैं – वैसे ही हैं – और दूसरा व्यक्ति जैसा है वैसा है |
आप वैसे नहीं हैं जैसा दूसरे आपको देखना चाहते हैं | आप एक व्यक्तित्व हैं | आप दूसरों से बिल्कुल अलग हैं | कोई भी दो लोग एक जैसे नहीं हो सकते – न शक्ल सूरत में, न स्वभाव में, न गुणों में – जुड़वां बच्चों की बात अलग है – लेकिन उनके स्वभाव भी प्रायः एक जैसे नहीं होते | और कहा तो यहाँ तक जाता है कि एक ही शक्ल के सात लोग संसार के किसी भी कोने में हो सकते हैं – तो ये एक अलग बात है | कहने का मतलब यही है कि आपकी अपनी एक अलग पहचान है | आवश्यकता है अपनी उस पहचान को समझने की | आवश्यकता है अपना मूल्य जानने की | आप अपने महत्त्व खुद ही समझने लग जाएँगे तो दूसरे आपके विषय में उलटा सीधा बोलना बन्द कर देंगे और आपकी योग्यता को पहचानने लग जाएँगे |
एक प्रयोग करके देखिये | अगर कोई आपके लिए कुछ ग़लत बोलता है या आपको नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो एक लम्बी साँस लीजिये और मन में संकल्प कीजिए कि “हम पर कोई असर इस बात का नहीं पड़ता | हम इस बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे – कुछ भी रिएक्ट नहीं करेंगे – हम बिल्कुल शान्त रहेंगे…” और ऐसा संकल्प लेकर मुस्कुराइए और आगे बढ़ जाइए | विश्वास कीजिए, ऐसा करके आपको स्वयं अनुभव होगा कि अपने प्रति आपकी सारी हीन भावना – दूसरों के प्रति आपकी सारी नकारात्मकता एक ही बार में दूर हो जाएगी | और निरन्तर इस अभ्यास को करते रहने से कभी आप पर किसी की नकारात्मक बातों का असर होना ही बन्द हो जाएगा | एक बार करके तो देखिये ऐसा प्रयास…
तो अन्त में बस यही कहेंगे कि अपने प्रति उदार बनिए… दूसरों के अनुसार खुद को बदलने का प्रयास मत कीजिए… क्योंकि आप वैसे नहीं हैं जैसा दूसरे आपको देखना चाहते हैं या जैसे दूसरे हैं… आप स्वयं में एक व्यक्तित्व हैं…
आज के लिए बस इतना ही… अगली बार किसी दूसरे विषय के साथ आपके समक्ष होंगे… तब तक के लिए नमस्कार…
24 जुलाई को इन्द्रप्रस्थ विस्तार स्थित आईपैक्स भवन में महिलाओं के सर्वांगीण स्वास्थ्य की दिशा में प्रयासरत संस्था WOW India ने अपनी Sister Organization DGF और 6 Organics तथा श्री लक्ष्मणदास चैरिटेबल ट्रस्ट के साथ मिलकर हरियाली तीज और आज़ादी के अमृत महोत्सव का आयोजन किया | कार्यक्रम दिन में दो बजे Lunch के साथ आरम्भ हुआ | तीन बजे श्री कबीर शर्मा द्वारा लिखित, डॉ पूर्णिमा शर्मा द्वारा स्वरबद्ध किया तथा रूबी शोम और अमज़द खान द्वारा गाया हुआ वीरों की शौर्य गाथा को दर्शाता गीत “रणबाँकुरों तुम्हें नमन तुम्हें प्रणाम है” प्रस्तुत किया गया | उसके बाद विधिवत कार्यक्रम का आरम्भ हुआ |
संस्था की चेयरपर्सन डॉ शारदा जैन ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि सभी को आज़ादी के महत्त्व को समझना चाहिए | संस्था की महासचिव डॉ पूर्णिमा शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि जब आज़ादी मिलती है तो बहुत सारे उत्तरदायित्व भी साथ में लाती है – विशेष रूप से महिलाओं का उत्तरदायित्व यही है कि वे स्वयं अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें ताकि अपनी सन्तानों के स्वास्थ्य पर भी दे सकें – उन्हें अच्छे संस्कार दें ताकि स्वस्थ और संस्कारित भावी पीढ़ी का निर्माण हो सके – और हमारे वीर शहीदों के बलिदान सार्थक सिद्ध हो सकें |
कार्यक्रम में डॉ दीपाली भल्ला का गीत “चलो पेड़ लगाएँ” भी रिलीज़ किया गया | साथ ही WOW India की सभी शाखाओं के सदस्यों के द्वारा रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए |
नृत्य और गीतों के साथ ही एक प्रभावशाली प्रस्तुति रही सूर्य नगर शाखा की सदस्यों द्वारा प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के सन्दर्भ में प्रस्तुत लघु नाटिका – जिसका लेखन और निर्देशन किया था अनुभा पाण्डेय ने… महिलाओं से सम्बन्धित वस्तुओं के स्टाल्स भी लगाए गए जिनमें महिलाओं ने अपनी पसन्द की वस्तुओं की ख़रीदारी भी की |
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा “Teej Queen Contest” जिसमें तीज क्वीन बनीं WOW India की इन्द्रप्रस्थ विस्तार की सदस्य ऋतु भार्गव… इन्हें ही Best Ramp Walk का अवार्ड भी मिला… रनर अप और बेस्ट स्माइल का अवार्ड मिला डॉ मंजु बारिक को… बेस्ट हेयर का अवार्ड मिला डॉ आभा शर्मा को…
Teej Queen & Best Ramp Walk
