आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी भगवती के महागौरी रूप की उपासना का दिन और कल नवमी को सिद्धिदात्री देवी की उपासना की जाएगी | कुछ परिवारों में अष्टमी को कन्या पूजन के साथ नवरात्र सम्पन्न हो जाते हैं और कुछ परिवारों में नवमी को समापन किया जाता है | ये भी सभी जानते हैं कि नवरात्रों में लगभग प्रत्येक घर में फलाहार ही ग्रहण किया जाता है | हम पिछले कुछ दिनों से अपने WOW India के सदस्यों द्वारा भेजी हुई भारतीय परम्परा के अनुसार बनाए जाने वाले फलाहारी पकवानों की रेसिपीज़ आपके साथ साँझा कर रहे हैं | तो जिन लोगों का आज भी व्रत है उनके लिए प्रस्तुत है एक बिल्कुल ही नई रेसिपी… पुष्पगुच्छ यानी फूलों के बुके तो प्रायः प्रत्येक कार्यक्रम में अतिथियों को भेंट किये जाते हैं… शादी ब्याह या ऐसे ही किसी विशेष उत्सव में जाते हैं तो वहाँ भी इसी प्रकार फूलों के बुके लेकर जाने का प्रचलन है… चॉकलेट्स के बुके भी देखने को मिल जाते हैं… फलों के बहुत ख़ूबसूरती से सजाए गए टोकरे भी सभी लोग प्रयोग में लाते हैं… लेकिन फूलों के बुके सूख जाने पर फेंकने पड़ते हैं… क्या ही अच्छा हो यदि हम ताज़े फलों के बुके बनाकर भेंट करें… फल तो खाने के काम में आ ही जाएँगे… स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होने फलों के बुके… और नवरात्रों में तो विशेष रूप से फलाहार के काम आएँगे… लेकिन कैसे…? तो आइये सीखते हैं अर्चन गर्ग जी से फलों के बुके बनाने की विधि… डॉ पूर्णिमा शर्मा…
सामग्री…
आधा अनानास नीचे का हिस्सा ऊपर का हिस्सा पत्ते वाला काट के आधा अलग रख लें
आधा खरबूजा
आधा तरबूज
200 ग्राम काले अंगूर
200 ग्राम हरे अंगूर
200 gram strawberry
दो संतरे की फाक
बनाने की विधि…
सारे फलों के छिलके उतार दीजिए | अंगूर और स्ट्रोबेरी का छिलका नहीं उतरेगा उसको ऐसे ही छोड़ दीजिए | कटे हुए फलों को आप किसी भी आकार में काट सकती हैं – जैसा कि मैंने ऊपर आपको फोटो में दिखाया है | स्ट्रोबेरी अगर पहले आपने लाल लगाया है तो फिर उसके ऊपर सफेद लगाएं उसके ऊपर काला लगाएं इस तरह रंग बिरंगे फ्रूट्स के साथ इसको सजाएं | अब लकड़ी की डंडी में यह सब डाल के जो हमने अनानास का ऊपर का हिस्सा काटा था उसमें यह सब लकड़ी की डांडिया लगा दीजिये | इनको Skewers भी बोलते हैं | सारे फ्रूट्स डंडियों में लगाकर अनानास का जो ऊपर का हिस्सा है उसमें सब लगा दीजिए | जो कटे फल बच जाएँ तो उन्हें बचे हुए तरबूज को खाली करके उसका एक टोकरी सी बनाकर उसमें भर के टेबल पर रख दें | वह इसी तरह खा लिए जाएंगे | तो देखा आपने कितना सुंदर बुके तैयार हो गया हमारा आप खुद भी बनाइए और देखिए कैसा लगता है…
साम्वत्सरिक नवरात्र चल रहे हैं और समूचा हिन्दू समाज माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना में बड़े उत्साह, श्रद्धा और आस्था के साथ लीन है | इस अवसर पर कुछ मित्रों के आग्रह पर माँ दुर्गा की उपासना में जिन वस्तुओं का मुख्य रूप से प्रयोग होता है उनके विषय में लिखना आरम्भ किया है | पारम्परिक रूप से जो सामग्रियाँ माँ भगवती की उपासना में प्रमुखता से प्रयुक्त होती हैं उनका अपना प्रतीकात्मक महत्त्व होता है तथा प्रत्येक सामग्री में कोई विशिष्ट सन्देश अथवा उद्देश्य निहित होता है…
