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Pujan Samagri for the Worship of Ma Durga

Katyayani Dr. Purnima Sharma
Katyayani Dr. Purnima Sharma

माँ दुर्गा की उपासना के लिए पूजन सामग्री

साम्वत्सरिक नवरात्र चल रहे हैं और समूचा हिन्दू समाज माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना में बड़े उत्साह, श्रद्धा और आस्था के साथ लीन है | इस अवसर पर कुछ मित्रों के आग्रह पर माँ दुर्गा की उपासना में जिन वस्तुओं का मुख्य रूप से प्रयोग होता है उनके विषय में लिखना आरम्भ किया है | कल अपनी अल्पबुद्धि से कलश तथा कलश स्थापना और वन्दनवार तथा यज्ञादि में प्रयुक्त किये जाने वाले आम्रपत्र और आम्र वृक्ष की लकड़ी और जौ के विषय में लिखने का प्रयास किया था | आज आगे…

आज हम बात करते हैं दीपक की | किसी भी पूजा में दीपक का बहुत महत्त्व होता है | पूजा में कहा जाता है ““भो दीप त्वम् ब्रह्मस्वरूप: अन्धकारनिवारक:, इमां मया कृतां पूजां गृहाण तेजो प्रर्द्धय”…” इत्यादि इत्यादि | अन्धकार – सबसे बड़ा अन्धकार तो अज्ञान का ही होता है, गले सड़े ऐसे रीति रिवाज़ों का होता है जो मानव समाज को बेड़ियों में जकड़े रहते हैं और इसी कारण से मानव मात्र की प्रगति में बाधक होते हैं, दुर्भावों का होता है | तो समस्त प्रकार के अन्धकार को दूर भगाने की प्रार्थना दीप प्रज्वलन के समय की जाती है |

माँ भगवती की उपासना में तथा अन्य भी पूजा अर्चना में प्रायः घी का अखण्ड दीप प्रज्वलित करने की प्रथा है | गौ घृत हो तो अत्युत्तम, अन्यथा कोई भी घी चल सकता है | दीप प्रज्वलित करने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, नकारात्मक ऊर्जाएँ समाप्त होती हैं तथा आस-पास का वातावरण शुद्ध हो जाता है | दीप प्रज्वलन के समय मन्त्र बोले जाते हैं:

शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसम्पदा |

शात्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोSस्तु ते ||

दीपो ज्योति परम ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दान: |

दीपो हरतु में पापं सन्ध्यादीप नमोSस्तु ते ||

अर्थात, सुख और कल्याण करने वाले, आरोग्य प्रदान करने वाले, धन सम्पत्ति प्रदान करने वाले तथा शत्रुओं की बुद्धि का विनाश करने वाले दीप को हम नमस्कार करते हैं | स्पष्ट है कि व्यक्ति के मन से – विचारों से – अज्ञान तथा नकारात्मकता का अन्धकार जब छंट जाएगा तभी वह कुछ सकारात्मक और क्रियात्मक दिशा में प्रयास कर सकेगा | और इस सकारात्मकता के कारण उसका मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा – तथा मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो शारीरिक स्वास्थ्य तो स्वयं ही ठीक रहेगा | दीपक की ऊँची उठती लौ किसी भी प्रकार अज्ञान को – चाहे वह अज्ञान का हो, अशिक्षा का हो, नकारात्मकता का हो – कैसा भी अज्ञान हो – मिटाकर जीवन में निरन्तर कर्मशील रहने तथा उन्नति के पथ पर अग्रसर रहने की प्रेरणा देती है |

अखण्ड दीप को पूजा स्थल के आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण पूर्व दिशा में रखना शुभ माना जाता है | दीप एक साधक के लिए साधना में सहायक नेत्र और हृदय ज्योति का भी प्रतीक है |

Deepak
Deepak

दीप प्रायः गौ के देसी घी से प्रज्वलित किया जाता है | यदि उपलब्ध न हो तो तिल अथवा सरसों के तेल से भी दीप प्रज्वलित कर सकते हैं – किन्तु रिफायंड का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए – न पूजा में और न ही भोजन बनाने में | गाय से प्राप्त हर वस्तु में पोषक तथा स्वास्थ्यवर्धक तत्व उपस्थित रहते हैं – चाहे वह दूध हो, गौ मूत्र हो, गाय का गोबर हो अथवा गाय के दूध से निर्मित पदार्थ हों जैसे घी, दही, मक्खन इत्यादि | इसीलिए पञ्चामृत में भी गाय के ही दूध, घी तथा दही का प्रयोग किया जाता है | साथ ही गाय के घी में बहुत से ऐसे तत्व भी पाए गए हैं जो रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं | संस्कृत में घी को घृत कहा जाता है – जिसका अर्थ होता है सिंचित करने वाला, आलोकित करने वाला, उज्ज्वल करने वाला | इसी प्रकार तिल के तेल में भी तिल के औषधीय गुण निहित होते हैं, जैसे : यह मधुर होता है, वातशामक होता है, प्रकृति इसकी गर्म होती है तथा यह भी स्निग्धता प्रदान करता है | सरसों के तेल में भी इसी प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं | इसीलिए दीप प्रज्वलन तथा यज्ञादि के लिए गौ घृत सबसे अधिक उपयुक्त माना जाता है | और यदि न उपलब्ध हो सके तो तिल अथवा सरसों के तेल का प्रयोग करने की सलाह विद्वान् लोग देते हैं |

आज चैत्र शुक्ल तृतीया को भगवती के चंद्रघंटा रूप की उपासना का विधान है | भगवती का ये रूप सबका मंगल करे तथा सभी के जीवन तथा हृदयों से समस्त प्रकार के अन्धकार का उन्मूलन करे और सबको स्वास्थ्य प्रदान करे… यही कामना है…

________________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा 

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Navaratri Special Falahari Recipes

नवरात्रि स्पेशल – फलाहारी रेसिपीज़

जैसा कि सब ही जानते हैं चैत्र नवरात्र चल रहे हैं और हर घर में माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जा रही है | आज चैत्र शुक्ल तृतीया – यानी तीसरा नवरात्र है – देवी के चन्द्रघंटा रूप की उपासना का दिन | चन्द्रः घंटायां यस्याः सा चन्द्रघंटा – आह्लादकारी चन्द्रमा जिनकी घंटा में स्थित हो वह देवी चन्द्रघंटा के नाम से जानी जाती है – इसी से स्पष्ट होता है कि देवी के इस रूप की उपासना करने वाले सदा सुखी रहते हैं और किसी प्रकार की बाधा उनके मार्ग में नहीं आ सकती |

नौ दिन चलने वाले इस पर्व में लगभग प्रत्येक घर में फलाहार ही ग्रहण किया जाएगा | हम पिछले कुछ दिनों से अपने WOW India के सदस्यों द्वारा भेजी हुई भारतीय परम्परा के अनुसार बनाए जाने वाले फलाहारी पकवानों की रेसिपीज़ आपके साथ साँझा कर रहे हैं | इसी क्रम में आज हम फिर से दो रेसिपीज़ प्रस्तुत कर रहे हैं… पहली रेसिपी है दही भल्लों की और दूसरी एक ख़ास क़िस्म के शरबत की… तो, पहले खाने का कार्य हो जाए… जी हाँ, भल्ले… जिन्हें बड़े भी कहा जाता है… हम लोग मूँग की दाल, उड़द की दाल वगैरा के भल्ले तो अक्सर खाते ही हैं… लेकिन व्रत में तो ये खाए नहीं जा सकते… तो क्यों न कुट्टू ले आटे में लौकी मिलाकर उसके भल्ले बनाए जाएँ…? कैसे…? आइये सीखते हैं रेखा अस्थाना जी से… और फिर उन्हें पचाने के लिए आँवले का शरबत… जो हमें सिखाएँगी अर्चना गर्ग… डॉ पूर्णिमा शर्मा…