Runner up & Best SmileBest Hair
इसके अतिरिक्त रूबी शोम को “रणबाँकुरों” गाने के लिए Excellence award दिया गया, रुक्मिणी नायर को Appreciation award दिया आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स के लिए, प्रीति नागपाल को Wow Woman Entrepreneur का अवार्ड दिया गया… WOW India की Cultural Secretary लीना जैन ने बहुत प्रभावशाली ढंग से मंच का संचालन किया…
पाँच फरवरी को वसन्त पञ्चमी का उल्लासमय पर्व था… ऋतुराज वसन्त के स्वागत हेतु WOW India ने साहित्य मुग्धा दर्पण के साथ मिलकर डिज़िटल प्लेटफ़ॉर्म ज़ूम पर दो दिन काव्य संगोष्ठियों का आयोजन किया… द्वितीय कड़ी 5 फरवरी को आयोजित की गई जिसमें दोनों संस्थाओं के सदस्यों स्वरचित रचनाओं का पाठ किया… काव्य पाठ प्रस्तुत वाले वाले सदस्यों को सम्मानस्वरूप एक प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किया गया है… सादर: डॉ पूर्णिमा शर्मा…
नमस्कार ! WOW India के सदस्यों की योजना थी कि कुछ कवि और कवयित्रियों की वासन्तिक रचनाओं से वेबसाइट में वसन्त के रंग भरेंगे, लेकिन स्वर साम्राज्ञी भारत
Lata Mangeshkar
कोकिला लता मंगेशकर जी के दिव्य लोक चले जाने के कारण दो दिन ऐसा कुछ करने का मन ही नहीं हुआ… जब सारे स्वर शान्त हो गए हों तो किसका मन होगा वसन्त मनाने का… लेकिन दूसरी ओर वसन्त भी आकर्षित कर रहा था… तब विचार किया कि लता दीदी जैसे महान कलाकार तो कभी मृत्यु को प्राप्त हो ही नहीं सकते… वे तो अपनी कला के माध्यम से जनमानस में सदैव जीवित रहते हैं…
नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा
मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे
और यही सब सोचकर आज इस कार्य को सम्पन्न कर रहे हैं… लता दीदी वास्तव में माता सरस्वती की पुत्री थीं… तभी तो उनका स्वर कभी माँ वाणी की वीणा जैसा प्रतीत होता है… कभी कान्हा की बंसी जैसा… तो कभी वासन्तिक मलय पवन संग झूलते वृक्षों के पत्रों के घर्षण से उत्पन्न शहनाई के नाद सरीखा… तभी तो नौशाद साहब ने अपने एक इन्टरव्यू में कहा भी था “लता मंगेशकर की आवाज़ बाँसुरी और शहनाई की आवाज़ से इस क़दर मिलती है कि पहचानना मुश्किल हो जाता है कौन आवाज़ कण्ठ से आ रही है और कौन साज़ से…” उन्हीं वाग्देवी की वरद पुत्री सुमधुर कण्ठ की स्वामिनी लता दीदी को समर्पित है इस पृष्ठ की प्रथम रचना… माँ वर दे… सरस्वती वर दे…
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
वीणा पर वह भैरव गा दे, जो सोए उर स्वतः जगा दे |
सप्त स्वरों के सप्त सिन्धु में सुधा सरस भर दे ||
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
गूँज उठें गायन से दिशि दिशि, नाच उठें नभ के तारा शशि |
Vasant Panchami
पग पग में नूतन नर्तन की चंचल गति भर दे ||
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
तार तार उर के हों झंकृत, प्राण प्राण प्रति हों स्पन्दित |
नव विभाव अनुभाव संचरित नव नव रस कर दे ||
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
वीणा पुस्तक रंजित हस्ते, भगवति भारति देवि नमस्ते |
मुद मंगल की जननि मातु हे, मुद मंगल कर दे ||
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
अब, वसन्त का मौसम चल रहा है… जो फाल्गुन मास से आरम्भ होकर चैत्र मास तक रहता है… फाल्गुन मास हिन्दू वर्ष का अन्तिम महीना और चैत्र मास हिन्दू नव वर्ष का प्रथम माह होता है… भारतीय वैदिक जीवन दर्शन की मान्यता कितनी उदार है कि वैदिक वर्ष का समापन भी वसन्तोत्सव तथा होली के हर्षोल्लास के साथ होता है और आरम्भ भी माँ भगवती की उपासना के उल्लास और भक्तिमय पर्व नवरात्रों के साथ होता है… तो प्रस्तुत हैं हमारे कुछ साथियों द्वारा प्रेषित वासन्तिक रचनाएँ… सर्वप्रथम प्रस्तुत है डॉ ऋतु वर्मा द्वारा रचित ये रचना… प्रेम वल्लरी
हवाओं को करने दो पैरवी,
हौले हौले फूलों को रंग भरने दो
बस चुपचाप रहो तुम,
प्रेम वल्लरी अंबर तक चढ़ने दो
किरनों आओ, आकर धो दो हृदय आंगन
अब यहां आकर रहा करेंगे, सूर्य आनन
धड़कनों को घंटनाद करने दो,
विवादों को शंखनाद करने दो
प्रेम वल्लरी…..
सौंदर्यमयी आएगी पहनकर / नीहार का दुशाला
तुम भी दबे पांव आना / अति सजग है उजाला
प्रेम प्रालेय को देह पर गिरने दो,
चश्म के चश्मों को नेह से भरने दो
प्रेम वल्लरी….
ये हृदयहीन जाड़ा, क्यूं गलाये स्वप्न?