अभी तक हमने कलश तथा कलश स्थापना और वन्दनवार तथा यज्ञादि में प्रयुक्त किये जाने वाले आम्रपत्र और आम्र वृक्ष की लकड़ी, दीपक, पुष्पों तथा नारियल इत्यादि के विषय में लिख चुके हैं… अब आगे…
रक्षा सूत्र – पूजा को निर्विघ्न सम्पन्न करने के उद्देश्य से रक्षा सूत्र अपने नाम के अनुरूप ही रक्षा के निमित्त बाँधा जाता है | रक्षा सूत्र बांधते समय एक मन्त्र का उच्चारण किया जाता है:
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: |
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ||
अर्थात जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था वही आज में तुम्हारी कलाई पर बाँध रहा हूँ | ये रक्षासूत्र तुम्हारी रक्षा करेगा | हे रक्षासूत्र तुम सदा अचल रहते हुए रक्षा करो | रक्षा सूत्र अर्थात कलावा या मौली तीन कच्चे धागे से बनी होती है | कलाई पर तीन रेखाएं होती हैं, जिन्हें मणिबन्ध कहा जाता है | ये तीन रेखाएँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रतीक मानी जाती हैं तथा इन्हीं तीनों रेखाओं में दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी का वास भी माना जाता है | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब अभिमन्त्रित करके रक्षा सूत्र बाँधा जाता है तो वह त्रिदेव और त्रिदेवियों को समर्पित हो जाता है और इस प्रकार तीनों देव और तीनों देवियाँ व्यक्ति की रक्षा करती हैं |
मुखवास अर्थात पान सुपारी – किसी भी पूजा अर्चना में पान का भी महत्त्व होता है | भगवती अथवा किसी भी देवी देवता को पान समर्पित करते समय मन्त्र बोला जाता है:
दिव्य पूगीफल अर्थात सुपारी नागवल्लीदल अर्थात पान के पत्ते और एलादिचूर्ण अर्थात इलायची तथा कर्पूर आदि के सुगन्धित चूर्ण के साथ आपको समर्पित करते हैं, इस ताम्बूल अर्थात पान के बीड़े को ग्रहण करें |
आपने देखा होगा कि पान सबसे अन्त में समर्पित किया जाता है | इसका एक प्रमुख कारण यह है कि पान एक प्राकृतिक मुखवास है – मुख को सुगन्धि प्रदान करता है | सारा भोजन सम्पन्न हो जाए, अतिथि को जो भी दान दक्षिणा दे दी जाए, उसके बाद अन्त में मुखवास के लिए पान देने की प्रथा अनादि काल से भारतीय संस्कृति का अंग रही है | इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि पान को ताज़गी और समृद्धि का स्रोत माना जाता है | भोजन के बाद यदि पान खा लिया जाए तो भोजन सरलता से पच जाता है |
कथा उपलब्ध होती है कि कात्यायन ऋषि के कोई सन्तान नहीं थी | उन्होंने भगवती की उपासना की और देवी से उन्हें कन्या रूप में प्राप्त करने का वरदान माँग लिया | महिषासुर के बढ़ते अत्याचारों के कारण देवों का क्रोध भी बढ़ रहा था | उनके क्रोध से एक तेजपुंज प्रकट हुआ जो कन्या रूप में था | उसी ने ऋषि कात्यायन के घर में जन्म लिया और कात्यायनी कहलाईं | आश्विन शुक्ल नवमी और दशमी को उन्होंने महिषासुर से युद्ध किया और अन्त में उसका का वध किया | मान्यता है की महिषासुर वध से पूर्व उन्होंने पान ही खाया था जिसके कारण उनमें और अधिक ऊर्जा का संचार हो गया था | ऐसी भी मान्यता है कि पान के पत्ते में समस्त देवी देवताओं का वास होता है |