लौकी के भल्लों के लिए सामग्री…

  • लौकी… आधा किलो

    Dahi Balla
    Dahi Balla
  • कुट्टू का आटा एक कटोरी (कुट्टू का आटा सदैव छानकर ही इस्तेमाल करें)
  • दही… आधा किलो
  • सेंधा नमक… स्वादानुसार
  • भुना जीरा… दो स्पून
  • कटी हरी मिर्च… स्वादानुसार
  • अदरख यदि खाते हो तो – हमने आपसे पहले भी बताया है कि आवश्यक नहीं आप ये सारी चीज़ें इस्तेमाल करें, वही चीज़ें इस्तेमाल करें जो आपके घर में खाई जाती हैं
  • रिफाइंड ऑयल… तलने के हिसाब से

विधि…

लौकी छीलकर कद्दूकस कर लें | फिर उसका पानी निचोड़ लें | निचोड़ी हुई लौकी को जीरा और हरी मिर्च के साथ एक चम्मच रिफाइंड कढ़ाई में डालकर उसे पका लें और फिर ठंडा करके उसमें कुट्टू का आटा, सेंधा नमक और अदरख मिलाकर पेड़े का आकार देकर नानस्टिक में गुलाबी सेंक कर प्लेट पर रख लें |

इधर दही को फेंटकर उसमें नमक, भुना पिसा जीरा व हरी मिर्च तथा हरी धनिया मिलाकर तैयार रखें | जब व्रत खोलने का समय हो उससे दस मिनट पूर्व प्लेट में सजी लौकी के पेड़ों पर दही डालकर सर्व करें |

इनको वाराणसी में उपवासी दही बड़े कहा जाता है | इसे खाने से तन -मन दोनों ही स्वस्थ रहता है | पेट भी ठीक रहता है | इसी तरह कच्चे पपीते के भी भल्ले बनाए जा सकते हैं |

इनके साथ यदि इमली या अनारदाने की सोंठ हो या हरी चटनी भी हो तो स्वाद और अधिक बढ़ जाएगा…

_________रेखा अस्थाना

 

आंवले का शरबत

अभी हमने बहुत सारी व्रत की रेसिपी सीखी | आज हम आपको बताने जा रहे हैं आंवले का शरबत जो कि व्रत में पिया जा सकता है | यह सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद है | आंवले का शरबत बनाना बहुत ही आसान है | चलिए देखते हैं कि आंवले का शरबत कैसे बनाते हैं…

सामग्री…

Amle ka Sharbat
Amle ka Sharbat
  • एक कप आंवले का रस
  • दो कप चीनी
  • कुछ पुदीने के पत्ते
  • थोड़ा सा काला नमक
  • थोड़ा सा भुना जीरा
  • एक कप पानी

बनाने की विधि…

सबसे पहले हमने आंवले का एक कप जूस निकाला | आंवले का जूस निकालने के लिए आंवलों को महीन कद्दूकस में कस कर महीन जाली के कपड़े से छान छान कर कसके निचोड़ लीजिये |

अब कढ़ाई में चीनी और पानी डालकर उसे उबालने रख दीजिये | जब वह अच्छी तरह से उबल जाए तो उसमें चीनी मिलाकर गैस बंद कर दे और उसे ठंडा होने के लिए रख दें | जब वह बिल्कुल ठंडा हो जाए तो उसे कांच की बोतल में भरकर फ्रिज में भरकर रख दें | यह लगभग 2 से 3 महीने तक फ्रिज में चल सकता है | जब आपके घर में कोई आए या आपको खुद पीना हो तो ग्लास में चार चम्मच आंवले का शरबत डाल दें और कुछ क्रश किया हुआ बर्फ और पानी मिला दे | आप चाहे तो इसको सोडे में भी सर्व कर सकते हैं | सर्व करते समय इसमें थोड़ा सा काला नमक थोड़ा सा भुना जीरा और चार पांच पत्ते पुदीने के डालकर आप इसे सर्व करें यह बहुत ही स्वादिष्ट शरबत होगा |

आंवले में भरपूर मात्रा में विटामिन सी, कैल्शियम और कैंसर के बचाव के लिए एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं | आंवले का जूस अल्सर की रोकथाम में बहुत गुणकारी है | वजन कम करने के लिए आंवला बहुत फायदेमंद है | आंख की रोशनी और बालों को काला करने के लिए यह एक रामबाण का काम करता है | साथ ही शरीर को ठंडक पहुँचाता है |

__________________अर्चना गर्ग

तो बनाइये लौकी के भल्ले और साथ में आनन्द लीजिये आंवले के शरबत का… माँ चन्द्रघंटा के रूप में भगवती सभी की रक्षा करें और सभी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करें… डॉ पूर्णिमा शर्मा…

 

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नवरात्रों में माँ दुर्गा की उपासना के लिए पूजन सामग्री

साम्वत्सरिक नवरात्र आरम्भ हो चुके हैं | इस अवसर पर नौ दिनों तक माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है | कुछ मित्रों ने आग्रह किया था कि माँ दुर्गा की

Katyayani Dr. Purnima Sharma
Katyayani Dr. Purnima Sharma

उपासना में जिन वस्तुओं का मुख्य रूप से प्रयोग होता है उनके विषय में कुछ लिखें | तो, सबसे पहले तो बताना चाहेंगे कि हम एक छोटी सी अध्येता हैं… इतने ज्ञानी हम नहीं हैं कि इस प्रकार की चर्चाएँ कर सकें… किन्तु मित्रों के आग्रह को टाला भी नहीं जा सकता… इसलिए जो भी कुछ अल्पज्ञान हमें है उसी के आधार पर कुछ लिखने का प्रयास हम कर रहे हैं…

नवरात्रों के पावन नौ दिनों में दुर्गा माँ के नौ स्वरूपों की पूजा उपासना बड़े उत्साह के साथ की जाती है – चाहे चैत्र नवरात्र हों अथवा शारदीय नवरात्र | माँ भगवती को प्रसन्न करने के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष सामग्रियों से उनकी पूजा की जाती है | यद्यपि माँ क्योंकि एक माँ हैं तो जैसा कि हमने कल भी अपने लेख में लिखा था, साधारण रीति से की गई ईशोपासना भी उतनी ही सार्थक होती है जितनी कि बहुत अधिक सामग्री आदि के द्वारा की गई पूजा अर्चना | साथ ही जिसकी जैसी सुविधा हो, जितना समय उपलब्ध हो, जितनी सामर्थ्य हो उसी के अनुसार हर किसी को माँ भगवती अथवा किसी भी देवी देवता की पूजा अर्चना उपासना करनी चाहिए… वास्तविक बात तो भावना की है… भावना के साथ यदि अपने पलंग पर बैठकर भी ईश्वर की उपासना कर ली गई तो वही सार्थक हो जाएगी… तथापि, पारम्परिक रूप से जो सामग्रियाँ माँ भगवती की उपासना में प्रमुखता से प्रयुक्त होती हैं उनका अपना प्रतीकात्मक महत्त्व होता है तथा प्रत्येक सामग्री में कोई विशिष्ट सन्देश अथवा उद्देश्य निहित होता है…