तेरा अलाव सा आगोश, पिघलाये स्वप्न
कहीं दूर शिखरों पर बर्फ गिरती है, तो गिरने दो
जलती है दुनिया पराली सी, तो जलने दो
प्रेम वल्लरी…..
और अब, रेखा अस्थाना जी की रचना… सखी क्या यही है वसन्त की भोर?…
सखि क्या यही है वसन्त की भोर ?
खोल कपाट अलसाई नैनों से / देखा मैंने जब क्षितिज की ओर |
सुगंध मकरंद की भर गई / चला न पाई संयम का जोर ||
सखी कहीं यही तो नहीं वसन्त की भोर? |
फिर चक्षु मले निज मैंने / लगी तकन जब विटपों की ओर |
देख ललमुनियों का कौतुक / प्रेमपाश में मैं बंध गई
भीग उठे मेरे नयन कोर |
सखी यही तो नहीं वसन्त की भोर ||
फिर पलट कर देखा जब मैंने / बौराए अमुआ गाछ की ओर,
पिक को गुहारते वेदना में / निज साथी को बुलाते अपनी ओर |
देख उनकी वेदना, पीड़ा उठी मेरे पोर पोर |
सखी क्या यही है वसन्त की भोर ||
सुनकर भंवरे की गुंजार / पुष्प पर मंडराते करते शोर
अंतर भी मेरा मचल उठा |
सुन पाऊँ शायद मैं इस बार सखी
अपने प्रियतम के बोल |
लग रहा मुझको तो सखी यही है
अब वसन्त की भोर ||
मृदुल, सुगंधित, सुरभित बयार ने
आकर जब छुआ मेरे कोपलों को,
तन ऊर्जा से भर गया मेरा |
खुशी का रहा नहीं मेरा ओर-छोर |
अलि अब तो समझ ही गयी मैं,
यही तो है वसन्त की भोर ||
अब डॉ नीलम वर्मा जी का हाइकु…
बसंत-हाइकु
उन्मुक्त धरा
गा दिवसावसान
बसंत- गान
– नीलम वर्मा
अब पढ़ते हैं गुँजन खण्डेलवाल की रचना… पधार गए रति नरेश मदन…
सुप्त तितलियों ने त्याग निद्रा सतरंगी पंख दिए पसार,
सरसों ने फैलाया उन्मुक्त पीला आंचल, दी लज्जा बिसार
रंग बिरंगे पुष्पों से शोभित हुए उपवन – अवनि,
बालियों से अवगुंठित पहन हार, ऋतुराज ढूंढे सजनी,
झटक कर अपने पुराने वसन,
नूतन पत्र पंखों से वृक्ष करते अगुवाई,
आंख मिचौली खेलती धूप, स्निग्ध ऊष्म से देती बधाई,
लहलहाने लगे खेत, उपवन करते अभिनंदन,
ईख उचक उचक लहराते, झुक झुक करते वंदन,
आम्रमंजरी, नव नीम पल्लव, पीपल कर रहे नमन,
चिड़ियों की चहक बजाएं ढोल शहनाई,
प्रफुल्ल पक्षियों ने जल तरंग बजाई,
लचकती टहनियां झूमें, छेड़े जो मलय पवन,
आनंद, प्रेम रस में हिलोरे लेते धरती गगन,
कामदेव प्रिया पीत अमलतास बिछाए,
शीश पर धर मयूर पंख किरीट रतिप्रिय मुस्काए,
कुमकुमी उल्लास, गुनगुनाते प्रेम राग पधार रहे ऋतुराज मदन,
पधार गए रति नरेश मदन।।
और अब प्रस्तुत है अनुभा पाण्डे जी की रचना… लो दबे पाँव आ गया वसन्त है…
धरती की हरिता पर यौवन अनंत है,
दिनकर की छाँव में प्रस्फुटित मकरंद है, पल्लवित कोंपलों में मंद हलचल बंद है,
लो दबे पाँव आ गया बसंत है |
शुष्क पत्र के छोड़ गलीचे,
झुरमुट हटा निस्तेज डाल की,
उल्लास की पायल झनकाती,
नव-जीवन मदिरा छलकाती,
धनी चूनर पहने धरती सराबोर रसरंग है…
लो दबे पाँव आ गया बसंत है |
झूम रहीं डाली, कलियाँ,
पत्ते सर-सर कर डाल रहे,
खेतों में नाचे गेहूँ, सरसों,
नभचर उन्मुक्त हुए, गगन मानो तोल रहे,
धरती, बयार दोनों थिरक रहे संग हैं…
लो दबे पाँव आ गया बसंत है |
फिर से कोयल कूकेगी,
फिर से अमरायी फूटेगी,
ओट से जीवन झांकेगा,
शैथिल्य की तंद्रा टूटेगी,
सुप्त तम का क्षीण-क्षीण हो रहा अंत है…
लो दबे पाँव आ गया बसंत है |
नयनाभिराम, अनुपम ये दृश्य,
रति- मदन मगन कर रहे हों नृत्य,
देव वृष्टि कर रहे ज्यों पुष्य,
मधु-पर्व की रागिनी पर सृष्टि की लय- तरंग,
शीत के कपोल पर कल्लोल कर रहा बसंत है,
लो दबे पाँव आ गया बसंत है |
माँ झंकृत कर दो मन के तार,
अलंकृत हों उद्गार, विचार,
हे वीना- वादिनी! दे विद्या उपहार,
धनेश्वरी, वाक्येश्वरी माँ! प्रार्थना करबद्ध है…
लो दबे पाँव आ गया बसंत है |
लो दबे पाँव आ गया बसंत है ||
अब प्रस्तुत कर रहे हैं रूबी शोम द्वारा रचित ये अवधी गीत… आए गवा देखो वसन्त…
आय गवा देखो बसंत, पिया नहीं आए रे
देखो सखी मोर जिया, हाय घबराए रे -3
फूल गेंदवा से चोटी, मैंने सजाई रे,
देख देख दरपन मा खुद ही लजाई रे |
अंजन से आंख अपन आंज लिंहिं आज रे
पर मोर गुइयां देखो साजन अबहुं नहीं आए रे |
आय गवा देखो बसंत सखी पिया नहीं आए रे |
पियर पियर सारी और लाल च चटक ओढ़नी
पहिन मै द्वारे के ओट बार बार जाऊं रे |
आय गवा देखो बसंत पिया नहीं आए रे -3
पियर पियर बेर शिव जी को चढ़ाऊं रे
पूजा के बहाने अब तो पिया का पंथ निहारूं रे