तिलक – पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु |
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् |
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ||
तिलक के लिए चन्दन, हल्दी और कुमकुम आदि का प्रयोग किया जाता है | एक तो इन वस्तुओं के औषधीय गुण और दूसरे इनकी सुगन्धि के कारण इन पदार्थों का उपयोग किया जाता है | चन्दन लगाने से शीतलता प्राप्त होती है साथ ही बुद्धिमत्ता में भी वृद्धि होती है | हल्दी भी अपने औषधीय गुणों के कारण प्रसिद्ध है | और पारम्परिक रूप से कुमकुम भी हल्दी से ही बनाया जाता है |
तिलक लगाने के कुछ नियम भी होते हैं | जैसे:
पितृगणों को तर्जनी अंगुलि से तिलक लगाया जाता है | अर्थात पिण्डदान करते समय तिलक लगाने के लिए तर्जनी अंगुलि का प्रयोग किया जाता है | तर्जनी अर्थात तर्जन करना – किसी बात के लिए रोकना – इसीलिए तर्जनी अंगुलि का प्रयोग किसी अतिथि को, स्वयं को अथवा पूजा आदि में तिलक लगाने के लिए नहीं किया जाता |
यदि स्वयं को तिलक लगाना हो तो मध्यमा अँगुली का प्रयोग किया जाता है | इसका एक कारण यह भी है की ये अंगुलि लम्बी होने के कारण सरलता से अपने मस्तक तक पहुँच जाती है |
पूजा कार्य में किसी को तिलक लगाना हो तो अनामिका का प्रयोग किया जाता है |
किसी अतिथि को तिलक लगाना हो तो अंगुष्ठ अर्थात अँगूठे का प्रयोग किया जाता है |
साथ ही, तिलक मस्तक पर जिस स्थान पर लगाया जाता है वह आज्ञाचक्र कहलाता है | तिलक धारण करने का अभिप्राय है कि हम अपने आज्ञाचक्र को भी जाग्रत कर रहे हैं |
वास्तव में देखा जाए तो जिस पूजा विधि और सामग्री की बात हम करते हैं वह हिन्दू समाज का सनातन काल से चला आ रहा चिर परिचित अतिथि सत्कार ही है | कोई “विशिष्ट” अतिथि हमारे घर आता है तो सबसे पहले तोरण बनाते हैं पञ्चपल्लवों से | अतिथि के आने पर द्वार पर ही हम उसके हस्त पाद प्रक्षालन कराते हैं | कुछ भीतर आने पर उसका आरता भी उतारते हैं | उसके पश्चात उसे बैठने के लिए आसन प्रदान करते हैं | अत्यन्त ही विशिष्ट व्यक्ति हुआ तो उसके स्वागत में वाद्ययन्त्र भी बजाए जाते हैं | बैठने के बाद पुनः उसके हस्त प्रक्षालन के लिए जल और हाथ पोंछने के लिए वस्त्र समर्पित करते हैं | कुछ पुष्प आदि देकर तथा इत्र आदि छिड़ककर उसका सम्मान करते हैं | मस्तक पर तिलक लगाते हैं | फिर कुछ पेय पदार्थ उसके समक्ष प्रस्तुत करते हैं | उसके बाद भोजन देते हैं | साथ में जल भी देते हैं | भोजन के पश्चात मिष्टान्न भेंट किया जाता है | उसके बाद पुनः हस्त प्रक्षालन के लिए जल दिया जाता है | अन्त में सुगन्धित पान और कुछ दक्षिणा तथा उपहार आदि देकर पुनः आगमन की प्रार्थना के साथ विदा किया जाता है |
जब हम किसी भी देवी देवता की स्थापना और आह्वाहन करते हैं तो वह वास्तव में अत्यन्त विशिष्ट होता है हमारे लिए | और माँ भगवती के अतिरिक्त विशिष्ट अतिथि भला