सर्वप्रथम बात करते हैं कलश, आम्रपत्र और जौ की | यद्यपि इस विषय में एक लेख पहले भी प्रस्तुत कर चुके हैं | किन्तु आज के सन्दर्भ में, पुराणों में कलश को सुख-समृद्धि,

ऐश्वर्य और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है | मान्यता है कि कलश में सभी ग्रह, नक्षत्रों एवं तीर्थों का निवास होता है | घट स्थापना करते समय जो मन्त्र बोले जाते हैं उनका संक्षेप में अभिप्राय यही है कि घट में समस्त ज्ञान विज्ञान का, समस्त ऐश्वर्य का तथा समस्त ब्रह्माण्डों का समन्वित स्वरूप विद्यमान है | किसी भी अनुष्ठान के समय घट स्थापना के द्वारा ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का आह्वाहन करके उन्हें जागृत किया जाता है ताकि साधक को अपनी साधना में सिद्धि प्राप्त हो और उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण हों | साथ ही घट स्वयं में पूर्ण है | सागर का जल घट में डालें या घट को सागर में डालें – हर स्थिति में वह पूर्ण ही होता है तथा ईशोपनिषद की पूर्णता की धारणा का अनुमोदन करता प्रतीत होता है “पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते” | इसी भावना को जीवित रखने के लिए किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के समय घट स्थापना का विधान सम्भवतः रहा होगा | नवरात्रों में भी इसी प्रकार घट स्थापना का विधान है | इसके अतिरिक्त ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, सभी नदियों-सागरों-सरोवरों के जल, एवं समस्त देवी-देवता कलश में विराजते हैं | वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व का कोण जल एवं ईश्वर का स्थान माना गया है और यहाँ सर्वाधिक सकारात्मक ऊर्जा रहती है | इसलिए पूजा करते समय देवी की प्रतिमा तथा कलश की स्थापना इसी दिशा में की जाती है |

आम्रपत्र तथा आम की टहनी और हवन के लिए आम की लकड़ी समिधा के रूप में प्रयोग की जाती है | माना जाता है कि आम के पत्ते वायु व जल में उपस्थित अनेक हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करने की सामर्थ्य रखते हैं | साथ ही आम के पत्तों से सकारात्मक ऊर्जा का संचार माना जाता है | बाहर से प्रवाहित होने वाली वायु भी आम के पल्लवों का स्पर्श करके स्वास्थ्यवर्धक हो जाती है | आम के वृक्ष पर प्रायः कीड़े नहीं लगते | इसकी सुगन्ध बहुत मनमोहक होती है – इतनी कि इसके पत्तों की सुगन्ध से देवी देवता भी प्रसन्न होते हैं | द्वार पर आम्रपल्लव की वन्दनवार लगाने से समस्त माँगलिक कार्य निर्विघ्न सम्पन्न होते हैं | इन्हीं समस्त कारणों से घट स्थापना करते समय आम्र पत्र प्रयोग में लाए जाते हैं |

घट स्थापना के साथ ही जौ की खेती भी शुभ मानी जाती है | किन्हीं परिवारों में केवल आश्विन नवरात्रों में जौ बोए जाते हैं तो कहीं कहीं आश्विन और चैत्र दोनों नवरात्रों में जौ बोने की प्रथा है | इन नौ दिनों में जौ बढ़ जाते हैं और उनमें से अँकुर फूट कर उनके नौरते बन जाते हैं जिनके द्वारा विसर्जन के दिन देवी की पूजा की जाती है | इसका एक पौधा चार पाँच महीने तक हरा भरा रहता है | सम्भवतः इसीलिए यव को समृद्धि, शान्ति और उन्नति और का प्रतीक माना जाता है | ऐसी भी मान्यता है कि जौ उगने की गुणवत्ता से भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | माना जाता है कि यदि जौ शीघ्रता से बढ़ते हैं तो घर में सुख-समृद्धि आती है वहीं अगर ये बढ़ते नहीं अथवा मुरझाए हुए रहते हैं तो भविष्य में किसी तरह के अनिष्ट का संकेत देते हैं | आश्विन-कार्तिक में इसकी बुआई होती है और चैत्र-वैशाख में कटाई | यह भी एक कारण दोनों नवरात्रों में जौ की खेती का हो सकता है | ऐसी भी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में सबसे पहली फसल जो उपलब्ध हुई वह जौ की फसल थी | इसीलिए इसे पूर्ण फसल भी कहा जाता है | यज्ञ आदि के समय देवी देवताओं को जौ अर्पित किये जाते हैं | एक कारण यह भी प्रतीत होता है कि अन्न को ब्रह्म कहा गया है और उस अन्न रूपी ब्रह्म का सम्मान करने के उद्देश्य से भी सम्भवतः इस परम्परा का आरम्भ हो सकता है |

_______________________कात्यायनी

 

bookmark_borderNavaratri Special – Falahari Recipes

Navaratri Special – Falahari Recipes

नवरात्रि स्पेशल – फलाहारी रेसिपीज़

जैसा कि सब ही जानते हैं, आज से माँ भगवती के नौ रूपों की उपासना का पर्व नवरात्र आरम्भ हो चुके हैं | आज दूसरा नवरात्र है – देवी के ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना आज की जाती है | नौ दिन चलने वाले इस पर्व में लगभग प्रत्येक घर में फलाहार ही ग्रहण किया जाएगा | हम पिछले तीन दिनों से अपने WOW India के सदस्यों द्वारा भेजी हुई भारतीय परम्परा के अनुसार बनाए जाने वाले फलाहारी पकवानों की रेसिपीज़ आपके साथ साँझा कर रहे हैं | इसी क्रम में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं दो रेसिपीज़… पहली रेसिपी है लड्डुओं की और दूसरी एक ख़ास तरह की रबड़ी की… और अन्त में चलते चलते कुछ अपनी पसन्द का भी लिखा है… डॉ पूर्णिमा शर्मा

पहली रेसिपी है सफ़ेद तिल, बादाम और पेठे से बने लड्डू जो हमें सिखा रही हैं रेखा अस्थाना…

तिल, बादाम और पेठे से बने लड्डू
तिल, बादाम और पेठे से बने लड्डू

सामग्री…

  • बादाम…150 ग्रा०
  • तिल… 200 ग्रा० सफेद
  • पेठा मीठा तैयार… 200 ग्रा०

विधि…

बादाम को आधे छोटे चम्मच घी डालकर सेंक ले |

फिर कढा़ई को पोंछकर उसमें तिल भून लें | तिल तड़कने लगें तो उतार लें और ठण्डा होने दें |

पेठा कद्दूकस कर लें |

अब तिल, बादाम और पेठा सब मिलाकर लड्डू बाँध लें |

तो सबसे पहले माँ भगवती को भोग लगाकर अपने घर के लड्डू गोपाल को खिलाएँ… बच्चों को बार बार खिलाकर ही टेस्ट डेवेलप होता है अन्यथा इन सब चीज़ों को कोई पसन्द नहीं करता… खासकर आजकल के बच्चे… लेकिन पौष्टिकता से भरपूर ये लड्डू होते हैं और व्रत में इन्हें खाने से शरीर में ऊर्जा बनी रहती है… तो एक बार बनाकर ज़रूर देखें…

रेखा अस्थाना

 