आय गवा देखो बसंत पिया नहीं आए रे |
पांती लिख लिख भेज रही मै हृदय की ज्वाला जल रही
आ जाओ पिया फाग में रूबी तुमरी मचले रे |
आय गवा देखो बसंत पिया नहीं आए रे
देखो सखी मोर जिया हाय घबराए रे |
ये है नीरज सक्सेना की रचना… बसंत…
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
धरती से पतझड़ की सायें का अंत
बेलों में फूलों की खुशबू अनंत
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
रचा सरसों के खेतों में बासंती रंग
इठलाई अमुआ की डाली बौरों के संग
कोयलियां कि कुह कुह जगावें उमंग
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
बहे मंद मंद पवन लेके भीनी सुगंध
घटी सर्दी की चादर कुहासें का अंत
दिनकर की आभा से चमचम दिगंत
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
गूंजे भौरें की गुंजन मधुप चखें मरकंद
देख मौसम के रंग जुड़े प्रेम के प्रसंग
जगे आशा की किरणें जगे भाव जीवंत
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
ये रचना श्री प्राणेन्द्र नाथ मिश्रा जी की है… आनन्द हो जीवन में…
नीरसता थी, नीरव था विश्व
हर ओर मौन छाया तब तक
मां सरस्वती की वीणा से
गूंजी झंकार नहीं जब तक |
अभिलाषा! ले आ राधातत्व
जीवन हो जाए कृष्ण भक्त,
शारदे की वीणा झंकृत हो
आलोक ज्ञान रस धरा सिक्त |
हो, कुसुम कली का कलरव हो
मन मारे हिलोरें दिशा दिशा
ढूंढती फिरे अमावस को
उत्सुक हो कर ज्योत्सना निशा |
झूमे पलाश, करे मंत्र पा
आहुति दे पवन, लिपट करके
नृत्यांगना बन कर वन देवी
नाचे पीपल से सिमट कर के |
यह पर्व है या यह उत्सव है
पावन मादकता है मन में
छूती वसंत की गलबहियां
कहतीं, आनंद हो जीवन में!
अब पढ़ते हैं नीरज सक्सेना जी की रचना… आया वसन्त…
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
धरती से पतझड़ की सायें का अंत
बेलों में फूलों की खुशबू अनंत
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
रचा सरसों के खेतों में बासंती रंग
इठलाई अमुआ की डाली बौरों के संग
कोयलियां कि कुह कुह जगावें उमंग
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
बहे मंद मंद पवन लेके भीनी सुगंध
घटी सर्दी की चादर कुहासें का अंत
दिनकर की आभा से चमचम दिगंत
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
गूंजे भौरें की गुंजन मधुप चखें मरकंद
देख मौसम के रंग जुड़े प्रेम के प्रसंग
जगे आशा की किरणें जगे भाव जीवंत
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
और अन्त में, डॉ रश्मि चौबे की रचना… देखो सखी, आया बसंत…
यहाँ मौन निमंत्रण देता, देखो ,सखी आया बसंत !
धरती का यौवन देख सखी, फिर मुस्काया बसंत |
यहाँ मौन निमंत्रण देता, देखो, सखी आया बसंत |
वीणा वादिनी की धुन पर, कोकिला पंचम स्वर में गाती,
गुलाब सा चेहरा खिलाए, कोपलों से मेहंदी रचाती,
सरसों की ओढ़ चुनरिया, मलयगिरि संग चली है,
आम्र की डाल बौराई है, जैसे कंगना पहन चली है,
और स्वर्णिम रश्मियों से, नरमाई, कुछ शरमाई सी,
धरती का यौवन देख सखी, फिर मुस्काया बसंत |
हरियाली का लहंगा देखो, कितने रंगों से सजाया है,
पीली-पीली चोली देखो, गेंदों ने हार पहनाया है,
पाँव में छोटे फूल बिछे, जैसे कालीन बिछाया है,
देखो सब मदहोश हुए हैं, मदन ने तीर चलाया है,
आज वसुधा ने दुल्हन बन, बसंत से ब्याह रचाया है,
यहां मौन निमंत्रण देता, देखो फिर मुस्काया बसंत |
चलो सखी हम नृत्य करें, आओ यह त्योहार मनाते हैं,
मन सप्त स्वरों में गाता है, पग ठुमक- ठुमक अब जाता है,
राधा -श्याम की मुरली में, मेरा हृदय रम जाता है |
गुप्त नवरात्रों में माँ दुर्गे ने, योगियों के सहस्रार खिलाए है,
आ चल विवाह के मंडप में सखी, आत्मा को परमात्मा से मिलाएं |
गुँजन खण्डेलवाल जी की आज की प्रस्तुति – सिन्धु ताई माई के आदिवासियों के पुनर्वास की प्रक्रिया में भीख माँगकर बच्चों को पालने से लेकर पद्मश्री बनने तक की कहानी…
अभी सन् 2022 में प्रविष्ट ही हुआ था की 4 जनवरी को समाचार पढ़ा, सिंधु ताई नहीं रहीं | वज्रपात सा हुआ कि कितने सारे बच्चे एक साथ अनाथ हो गए | थोड़ा बहुत उनके बारे में पढ़ा सुना था | पर के बी सी की एक कड़ी में महानायक अमिताभ बच्चन का उनको पैर छूकर सम्मान देना और सदा सिर को पल्लू से ढक कर रखते हुए उनका मुस्कुराता अपनत्व भरा चेहरा याद हो आया | स्त्रीत्व के सभी गुण ममत्व, मर्यादा, गरिमा और आत्मविश्वास से भरपूर थीं वो |