और कौन हो सकता है ? तो माँ भगवती की उपासना में भी यही सब होता है | माता के भक्त उन्हें अपने निवास पर आमन्त्रित करते हैं और जिस दिन उनका आगमन होता
है उस दिन घर द्वार को अच्छे से सजाते हैं | वन्दनवार द्वार पर लटकाते हैं | मैया का आह्वाहन करते हैं, उनके आगमन पर शंखध्वनि करते हैं | उनके हस्त पाद प्रक्षालित करके आरती करके उन्हें घर के भीतर लेकर आते हैं | पुष्प भेंट करते हैं | आसन प्रदान करते हैं | मस्तक पर तिलक लगाते हैं श्रृंगार की वस्तुएँ तथा नारिकेल फल भेंट करते हैं | रक्षा सूत्र समर्पित करते हैं | दीप प्रज्वलित करते हैं | भोजन और नैवेद्य समर्पित करते हैं | भोजनोपरान्त पुनः हस्त प्रक्षालन करके ताम्बूल तथा अन्य सुगन्धि द्रव्य भेंट करते हैं | अन्त में दक्षिणा समर्पित करके पुष्प तथा उपहार आदि भेंट करके भूल चूक के लिए क्षमा याचना करते हैं | और फिर पुनः आगमन की प्रार्थना अर्थात आरती करके उन्हें विदा करते हैं |
इस प्रकार यदि धार्मिक पक्ष की बात नहीं भी करें, तो चाहे माँ भगवती की पूजा अर्चना हो अथवा किसी भी अन्य देवी देवता की उपासना हो – ये समस्त प्रक्रियाएँ हमें अपनी जड़ों से – अपने रीति रिवाज़ों से – अपने संस्कारों से जोड़े रखती हैं तथा हमें पग पग पर यही सीख देती हैं कि व्यक्ति जीवन में कितना भी ऊँचा क्यों न उठ जाए… परिवार के बड़े व्यक्तियों के समक्ष – अतिथियों के समक्ष – उसे विनम्र तथा श्रद्धावान ही बने रहना चाहिए…
अन्त में पुनः यही कहना चाहेंगे कि माँ केवल भावनाओं से प्रसन्न हो जाती है… जहाँ भी जिस भी स्थिति में व्यक्ति है, बस हृदय से माँ का स्मरण कर ले तो माँ अवश्य उसकी मनोकामना पूर्ण करती है…
अस्तु, माँ भगवती अपने सभी नौ रूपों में जगत का कल्याण करें यही कामना है…
देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद, प्रसीद मातार्जगतोSखिलस्य |
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवी चराचरस्य ||
जैसा कि सब ही जानते हैं चैत्र नवरात्र चल रहे हैं और हर घर में माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जा रही है | आज चैत्र शुक्ल षष्ठी – यानी छठा नवरात्र है – देवी के कात्यायनी रूप की उपासना का दिन | इनकी उपासना से चारों पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष – की सिद्धि होती है | यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में सर्वप्रथम इनका उल्लेख उपलब्ध होता है | देवासुर संग्राम में देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये – महिषासुर जैसे दानवों का संहार करने के लिए – देवी कत ऋषि के पुत्र महर्षि कात्यायन के आश्रम पर प्रकट हुईं और महर्षि ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया | इसीलिये “कात्यायनी” नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई | इस प्रकार देवी का यह रूप पुत्री रूप है | यह रूप निश्छल पवित्र प्रेम का प्रतीक है | किन्तु साथ ही यदि कहीं कुछ भी अनुचित होता दिखाई देगा तो ये कभी भी भयंकर क्रोध में भी आ सकती हैं | स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं और बाद में पार्वती द्वारा प्रदत्त सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया था | पाणिनि पर पतंजलि के भाष्य में इन्हें शक्ति का आदि रूप बताया गया है | देवी भागवत और मार्कण्डेय पुराणों में इनका माहात्म्य विस्तार से उपलब्ध होता है | कात्यायनी देवी के रूप में माँ भगवती सभी की रक्षा करें और सभी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करें…