और अब दूसरी रेसिपी… रबड़ी तो हम सभी बड़े चाव से खाते हैं… हम तो जिस नगर से आते हैं – नजीबाबाद से – क्या ग़ज़ब होती थी वहाँ की रबड़ी… अच्छी तरह से कढाए

आम की रबड़ी
आम की रबड़ी

हुए दूध की बनती थी वो रबड़ी और मुलायम लेकिन मोटे लच्छे भी होते थे हलके मीठे की उस रबड़ी में… अभी भी याद करते हैं तो मुँह में पानी भर आता है… लेकिन आज एक अलग ही तरह की रबड़ी हमें बनाना सिखा रही हैं अर्चना गर्ग… जी हाँ, के मौसम में आम की रबड़ी… आइये सीखते हैं…

आम की रबड़ी

सामग्री…

  • 1kg फुल क्रीम दूध
  • ½kg tight आम जिसका लच्छा बन सके
  • 1/4 चम्मच इलायची पाउडर
  • 1/2 कप कंडेंस्ड मिल्क या चीनी
  • 50 ग्राम बादाम और काजू सजाने के लिए

बनाने की विधि…

दूध को एक पैन में गर्म करने के लिए रख दें | जब वह उबलने लगे और 1/4 रह जाए तो गैस बन्द कर दें | अगर आप कंडेंस्ड मिल्क मिला रही हैं तो चीनी ना मिलाएं | साथ ही आम को कद्दूकस करके लच्छा बना लें | जब दूध बिल्कुल ठंडा हो जाए तो उसमें इलायची पाउडर और लच्छा मिला दें | लीजिए आम की रबड़ी तैयार है | इतनी सरल है बनाने में और खाने में बहुत स्वादिष्ट लगती है | नवरात्र के लिए स्पेशल मिठाई है | आम का सीजन भी आ गया है… तो आप भी खाएं औरों को भी खिलाएं…

_____________अर्चना गर्ग

 

कच्चे आलू का चीला

कच्चे आलू का चीला
कच्चे आलू का चीला

तो ये तो थीं दो बड़ी ही स्वादिष्ट मिठाइयाँ व्रत में खाने के लिए | अब क्यों न कुछ नमकीन भी हो जाए ? भई हमें कच्चे आलू के चीले बहुत पसन्द हैं | आपमें से बहुत से घरों में ये बनाए भी जाते होंगे | हर किसी की अपनी अपनी विधि होती है बनाने की… तो हम जिस तरह से बनाते हैं उसकी विधि आपको बता रहे हैं…

इसके लिए एक कच्चा आलू लीजिये | इसे छीलकर कद्दूकस में कस कर लच्छा बना लीजिये | लच्छा न अधिक मोटा हो न बारीक | मीडियम साइज़ में हो | आलू के लच्छे का सारा पानी निचोड़ लीजिये और इस लच्छे में अपने स्वाद के अनुसार नमक, बारीक कटी हुई हरी मिर्च, बारीक कटा हुआ अदरख और थोड़ा सा बारीक कटा धनिया मिला लीजिये | अब एक नॉन स्टिक पेन गर्म कीजिए | गर्म होने पर इस पर ब्रश की सहायता से हल्की सी चिकनाई चुपड़ दीजिये और आलू के लच्छे का जो घोल आपने बनाकर रखा है उसे इस पर चीले की तरह से फैला दीजिये | एक तरफ से सिक जाए तो पलट कर दूसरी ओर से ब्राउन होने तक सेक लीजिये | पलटना आराम से है ताकि टूट न जाए | लीजिये आपका गरमागरम करारा करारा आलू का चटपटा चीला तैयार है | इसे आँवले की चटनी के साथ सर्व कीजिए और ख़ुद भी खाइए | आँवले की चटनी की रेसिपी कल रखा जी ने बताई थी…

_________डॉ पूर्णिमा शर्मा

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How to perform puja of Ma Durga

माँ दुर्गा के पूजन की विधि

आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ ही नवसंवत्सर का आरम्भ हुआ है और माँ भगवती की उपासना का पर्व नवरात्र आरम्भ हो चुके हैं | सभी को हिन्दू नव वर्ष तथा

Katyayani Dr. Purnima Sharma
Katyayani Dr. Purnima Sharma

साम्वत्सरिक नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ…

कुछ मित्रों का आग्रह है कि नवरात्रों में माँ भगवती की उपासना की विधि तथा उसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री के विषय में कुछ लिखें और सामग्री के महत्त्व के विषय में भी जानकारी दें | तो सबसे पहले तो, इस लेख की लेखिका यानी कि हम इस विषय के कोई बहुत बड़े ज्ञाता तो नहीं हैं, फिर भी जैसा माता पिता तथा गुरुजनों और पुस्तकों तथा अनुभवों से जाना वही सब आपके साथ साँझा कर रहे हैं |

सर्वप्रथम तो हमारा सबसे यही आग्रह है कि साधारण रीति से की गई ईशोपासना भी उतनी ही सार्थक होती है जितनी कि बहुत अधिक सामग्री आदि के द्वारा की गई पूजा अर्चना | साथ ही जिसकी जैसी सुविधा हो, जितना समय उपलब्ध हो, जितनी सामर्थ्य हो उसी के अनुसार हर किसी को माँ भगवती अथवा किसी भी देवी देवता की पूजा अर्चना उपासना करनी चाहिए… वास्तविक बात तो भावना की है… भावना के साथ यदि अपने पलंग पर बैठकर भी ईश्वर की उपासना कर ली गई तो वही सार्थक हो जाएगी… भगवान श्री राम ने प्रेम और श्रद्धा की भावना के ही वशीभूत होकर शबरी के झूठे बेर खाए थे और उसे “भामिनी” कहा था – जिसका अर्थ होता है ऐसी महिला जो भासती हो – अर्थात गरिमामयी नारी… भगवान श्री कृष्ण ने विदुर के घर भोजन किया था और सखा सुदामा के लाए तन्दुल पेट भर ग्रहण किये थे… रही बात पूजन की सामग्री की, तो जितनी भी सामग्री पूजन में काम में लाई जाती है वो तो सब भौतिक वस्तुएँ हैं, भगवान कभी ये नहीं कहते कि उन्हें कितनी सामग्री से अपनी पूजा करानी है… वे तो बस भावों के भूखे हैं… प्रेम के भूखे हैं… फिर भी, क्योंकि हमसे कुछ लोगों ने जानना चाहा है, तो सामान्य रूप से पूजा की विधि और सामग्री के विषय में लिख रहे हैं…

घट स्थापना के साथ माँ भगवती के नौ रूपों के आह्वाहन स्थापन के साथ अनुष्ठान का आरम्भ किया जाता है | इसके लिए एक मिट्टी का कलश घट के रूप में स्थापित करने के लिए चाहिए होता है | यदि आप जौ बोते हैं तो उसके लिए भी एक मिट्टी का पात्र मिट्टी और जौ के साथ | जल, मौली जिसे हम कलावा भी कहते हैं, इत्र, सुपारी, पान के पत्ते, आम की टहनी, कच्चे लेकिन साबुत चावल यानी अक्षत, नारियल, पुष्प और पुष्पमाला, माँ भगवती का चित्र अथवा मूर्ति, गणपति का चित्र अथवा मूर्ति, गाय का दूध, दही और घी, नैवेद्य अर्थात मिठाई, फल, सिन्दूर, रोली, धूप दीप इत्यादि, पञ्चामृत, वस्त्र, यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ, हल्दी, – इन वस्तुओं की आवश्यकता होती है | इसके अतिरिक्त विसर्जन के दिन यदि हवन करना है तो उसके लिए हविष्य अर्थात सामग्री जिसमें धूप, जौ, नारियल, गुग्गुल, मखाना, काजू, किसमिस, छुहारा, शहद, घी तथा अक्षत आदि तथा समिधा अर्थात लकड़ी की आवश्यकता होती है | किन्तु सामान्य तौर पर केवल घट स्थापना करके पाठ ही किया जाता है |