वर्धा के बेहद गरीब चरवाहे परिवार में अवांछित रूप में जन्मी वो चिंदी (चिंडी मराठी में) कहलाई गईं | सन् 1948 में उनका जन्म हुआ था | विपरीत परिस्थितियों के कारण पढ़ाई में गहन रुचि रखने के बावजूद वे केवल चौथी कक्षा तक पढ़ सकीं | 12 वर्ष की उम्र में उनका विवाह उनसे लगभग 20 वर्ष बड़े व्यक्ति से करवा दिया गया | उनकी पहली संतान का जन्म तबेले में हुआ जब वे 20 वर्ष की थी क्योंकि उनके पति ने उन्हें घर से निकल दिया था | मायके वालों ने सहारा नहीं दिया तो भटकते हुए वो चिकलदरा तक जा पहुंची | यहां भी अपने स्वाभाविक गुण अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाते हुए आदिवासियों के पुनर्वास में मदद की |
अपने स्वयं के बच्चे को पालते हुए उन्हें स्टेशन पर एक और अनाथ बच्चा मिला जिसे उन्होंने अपना लिया | वो भीख मांग कर उन्हें पालती रहीं और उनके ‘बच्चों’ की संख्या बढ़ती गई | उनकी दिली इच्छा थी कि वे उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा व आश्रय दें सकें |
अपने शुरुआती दिन उन्होंने प्लेटफार्म पर बिताए व रातें श्मशान में क्योंकि वही स्थान उन्हें सुरक्षित लगा | धीरे धीरे स्वयं की बचत और संगठनों की मदद से अनेक बच्चों के आश्रय स्थल उन्होंने स्थापित किए | यहां बच्चों को नौकरी या काम धंधे में लग जाने तक रहने की स्वतंत्रता मिली | उनके पाले अनेक युवा देश – विदेश में कार्यरत है |
सिंधु ताई को डी. वाय. पाटिल इंस्टीट्यूट द्वारा मानद डॉक्टरेट भी दी जा चुकी है | उनकी बायोपिक ‘मी सिंधु ताई सपकाल’ 2010 लंदन फिल्म फेस्टिवल में वर्ल्ड प्रीमियर के लिए चुनी गई |
700 से भी अधिक पुरस्कारों से सम्मानित सिंधु ताई ने सारी राशि अनाथ बच्चों के घर बनाने में लगा दी | 2021 में वे राष्ट्रपति कोविद द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित हुई |
इनके पति वृद्धावस्था में इनके पास आए तो सहृदयता का परिचय देते हुए उन्हें भी आश्रय दिया |
यूं हीं नहीं मिलती राही को मंज़िल,
With orphan children
एक जुनून सा दिल में जगाना होता है |
पूछा चिड़िया से कैसे बना आशियाना
बोली – भरनी पड़ती है उड़ान बार-बार
तिनका तिनका उठाना होता है |
बाल दिवस पर जन्मी सिंधु ताई ने बाल गोपालों के लिए जीवन समर्पित कर दिया | संघर्षों के मध्य मार्ग बनाती और बताती, माई सभी के लिए प्रेरणा है | भावपूर्ण श्रद्धांजलि | जय हिंद!
गुँजन खण्डेलवाल जी की आज की प्रस्तुति – छुटनी देवी के झारखण्ड की शेरनी बनने से लेकर पद्मश्री बनने तक की कहानी…
इक्कीसवीं सदी में जब तकनीक की दुनिया में हम कहां से कहां पहुंच गए हैं पर मानसिकता में बदलाव आज भी धीमी गति के समाचार की तरह ही है | अंधविश्वास, रूढ़िवादिता और अशिक्षा से झारखंड जैसे बहुत से राज्य अपने यहां इनसे रिलेटेड दुर्घटनाओं को रोक पाने में असहाय से हैं | पिछले दो दशक में तकरीबन पंद्रह सौ से अधिक महिलाएं ‘डायन प्रथा’ का शिकार हो काल कवलित हो चुकीं हैं | झारखंड के सराय केला – खरसोवा जिले के बीरबांस गाँव की रहने वाली छुटनी देवी की कहानी इसी अंधविश्वास से जन्मी है |
सितम्बर 1995 की घटना है, अपने ससुराल में ये सुखपूर्वक रह रही थी कि पड़ोस में रहने वाली एक लड़की बहुत बीमार हुई | ईर्ष्यावश या अज्ञान या अंधविश्वास कहें कि इन पर ‘डायन’ होने का आरोप लगाकर दंड स्वरूप 500 रुपए का जुर्माना वसूला गया | उसके बाद भी अगले दिन 40-50 लोगों ने इन्हें घर से घसीटा, मारा पीटा और मैला भी फेंका | इस सब की टीस आज भी उनके चेहरे पर लगी चोट के दाग में उभर आती है |
पति ने भी साथ छोड़ दिया तो अपने 3 बच्चो के साथ रातोरात ये उफनती खरकई नदी पार करके मायके आ गई | कुछ दिन बाद छुटनी देवी की माँ की मृत्यु हो गई और मजबूरन ये पेड़ के नीचे झोपड़ा बनाकर रहने लगी | मेहनत मजदूरी कर किसी तरह बच्चों का पालन पोषण करती रहीं |
1996-97 में भाग्य से इनकी मुलाकात ‘फ्लैक’ – फ्री लीगल एडवाइजरी कमेटी के सदस्यों से हुई जिससे इनकी कहानी मीडिया द्वारा चर्चित हुई | इन पर नैशनल