दुर्गा पूजा के लिए सर्वप्रथम एक लकड़ी की चौकी पर वेदी बनाई जाती है | इसके लिए चौकी पर श्वेत वस्त्र बिछा दिया जाता है और उस पर गौरी और गणपति की प्रतिमा अथवा चित्र के समक्ष ॐकार, श्री, नवग्रह, षोडश मातृका, नव कन्या तथा सप्तघृतमातृका बनाई जाती हैं | ध्यान रहे पूजा करते समय आपका मुँह उत्तर, पूर्व अथवा उत्तर-पूर्व में हो तो अधिक अच्छा है | वेदी के दाहिनी ओर ईशान कोण में घट स्थापना के लिए अष्टदल कमल बनाकर उस पर घट स्थापित किया जाता है और बाँई ओर दीपक रखा जाता है | साथ ही, यदि जौ बोए जा रहे हैं तो उनका पात्र भी कलश के पास ही होना चाहिए |

अब मन्त्रोच्चारपूर्वक वेदी की पूजा करके अखण्ड दीप प्रज्वलित किया जाता है और फिर कलश को विधिवत स्थापित किया जाता है | इसके बाद ॐकार, श्री, गौरी गणपति आदि की पूजा के बाद नवग्रहों का आह्वाहन स्थापन, षोडश मातृकाओं का, नव कन्याओं का, सप्तघृतमातृकाओं का आह्वाहन स्थापन करके पाठ आरम्भ किया जाता है |

कुछ लोग केवल कवच, अर्गला और कीलक का पाठ करके भी आरम्भ कर देते हैं, कुछ पहले सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ, श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं आदि का पाठ करके वैदिक विधि से अंगन्यास, मौली बन्धन, पुण्याहवाचन, मंगल पाठ, आसन शुद्धि, भूत शुद्धि, प्राण प्रतिष्ठा, कर न्यास, हृदयादि न्यास, शापोद्धार आदि अनेक अंग होते हैं जिनके साथ संकल्प लेकर रात्रि सूक्त और देव्यथर्वशीर्ष आदि का पाठ करके पाठ आरम्भ करते हैं | अन्त में यही समस्त प्रक्रियाएँ पुनः दोहराई जाती हैं और फिर ऋग्वेदोक्त देवी सूक्त, तीनों रहस्य तथा मानस पूजा आदि के द्वारा पाठ सम्पन्न किया जाता है | और भी जो लोग कोई बहुत बड़ा अनुष्ठान करते हैं अथवा किसी कामना की सिद्धि के लिए पाठ करते हैं तो बहुत सारे और भी अंग होते हैं पाठ के समय | लेकिन सामान्य रूप से कवच अर्गला कीलक का पाठ करके पाठ आरम्भ कर दिया जाता है |

हमारा मानना है कि यदि किसी कारणवश पूजन सामग्री न भी उपलब्ध हो तो केवल एक दीप प्रज्वलित करके शुद्ध हृदय से बैठ जाइए श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ

माँ भगवती
माँ भगवती

कर दीजिये | उसका भी वही फल प्राप्त होगा तो इतने सारे कर्मकाण्ड की विधि से षोडशोपचार विधि से पूजा अर्चना के बाद प्राप्त होता है |

कहने का तात्पर्य है कि ऐसा कोई विशेष बन्धन इस सबमें नहीं है | आप हर दिन सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ भी कर सकते हैं, या उसमें कहे गए तीनों चरित्रों – मधु कैटभ वध, महिषासुर वध और शुम्भ निशुम्भ वध – को एक एक दिन में कर सकते हैं, अथवा केवल प्रथम, चतुर्थ, पञ्चम तथा एकादश अध्याय की स्तुतियों का पाठ कर सकते हैं, अथवा – समय का अभाव है और पूरी सप्तशती करना चाहते हैं तो हर दिन उतना ही पाठ कीजिए जितना समय उपलब्ध है और इस प्रकार से पूरे नौ दिनों में सप्तशती सम्पन्न कर लीजिये | और यदि संस्कृत नहीं पढ़ सकते हैं तो उनके हिन्दी अनुवाद को ही पढ़ सकते हैं | और सप्तशती यदि नहीं भी पढ़ सकते हैं तो माँ भगवती तो अपने नाम स्मरण मात्र से प्रसन्न हो जाती हैं – यदि सच्ची भावना से उनका स्मरण किया जाए… माँ हैं न, इसलिए… माँ को सन्तान से यदि कुछ चाहिए तो वो है सम्मान और प्रेम की भावना… 

अस्तु, बिना ये सोचे विचारे कि हमारे पास पूजन की क्या सामग्री है क्या नहीं – बस हृदय से माँ भगवती का स्मरण कीजिए, इस भावना के साथ संसार में सभी स्वस्थ रहें… कोरोना तथा इसी प्रकार की अन्य भी महामारियों का आतंक समाप्त हो… प्राणियों में सद्भावना हो… और सब परस्पर हिल मिल कर जीवन व्यतीत करें… वासन्तिक  नवरात्रों की एक बार पुनः सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ…

______________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा

 

bookmark_borderNavaratri Special – Sago or Tapioca Cutlets

Navaratri Special – Sago or Tapioca Cutlets

नवरात्रि स्पेशल – साबूदाना कटलेट

जैसा की सब ही जानते हैं, आज से माँ भगवती के नौ रूपों की उपासना का पर्व नवरात्र आरम्भ हो चुके हैं | नौ दिन चलने वाले इस पर्व में लगभग प्रत्येक घर में फलाहार ही ग्रहण किया जाएगा | हम पिछले तीन दिनों से अपने WOW India के सदस्यों द्वारा भेजी हुई फलाहार की रेसिपीज़ आपके साथ साँझा कर रहे हैं | इसी क्रम में क्यों न आज बनाए जाएँ साबूदाने के कटलेट…? वैसे तो साबूदाने कटलेट प्रायः हर घर में बनाए जाते हैं… लेकिन हर किसी के बनाने की विधि और स्वाद अलग होता है… तो आज सीखते हैं हमारी रेखा अस्थाना जी से साबूदाने के कटलेट बनाना… डॉ पूर्णिमा शर्मा…

साबूदाने के कटलेट के लिए सामग्री…

  • एक कटोरी साबूदाना एक दिन पहले से भीगे हुए, सुबह पानी निथार दे

    Rekha Asthana
    Rekha Asthana
  • चार उबले आलू
  • हरी मिर्च चार
  • हरी धनिया
  • कद्दूकस किया हुआ अदरख एक चम्मच
  • सेंधा नमक

विधि…

साबूदाना खूब अच्छी तरह से भीगकर फूल जाना चाहिए | उसका सारा पानी निथार लें | अब उसमें हरी मिर्च, हरी धनिया, अदरख व सेंधा नमक मिला लें | आलू को मैश कर उसी में मिला लें |