Chutni Mahato – Padma Shree Award
ज्योग्राफिक सोसायटी ने एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई | अब छुटनी देवी ने अपने जैसी ‘डायन’ करार कर दी जाने वाली महिलाओं की मदद की मुहिम छेड़ दी है |
छुटनी देवी आज ‘आशा’ के पुनर्वास केंद्र की निदेशक के रूप में काम कर रहीं हैं | अपने जैसी 65 से अधिक महिलाओं को ये ‘बलि’ होने से पूर्व पुनर्जीवन दे चुकी हैं | कहीं से भी ऐसी प्रताड़ना आदि की सूचना मिलते ही इनकी टीम आरोपियों के खिलाफ लीगल एक्शन लेने पहुंच जाती है | आज वे झारखंड की शेरनी कहलाती हैं |
अशिक्षित होने पर भी ये हिंदी, बंगला व उड़िया भाषा में माहिर हैं | अपने बच्चों को इन्होंने सुशिक्षित किया है | प्रताड़ित व निर्धन परिवार के कम से कम 10 से 15 लोगों को वो प्रतिदिन अपने खर्च से भोजन कराती हैं, इसमें कोई भी शासकीय मदद नहीं मिलती है |
छुटनी देवी उदहारण है उस साहसी महिला का जो जुल्म का शिकार बनी पर प्रतिकार स्वरूप अपने जैसी पीड़िताओं का सम्बल बन समाज की रूढ़िवादी व अंधविश्वासी सोच से लड़ रही हैं | नारी का ये ‘काली रूप’ भी वंदनीय है जहां वो कुप्रथा के राक्षस का उन्मूलन कर रही है | जय हिंद!
गुँजन खण्डेलवाल जी की आज की प्रस्तुति – मंजूनाथ यानी पद्मश्री मंजम्मा जोगती की मंजूनाथ से पद्मश्री मंजम्मा जोगती बनने तक की यात्रा की कहानी…
हम और आप विस्मयपूर्वक उस क्षण को निहार रहे थे जब मंजम्मा जोगती जी ने गरीमापूर्वक नृत्य मुद्रा में राष्ट्रपति कोविद जी का अभिवादन किया | बाद में उन्होंने बताया कि मैंने उनकी बुरी नजर उतारने का भी उपक्रम किया |
जी हां इन ट्रांसजेंडर्स को प्रायः शादी ब्याह या बच्चों के जन्म होने पर कुछ पैसे की मांग करते हुए पहचानते आए हैं | मंजूनाथ से मंजम्मा जोगती बनने की यात्रा बहुत बहुत कष्टप्रद थी | ट्रांसजेंडर्स सबसे पहले घर, फिर समाज में हमेशा से नकारे गए हैं |
मंजम्मा बताती हैं कि स्कूल के प्रारंभिक दिनों से, अपने हाव भाव से उपहास का पात्र बनती रहीं | यहां तक कि उन्होंने आत्महत्या तक का प्रयास किया | पर शायद उन्हें बहुत ऊपर उठना था | ऐसे ही एक बार, एक पिता पुत्र की जोड़ी ने उनका ध्यान आकर्षित किया, जिसमें पिता गायन करते व पुत्र नृत्य कर रहा था | ये था जोगप्पा समुदाय द्वारा किया जाने वाला देवी येलम्मा को प्रसन्न करने हेतु जोगती नृत्य |
Manjamma Jogati during a performance
मंजम्मा जी की नृत्य में रुचि बढ़ी तो उन्हें कालव्वा नाम के बड़े लोक कलाकार से मिलवाया गया | उनके सान्निध्य में वे मंझती गई | ज्योति नृत्य की आज सबसे बड़ी पहचान मंजम्मा ही है, पर वे कहती हैं सच पूछिए तो ये नृत्य मैंने इसलिए नही सीखा कि मेरा बहुत मन था वरन इसलिए कि अपनी भूख से लड़ सकूं |
कर्नाटक के कल्लूकंब गांव में इनका जन्म हुआ, पर इनके ट्रांसजेंडर होने का पता लगते ही इन्हें घर से निकल कर भीख तक मांगनी पड़ी जिसको भी कई बार छीन लिया जाता था | एक दिन छह लोगों द्वारा उनके साथ दुष्कर्म की भी घटना हुई | पर उस पौराणिक पक्षी फीनिक्स की तरह, जो पूरा जल जाने के बाद अपनी ही राख से पुनर्जीवित हो उठता है, मंजम्मा ने कभी हार नहीं मानी |
Manjamma Jogati an inspiration
पिछले 35 वर्षों में वे एक हजार से अधिक नृत्य प्रस्तुतियां दी चुकी हैं | 2019 में वो कर्नाटक जनपद अकादमी की पहली ट्रांस वुमन प्रेसिडेंट बनी | अभावों, तिरस्कार और सोशल स्टिग्मा के दायरे से बाहर आना और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होना निःसंदेह गौरवपूर्ण है | आज उनकी बायोग्राफी ‘नाडुवे सुलिवा हेन्नु’ हावेरी जिले के स्कूलों व कर्नाटक विश्वविद्यालय के सिलेबस का अंग है | थिएटर कलाकार, नृत्यांगना, गायन व सोशल एक्टिविस्ट के रूप में अनेक पुरस्कारों से सम्मानित मंजम्मा चाहती हैं ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति समाज की सोच व रवैये में बदलाव और साथ ही उनके जैसे लोगों के लिए नौकरी व काम करने की सुविधाएं |
इकबाल के कहे शेर ‘ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है’, का ख़याल हो आया! जय हिन्द!