हथेली में रिफाइन्ड लगाकर छोटी लोई बराबर मिक्सड साबूदाना ले कर हार्ट की आकृति बना कर प्लेट में रखती जाएँ | जब सब बन जाए तो उसे आप चाहें तो तलें या  नानस्टिक में गुलाबी सेंक लें |

चटनी के साथ गरमागरम परोसे |

व्रत की चटनी के लिए सामग्री…

  • धनिया या पुदीना जो भी व्रत में आपके यहाँ खाया जाता हो
  • हरी मिर्च
  • कच्चा आँवला
  • सेंधा नमक

इन सबको मिलाकर थोड़ी गीली सी चटनी बना लें | इन कटलेट के साथ बाउल में अवश्य दें |

ध्यान रहे कि सब घरों में व्रत में जो भी तेल नमक घी आदि प्रयोग किये जाते हैं वे एक ही नहीं होते | किसी घर में सेंधा नमक काम में लेटे हैं तो कहीं साधारण नामक ही लेटे हैं | कहीं देसी घी इस्तेमाल करते हैं ओ कहीं कोई तेल | इसलिए आपके यहाँ जो खाया जाता है केवल उसी का ही इस्तेमाल करें |

वैसे अभी हम आपको नौ दिन बिल्कुल अलग तरह का फलाहार खिलाने वाले हैं। बस आप एक बार बनाकर देखें।

___________रेखा अस्थाना

bookmark_borderNavaratri Special – Water Chestnut Flour Kadhi

Navaratri Special – Water Chestnut Flour Kadhi

नवरात्रि स्पेशल – सिंघाड़े के आटे की कढ़ी

जैसा की सब ही जानते हैं, कल से माँ भगवती के नौ रूपों की उपासना का पर्व नवरात्र आरम्भ होने जा रहे हैं | सभी लोग पूर्ण आस्था के साथ माँ भगवती की पूजा अर्चना

Rekha Asthana
Rekha Asthana

करेंगे | चौदह अप्रैल को चैत्र शुक्ल द्वितीया – दूसरा नवरात्र – माँ भगवती के दूसरे रूप की उपासना का दिन | देवी का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी का है – ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी – अर्थात् ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति करना जिसका स्वभाव हो वह ब्रह्मचारिणी | यह देवी समस्त प्राणियों में विद्या के रूप में स्थित है…

नवरात्घरों में घर घर में व्रत में खाए जाने वाले फलाहार के पकवान बनेंगे | प्रायः हर घर में साबूदाने की खिचड़ी, कुट्टू सिंघाड़े के आटे की पूरी पकौड़ी, सिंघाड़े के आटे का हलवा, रागी और चौलाई के आटे से बने पकवान, सामख के चावलों से निर्मित पकवान, मखाने की खीर इत्यादि इत्यादि न जाने कितने प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं | हम इस अवसर पर अपने सदस्यों द्वारा भेजी हुई नवरात्रों में खाए जाने वाले पकवानों की विधि आपको बता रहे हैं | कढ़ी तो हम सभी बे चाव से खाते हैं… अलग अलग तरह की कढ़ी… कहीं पंजाबी कढ़ी तो कहीं मारवाड़ी कढ़ी तो कहीं गुजराती कढ़ी, सिन्धी कढ़ी, हिमाचली कढ़ी इत्यादि इत्यादि… कहीं कढ़ी बेसन और दही मट्ठे से बनाई जाती है, कहीं इमली से तो कहीं मूँग की डाल की पिट्ठी की कढ़ी बनाई जाती है… लेकिन इनमें से कोई भी कढ़ी नवरात्रों में नहीं खाई जा सकती… अब अगर नवरात्रों में परिवार के सदस्यों का कढ़ी खाने का मन क्या करेंगे…? ज़ाहिर सी बात है नवरात्र में जिस जिस आटे का हम प्रयोग करते हैं उसी आटे से बनाएँगे… तो आइये आज बनाते हैं सिंघाड़े के आटे की कढ़ी… कैसे…? आइये सीखते हैं हमारी रेखा अस्थाना जी से… एक और बात, रेखा जी वाराणसी से सम्बन्ध रखती हैं इसलिए वे प्रायः उसी क्षेत्र की रेसिपीज़ साँझा करती हैं… रेसिपी पढ़ने के लिए कृपया लिंक पर जाएँ… डॉ पूर्णिमा शर्मा…

शकरकन्दी का पूओं की तरह ये भी ये भी वाराणसी का ही व्यंजन है | वाराणसी के लोग मस्त मौला और शिव जी के उपासक हैं | वहाँ हलवाई भी खूब फलाहार बनाते हैं | प्रातः ही नहा धोकर लग जाते हैं फलाहार बनाने में | क्या मज़ाल कि आप उनके व्यंजन को छू भी दें | अगर गलती से छू दिया आपने तो सब  कुछ गौ माता को खिला कर सबका पैसा आपसे वसूलेंगे | तो भैया सावधान होकर ही जाना आप…

अब हम आपको कढ़ी की विधि बताएँगे…

सामग्री…

  • एक कटोरी सिंघाड़े का आटा

    Singhada kadhi
    Singhada kadhi
  • एक कटोरी दही
  • चार हरी मिर्च
  • चार उबले आलू
  • एक चम्मच जीरा
  • नमक सेंधा स्वादानुसार

विधि…

आलू को स्लाइस में काट कर हरी मिर्च और जीरे के साथ छौंक दें |

अब सिंघाड़े का आटा व दही खूब अच्छी तरह मिलाकर घोल बना लें | घोल पतला ही होना चाहिए | दस मिनट के बाद उस घोल को आलू की कड़ाही में डाल दें और करछुल से चलाते रहें | ध्यान रहे बराबर चलाते रहना है जब तक वह पन्द्रह मिनट में पक न जाए |

आप अपने हिसाब से उसमें हरी धनिया भी डाल सकती हैं |

ध्यान रहे आपके घर पर व्रत में जो खाया जाता है उसी का इस्तेमाल करें | ये कुट्टू के आटे की गर्म पूड़ियों के साथ बहुत अच्छी लगेगी |

इसके साथ ही हरी धनिया, हरी मिर्च और एक आँवला डालकर आप चटनी पीस सकती हैं | सभी चीज़ों में सेंधा नमक का ही इस्तेमाल करें | यह हितकर होता है |

माँ भगवती का ब्रह्मचारिणी रूप हम सबकी रक्षा करते हुए सबकी मनोकामनाएँ पूर्ण करे और सबके ज्ञान विज्ञान में वृद्धि करे…

___________________रेखा अस्थाना

bookmark_borderNavaratri Special – Potato cake

Navaratri Special – Potato cake

नवरात्रि स्पेशल – आलू केक

जैसा की सब ही जानते हैं, कल से माँ भगवती के नौ रूपों की उपासना का पर्व नवरात्र आरम्भ होने जा रहे हैं | कल देवी के प्रथम रूप शैलपुत्री की उपासना की जाएगी | शक्ति का यह रूप शिव के साथ संयुक्त है, जो प्रतीक है इस तथ्य का कि शक्ति और शिव के सम्मिलन से ही जगत का कल्याण सम्भव है | नवरात्रों में सभी लोग पूर्ण आस्था के साथ माँ भगवती की पूजा अर्चना