कुतुबमीनार से ऊँचा है यह किला, राजा की चिता पर बैठकर रानी ने दी थी जान
जोधपुर का मेहरानगढ़ किला 120 मीटर ऊंची एक चट्टान पहाड़ी पर निर्मित है | इस तरह से यह किला दिल्ली के कुतुबमीनार की ऊंचाई (73मीटर) से भी ऊंचा है | किले के परिसर में सती माता का मंदिर भी है | 1843 में महाराजा मान सिंह का निधन होने के बाद उनकी पत्नी ने चिता पर बैठकर जान दे दी थी | यह मंदिर उसी घटना की
Inside the Mehrangarh Fort
स्मृति में बनाया गया था | .
आसमान से कुछ यूं नज़र आता है जोधपुर का ये खूबसूरत क़िला
Aerial view of Mehrangarh Fort
मेहरानगढ़ किला एक पहाड़ी पर बनाया गया जिसका नाम ‘भोर चिड़िया’ बताया जाता है | ये क़िला अपने आप में जोधपुर का इतिहास देख चुका है, इसने युद्ध देखे हैं और इस शहर को बदलते भी देखा है | .
10 किलोमीटर में फैली है किले की दीवार
इस किले के दीवारों की परिधि 10 किलोमीटर तक फैली है | इनकी ऊंचाई 20 फुट से 120 फुट तथा चौड़ाई 12 फुट से 70 फुट तक है | इसके परकोटे में दुर्गम रास्तों वाले सात आरक्षित दुर्ग बने हुए थे | घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं | किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार दरवाजे, जालीदार खिड़कियां हैं | .
500 साल से पुराना है यह किला
जोधपुर शासक राव जोधा ने 12 मई 1459 को इस किले की नींव डाली और महाराज जसवंत सिंह (1638-78) ने इसे पूरा किया | इस किले में बने महलों में से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत
View from Mehrangarh Fort
खाना आदि | इन महलों में भारतीय राजवंशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है | .
1965 के युद्ध में देवी ने की थी इसकी रक्षा
राव जोधा को चामुंडा माता में अथाह श्रद्धा थी | चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी रही हैं | राव जोधा ने 1460 में मेहरानगढ़ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की | माना जाता है कि 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान सबसे पहले जोधपुर को टारगेट बनाया गया | माना जाता है कि इस दौरान माता के कृपा से यहां के लोगों का बाल भी बांका नहीं हुआ था | .
किले के छत पर रखे तोपों से होती थी 6 किलोमीटर के क्षेत्र की रक्षा
Handprints of Sati in Mehrangarh Fort
इस किले के दीवारों पर रखे भीमकाय तोपों से आस-पास का छह किलोमीटर का भू-भाग सुरक्षित रखा जाता था | किले के दूसरे दरवाजे पर आज भी पिछले युद्धों के दौरान बने तोप के गोलों के निशान मौजूद हैं | .
आज भी मौजूद हैं रानियों के आत्मदाह के निशान
अंतिम संस्कार स्थल पर आज भी सिंदूर के घोल और चांदी की पतली वरक से बने
हथेलियों के निशान पर्यटकों को उन राजकुमारियों और रानियों की याद दिलाते हैं |
आँवले के गुणों के विषय में तो हम सभी जानते हैं | और ठण्ड के मौसम में जब ताज़ा ताज़ा आँवला आता है तब तो कई तरह से उसे काम में लिया जाता है | इसी तरह से आज हम बनाते हैं आँवले का हलवा… स्वास्थ्यवर्द्धक भी और खाने में स्वाद भी…
सामग्री :
आधा किलो आँवला
चीनी आधा किलो (पर यह आपके स्वाद पर भी निर्भर करता है)
एक टुकड़ा दालचीनी
एक छोटी इलायची
एक लौंग लें पीस कर पाउडर बना कर रख लें
एक बड़ा चम्मच देसी घी |
विधि :
आँवले को थोड़ा पानी डालकर स्टीम दें | तीन स्टीम के बाद उतार कर, ठण्डा होने पर उसकी गुठली अलग कर उसे मिक्सी में पीस लें | कढ़ाई गर्म कर उसमें घी डालें और पीसे आँवले को खूब भूनें |
इधर चीनी की एक तार की चाशनी बनाकर तैयार रखें | जब आँवले का पानी सूख जाए तब उस चाशनी को आँवले के पेस्ट में डालकर चलाएँ | फिर चुटकी भर जो आपने मसाला बनाया था डालकर खूब चलाएँ | सूखने पर उतार लें |
बर्फी की विधि :
अब अगर आप इसी पेस्ट में भुना हुआ सिंघाड़े का आटा मिला देंगे तो यह थोड़ा कड़ा पड़ जाएगा | इन दोनों को अच्छे से मिलाएँ | उसे आप थाली में घी लगा कर जमाकर बर्फी का आकार दे सकती हैं | ऊपर से ड्राईफ्रूट्स से डेकोरेट भी कर सकती हैं |
फायदे :