Archana Garg
Archana Garg

करेंगे | घर घर में व्रत में खाए जाने वाले फलाहार के पकवान बनेंगे | प्रायः हर घर में साबूदाने की खिचड़ी, कुट्टू सिंघाड़े के आटे की पूरी पकौड़ी, सिंघाड़े के आटे का हलवा, रागी और चौलाई के आटे से बने पकवान, सामख के चावलों से निर्मित पकवान, मखाने की खीर इत्यादि इत्यादि न जाने कितने प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं | तो इन्हीं सबके साथ क्यों न इस बार आलू का केक बनाया जाए…? कैसे…? आइये सीखते हैं हमारी अर्चना गर्ग जी से… डॉ पूर्णिमा शर्मा…

 

मान लीजिये नवरात्रि में आपका जन्मदिन हो और आप केक न खाए तो ऐसा तो नहीं हो सकता न… तो आइए बनाए आज आलू का केक…

सामग्री…

  • आलू… ½ किलो
  • देसी घी… डेढ सौ ग्रा०
  • चीनी… डेढ़ सौ ग्रा०
  • मेवे… बादाम, काजू, अखरोट, पिस्ता… या जो भी आपकी इच्छा हो… सौ ग्राम बारीक कटे हुए
  • पानी… 75 मिली लीटर

विधि…

आलू को उबालकर छील लें और फिर अच्छे से मैश कर लें |

पैन में घी डालकर आलू को गुलाबी होने तक भूनें गोल्डन ब्राउन होने तक | फिर उसमें चीनी और पानी डालकर अच्छी तरह चलाती रहें | हलवे की तरह बन जाना चाहिए | फिर उसे एक प्लेट में निकाल कर केक का आकार दे दीजिये | ऊपर से ड्राईफ्रूट्स व केसर से सजा दीजिये |

यह आपको दिन भर एनर्जी भी देगा ये फलाहारी केक और इससे आप भगवान का भोग भी लगा सकती हैं | आपकी प्रिंसेस भी खुश  हो जाएगी |

शैलपुत्री के रूप में माँ भगवती सभी का कल्याण करें…

______________अर्चना गर्ग

bookmark_borderResolve and Fasting

Resolve and Fasting

व्रत और उपवास

व्रत शब्द का प्रचलित अर्थ है एक प्रकार का धार्मिक उपवास – Fasting – जो निश्चित रूप से किसी कामना की पूर्ति के लिए किया जाता है | यह कामना भौतिक भी हो

Katyayani Dr. Purnima Sharma
Katyayani Dr. Purnima Sharma

सकती है, धार्मिक भी और आध्यात्मिक भी | कुछ लोग अपने मार्ग में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए व्रत रखते हैं, कुछ रोग से मुक्ति के लिए, कुछ लक्ष्य प्राप्ति के लिए, कुछ आत्मज्ञान की प्राप्ति तथा आत्मोत्थान के लिए, तो कुछ केवल इसलिए कि पीढ़ियों से उनके परिवार में उस व्रत की परम्परा चली आ रही है और उन्हें उस परम्परा का निर्वाह करना है ताकि उनकी सन्तान भी वह सब सीख कर आगे उस परम्परा का निर्वाह करती रहे | मेरी एक मित्र हैं जो कहती हैं कि यदि मैं ये सारे व्रत नहीं रखूँगी तो कल मेरे बच्चे भला कैसे रखेंगे ? उन्हें भी तो कुछ अपने संस्कारों का, रीति रिवाजों का ज्ञान होना चाहिए…

रीति रिवाजों का ज्ञान तो फिर भी ठीक है, लेकिन संस्कार ? ये बात हमारे पल्ले नहीं पड़ती | संस्कार तो सन्तान को हमारे आदर्शों से प्राप्त होते हैं | व्रत उपवास का संस्कार से कुछ लेना देना है ऐसा कम से कम हमें नहीं लगता | यदि हमारे आचरण में सत्यता, करुणा, अहिंसा जैसे गुण हैं तो हमारी सन्तान में निश्चित रूप से वे गुण आएँगे ही आएँगे | यदि हमारे स्वयं के आचरण में ये समस्त गुण नहीं हैं तो हम चाहें कितने भी व्रत उपवास कर लें – न स्वयं को उनसे कोई लाभ पहुँच सकता है और न ही हमारी सन्तान संस्कारवान बन सकती है |

वास्तव में वृ में क्त प्रत्यय लगाकर व्रत शब्द निष्पन्न हुआ है – जिसका अर्थ होता है वरण करना – चयन करना – संकल्प लेना | इस प्रकार व्रत का अर्थ हुआ आत्मज्ञान तथा आत्मोन्नति के प्रयास में सत्य तथा कायिक-वाचिक-मानसिक अहिंसा तथा एनी अनेकों सद्गुणों का पालन करना | इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि हम भूखे रहकर अपने शरीर को कष्ट पहुँचाएँ | हाँ संकल्प दृढ़ होना चाहिए | हम अपने अज्ञान को दूर करने का व्रत लेते हैं वह वास्तव में सराहनीय है | हम व्रत लेते हैं कि किसी को कष्ट नहीं पहुँचाएँगे, सत्य और अहिंसा का पालन करेंगे, प्राणिमात्र के प्रति करुणाशील रहेंगे – सराहनीय है | किन्तु आज धर्म के साथ व्रत को सन्नद्ध करके अनेक प्रकार के रीति रिवाज़ अर्थात Rituals व्रत का अंग बन चुके हैं |

सत्य तो यह है कि संसार का प्रत्येक प्राणी अपने अनुकूल सुख की प्राप्ति और अपने प्रतिकूल दु:ख की निवृत्ति चाहता है | मानव की इस परिस्थिति को अवगत कर त्रिकालज्ञ और परहित में रत ऋषिमुनियों ने वेद पुराणों तथा स्मृति आदि ग्रन्थों को आत्मसात करके सुख की प्राप्ति तथा दुःख से निवृत्ति के लिए अनेक उपाय बताए हैं | उन्हीं उपायों में से व्रत और उपवास मानव को सुगम्य प्रतीत होते हैं | व्रतों का विधान करने वाले ग्रन्थों में व्रत के अनेक अंग प्राप्त होते हैं, उपवास उन्हीं अंगों में से एक अंग है | व्रत वास्तव में संकल्प को कहते हैं और संकल्प किसी भी कार्य के निमित्त हो सकता है | किन्तु इसे केवल धर्म तक ही सीमित कर दिया गया है | आज संसार के हर धर्म में किसी न किसी रूप में व्रत और उपवास का पालन किया जाता है | माना जाता है कि व्रत के आचरण से पापों का नाश, पुण्य का उदय, शरीर और मन की शुद्धि, मनोरथ की प्राप्ति और शान्ति तथा परम पुरुषार्थ की सिद्धि होती है। सर्वप्रथम अग्नि उपासना का व्रत वेदों में उपलब्ध होता है जिसके लिए विधि विधानपूर्वक अग्नि का परिग्रह आवश्यक है | उसके बाद ही व्रती को यज्ञ का अधिकार प्राप्त होता है |

धार्मिक दृष्टि से देखें तो नित्य, नैमित्तिक और काम्य तीन प्रकार के व्रत होते हैं जिन्हें कर्म की संज्ञा दी गई है | जिन व्रतों का आचरण दिन प्रतिदिन के जीवन में सदा आवश्यक है जैसे शरीर शुद्धि, सत्य, इन्द्रियनिग्रह, क्षमा, अपरिग्रह इत्यादि वे नित्य व्रत कहलाते हैं | किसी निमित्त के उपस्थित हो जाने पर किये जाने व्रत जैसे प्रदोष, एकादशी पूर्णिमा इत्यादि के व्रत नैमित्तिक व्रत हैं | तथा किसी कामना से किये गए व्रत काम्य व्रत हैं – जैसे सन्तान प्राप्ति के लिए लोग व्रत रखते हैं |

धार्मिक एवम् आध्यात्मिक साधना में प्रागैतिहासिक काल से ही उपवास का प्रचलन रहा है – भले ही वह पूर्ण हो अथवा आंशिक | उपवास का शाब्दिक अर्थ है उप + वास अर्थात निकट बैठना – अपनी आत्मा के केन्द्र में स्थित हो जाना | जैसे उपनिषद | उपनिषद का अर्थ है समीप बैठकर कहना और सुनना – शिष्य ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु के निकट बैठता था और उस समय जो ज्ञान उसे प्राप्त हुआ वह उपनिषद कहलाया | इसी प्रकार उपवास का अर्थ भी है निकट उपस्थित होना | क्योंकि आत्मज्ञान का जिज्ञासु यदि स्वयं के केन्द्र में स्थित होगा तो उसके लिए प्रगति का मार्ग सरल हो जाएगा, सम्भव है इसीलिए उपवास में भोजन न करने का विधान रहा होगा | आज भी उपवास की मूलभूत भावना तो यही है कि किसी भी प्रकार से भोजन आदि की चिन्ता किये बिना केवल आत्म भाव में स्थिर रहने का प्रयास किया जाए | और जब इस प्रकार आत्मस्थ होने का दृढ़ संकल्प लेते हैं तो किसी भी प्रकार की क्षुधा पिपासा स्वयं ही शान्त हो जाती है | किन्तु हमने उसे भी अपनी सुविधा के अनुसार ढाल लिया है | आज व्रत में संकल्प लेते हैं उपवास करने का – भोजन न करने का, किन्तु किसी एक भोज्य पदार्थ के सेवन की अनुमति होती है | लिहाजा उस एक ही भोज्य पदार्थ को किस प्रकार अपने स्वाद के अनुसार बना लिया जाए – आज व्रती का सारा समय इसी विचार तथा प्रक्रिया में बीत जाता है | अभी परसों से वासन्तिक नवरात्र आरम्भ होने जा रहे हैं… अधिकाँश लोग व्रत का पालन करेंगे… किन्तु उनमें से अधिकाँश का समय व्रत के लिए फलाहार बनाने और खाने खिलाने में ही व्यतीत होगा ऐसा हमने प्रायः देखा है…

वास्तव में हम “उपवास” नहीं करते, हम व्रत ले लेते हैं – संकल्प धारण कर लेते हैं कि आज अमुक पदार्थ का सेवन नहीं करेंगे और इतने बजे तक कुछ भी ग्रहण नहीं करेंगे | इस प्रकार का आंशिक उपवास भी लाभप्रद है – किन्तु तभी जब हम उस समय में भोजन तथा समय के विषय में ध्यान न देकर अपना समय स्वाध्याय अथवा अपने गुणों को उन्नत करने में व्यतीत करें | अन्यथा “आत्मस्थ” होने का अवसर ही कैसे मिल सकेगा ?

साथ ही एक बात नहीं भूलनी चाहिए, उपवास एक ओर जहाँ आत्मस्थ होने का – स्वयं के अनुशीलन तथा अन्वेषण का मार्ग है, वहीं हमारे स्वास्थ्य के लिए भी यह अत्यन्त उपयोगी है | उपवास से हमारे शरीर के विषैले पदार्थ स्वयं ही नष्ट होने आरम्भ हो जाते हैं और शरीर एक नवीन ऊर्जा से ओत प्रोत हो जाता है | वैसे उपवास का स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभ एक बहुत विशद विषय है जिस पर चर्चा बाद में कभी |

तो यदि वास्तव में व्रतोपवास का पालन करना है तो आत्मस्थ होने का संकल्प सबसे पहले लेना होगा – वह भी अपनी शारीरिक तथा मानसिक अवस्था और मौसम को देखते हुए… वही सच्चा उपवास होगा… शेष तो सब भौतिक आडम्बर मात्र हैं…

_________________कात्यायनी

bookmark_borderNavratri special – Dumplings of Sweet Potatoes

Navratri special – Dumplings of Sweet Potatoes

नवरात्रि स्पेशल – शकरकन्दी के पूए

जैसा कि सब ही जानते हैं, तेरह अप्रैल से माँ भगवती के नौ रूपों की उपासना का पर्व नवरात्र आरम्भ होने जा रहे हैं | सभी लोग पूर्ण आस्था के साथ माँ भगवती की पूजा अर्चना करेंगे | घर घर में व्रत में खाए जाने वाले फलाहार के पकवान बनेंगे | प्रायः हर घर में साबूदाने की खिचड़ी, कुट्टू सिंघाड़े के आटे की पूरी पकौड़ी, सिंघाड़े के आटे का हलवा, रागी और चौलाई के आटे से बने पकवान, सामख के चावलों से निर्मित पकवान, मखाने की खीर इत्यादि इत्यादि न जाने कितने प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं | तो इन्हीं सबके साथ क्यों न इस बार शकरकन्दी – जिसे स्वीट पोटेटो भी कहा जाता है – के पूए भी बनाए जाएँ…? कैसे…? आइये सीखते हैं हमारी रेखा अस्थाना जी से… रेखा अस्थाना जी WOW India की सक्रिय सदस्य होने के साथ ही साहित्यिक संस्था साहित्य मुग्धा दर्पण की अध्यक्षा भी हैं… साथ में पर्यावरण संरक्षण जैसे बहुत से सामाजिक कार्यों से भी सन्नद्ध रहती है… तो, आइये सीखते हैं शकरकन्दी के पूए बनाने की विधि… डॉ पूर्णिमा शर्मा…

जय माता दी….

आज मैं आपको पूर्वी उत्तर प्रदेश के व्रत के व्यंजन बनाना बताती हूँ | आप आज बनाएँगे शकरकन्दी के पूए… इसके लिए सामग्री चाहिए…

Rekha Asthana
Rekha Asthana
  • सिंघाड़े का आटा एक कटोरी
  • 250 ग्राम शकरकन्दी जिसे आप स्वीट पोटेटो भी कहते हैं
  • ­50 ग्राम चीनी – क्योंकि शकरकन्दी अपने आपमें ही बहुत मीठी होती है
  • चार छोटी यानी हरी इलायची पीसी हुई
  • घोल बनाने के लिए दूध आवश्यकतानुसार

शकरकन्दी को उबाल कर छील लें | ध्यान रखे उबालते समय पानी बहुत अधिक न हो, नहीं तो उसकी मिठास चली जाती है | अब पोटेटो मैशर की मदद से या हाथ से ही उसे मैश कर लें | सिंघाड़े के आटे में शकरकन्दी, चीनी, पीसी इलायची को एक साथ मिलाकर दूध के साथ पूए का घोल बना लें |

अब एक छिछली कढ़ाई में घी गरम करके पूए उसमें छोड़ते जाएँ | पूए अधिक कड़े न हो जाएँ और स्पोंजी रहे इसके लिए घोल को न अधिक गाढ़ा होने दें न अधिक पतला |

लीजिये, शकरकन्दी के गरमागरम पूए तैयार हैं | व्रत में चाय के साथ खुद भी खाइए और परिवार के लोगों को भी खिलाइए…

आपकी अपनी – रेखा अस्थाना….