इसमें प्रचुर मात्रा में आयरन, कैल्शियम, व विटामिन सी होता है | इसे आप रोटी, पराठे या फिर ब्रेड में लगाकर बच्चों को दे सकती हैं | यह रक्त की कमी की पूर्ति कर आँखों की रोशनी के लिए भी फायदेमंद है | नियमित उपयोग से बाल झड़ने बंद हो जाते हैं |
Different uses of Amla
थोड़ा कसैला अवश्य रहता है पर गुणकारी सोने के समान है |
शुगर पेशेंट्स चीनी का उपयोग सोच समझ कर करें |
बुजुर्गों की कहावत :
बुजुर्गों का कहा और आँवले का खाया बाद में नजर आता है |
सामाजिक दायित्व :
कार्तिक मास भर संपन्न व्यक्ति को किसी न किसी रूप में आँवले का दान गरीबों को अवश्य करें क्योंकि वे खरीद कर नहीं खा पाते | छठपूजा में भी आँवला चढ़ता है और प्रसाद रूप में सभी को दिया भी जाता है |
एक आँवले का गुण एक तोले सोने के समान है |
किसी भी प्रकार की मेरी त्रुटि के लिए क्षमा👏हम फिर मिलेंगे आँवले के साथ किसी अन्य रूप में |
वैतूल निवासी गुँजन खण्डेलवाल जी WOW India की ऐसी सदस्य हैं जो वैतूल में रहते हुए भी संस्था से जुडी हुई हैं और संस्था के Online कार्यक्रमों में नियमित रूप से
Gunjan Khandelwal
भाग लेती रहती है… English Scholar और अंग्रेज़ी की ही प्रोफ़ेसर होने के साथ ही हिन्दी भाषा में गहरी रूचि रखती हैं और हिन्दी भाषा की बहुत अच्छी और प्रभावशाली कवयित्री होने के साथ ही एक सुलझी हुई लेखिका भी हैं… बहुत से सम सामयिक विषयों पर अपनी सुलझी हुई राय रखती हैं… कुछ ऐसे व्यक्तित्वों के विषय में इन्होंने लिखना आरम्भ किया है जो जन मानस पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं… इससे पहले की ये कहीं इतिहास के पन्नों में गुम हो जाएँ… ताकि हम और आप इनसे कुछ प्रेरणा प्राप्त कर सकें… इनसे कुछ सीख सकें… प्रस्तुत है इनकी ये रचना… यद्यपि इस महान व्यक्तित्व के विषय में आज बहुत लोग परिचित हैं, किन्तु आज हम इसके विषय में गुँजन जी की दृष्टि से देखने का प्रयास करेंगे… डॉ पूर्णिमा शर्मा…
क्यों भई तुम्हारी कलम को भी कोरोना हो गया था क्या ? कब तक ‘क्वारनटाइन’ रहेगी ?”
बात उपहास में पूछी गई, पर लगा शायद पिछले दहशत भरे वक्त का ‘कोरोना इफेक्ट’ तन मन और सभी एक्टिविटीज को कहीं न कहीं प्रभावित तो कर ही गया है | इस बार दीपावली कुछ कुछ उत्साह भरी रही की अपनों से मिलना जुलना हुआ, पर कितने घरों की शोक की पहली दीपावली मन को व्यथित कर गई | खैर…
जीवन तो आगे बढ़ता ही है | ऐसे में सन 2021 के पद्म पुरस्कारों की सूची के कुछ नाम और परिचय बहुत प्रेरक लगे | साथ ही इन पुरस्कारों की ‘क्रेडिबिलिटी’ को बढ़ा गए | महिलाएँ जहाँ कहीं की भी हों, जो भी हासिल करती हैं वो उनके लिए सदा से धारा के विपरीत तैरने जैसा होता है | ये बहुत कंट्रोवर्शियल हो सकता है पर…
Mrs. Tulsi Gowda
जाने भी दीजिए ना ! पर इस समय जिस सम्मान और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जंगल की पगडंडियों से चल कर राष्ट्रपति भवन के ‘रेड कार्पेट’ तक नंगे पांव जिन्होंने ये सफ़र तय किया है वे हैं श्रीमती तुलसी गौड़ा जी | कर्नाटक में हलक्की जनजाति से संबंध रखने वाली तुलसी गौड़ा जी होनाली गांव के बेहद ही गरीब परिवार की हैं | यहां तक की वो कभी विद्यालय भी नहीं जा सकीं | प्रकृति के प्रति अधिक लगाव होने के कारण उनका अधिक समय जंगल में ही बीता और उनका पौधों और जड़ी बूटियों का ज्ञान विस्तृत होता गया | आज 77 वर्ष की आयु में वो ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट’ के रूप में विख्यात हैं | पिछले 60 वर्षों में उन्होंने तीस हजार से अधिक वृक्ष लगाए हैं | उनके प्रयासों को पहले भी इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड, राज्योत्सव अवॉर्ड और कविता मेमोरियल जैसे अवार्डो द्वारा सराहना मिल चुकी है | वे वन विभाग में कार्यरत हैं जहां वे लगातार पौधों के बीज एकत्र करती रहती हैं, गर्मी तक उनका रखरखाव करते हुए उपयुक्त समय पर जंगल में बो देती हैं |
अपने पारंपरिक सूती आदिवासी वस्त्र में राष्ट्रपति कोविद जी से पुरस्कार ग्रहण करने वाली तुलसी गौड़ा जी अपनी सादगी और पर्यावरण मित्र के रूप में नई पीढ़ी से उत्साह पूर्वक अपना ज्ञान और अनुभव बांटती है | आशा है उनके द्वारा रोपित ये बीज आगे भी अंकुरित व पल्लवित होते रहेंगे | जय हिंद |