नौ दिन चलने वाले नवरात्रों में लगभग प्रत्येक घर में फलाहार ही ग्रहण किया जाएगा | हम पिछले कुछ दिनों से अपने WOW India के सदस्यों द्वारा भेजी हुई भारतीय परम्परा के अनुसार बनाए जाने वाले फलाहारी पकवानों की रेसिपीज़ आपके साथ साँझा कर रहे हैं | इसी क्रम में आज रेखा अस्थाना जी की भेजी हुई दो रेसिपीज़ प्रस्तुत कर रहे हैं – पहली रेसिपी है सामख के चावल का पुलाव, और दूसरी है शकरकन्दी का पाग… अब भई नमक का खाने के बाद कुछ मीठा भी तो चाहिए होता है न… तो आइये सीखते हैं कैसे बनाई जाती हैं ये दोनों चीज़ें… डॉ पूर्णिमा शर्मा…
सावां या सामख के चावल का पुलाव
बचपन में दादी माँ कहा करती थी यह चावल प्रकृति की देन है, बिना बोये जोते इसको प्राप्त किया जा सकता है |
तो आज हम आपको फलाहारी पुलाव बनाना बता रहें हैं | एक बात का ध्यान रहे जब आप संध्या की आरती कर चुके व व्रत के पारायण का समय हो तभी इसे बनवाइएगा |
अन्यथा यह एक दूसरे से चिपक जाता हैं | वैसे भी व्रत के नियम के अनुसार पारायण के समय जितना खा पाए उतना ही लें, रख उठाकर न खाएँ |
सामग्री…
सावां के चावल एक कटोरी ।
आलू एक बड़ा
हरी मिर्च
एक चम्मच जीरा साबुत
एक चम्मच देसी घी
हरी धनिया
अदरख कद्दूकस किया हुआ एक चम्मच
सेंधा नमक स्वादानुसार
चावल को धो लें | आलू को छील कर बारीक काट लें | अब कुकर में एक चम्मच देसी घी डालकर जीरा तड़का लें | उसके बाद हरी मिर्च व अदरख डालें | फिर चावल व आलू डालें | सेंधा नमक डालकर चलाएँ | अन्दाज़ से पानी डालें | ढक्कन बन्द करके एक सीटी में उतार लें | फिर हरी धनिया डालें | अगर पसन्द हो तो देसी घी डालकर दही या चटनी के साथ आप खा सकती हैं | आप चाहें तो पपीते के रायते के साथ भी खा सकती हैं |
और अब कुछ मीठा हो जाए… तो बनाते हैं शकरकंदी पाग…
सामग्री…
शकरकंद 250ग्रा०
चीनी चार टी स्पून
अमचूर एक टी स्पून
सोंठ एक चम्मच
सेंधा नमक एक टी स्पून
सूखी साबुत लाल मिर्च दो
जीरा एक टी स्पून
थोड़ी किशमिश
बनाने की विधि…
शकरकंद को धोकर छील लें फिर गोल गोल काट लें – न बहुत पतले न मोटे |
एक पैन में एक चम्मच घी डालकर उसमें नमक, सोंठ, अमचूर, चीनी व किशमिश डालकर एक कप पानी डालें और शकरकन्दी डालकर चलाकर ढक दें | तब तक पकायें जब तक शकरकंद दबने न लगे | अधिक गलाए नहीं नहीं तो स्वाद बेकार हो जाता है |
साम्वत्सरिक नवरात्र चल रहे हैं और समूचा हिन्दू समाज माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना में बड़े उत्साह, श्रद्धा और आस्था के साथ लीन है | इस अवसर पर कुछ मित्रों के आग्रह पर माँ दुर्गा की उपासना में जिन वस्तुओं का मुख्य रूप से प्रयोग होता है उनके विषय में लिखना आरम्भ किया है | पारम्परिक रूप से जो सामग्रियाँ माँ भगवती की उपासना में प्रमुखता से प्रयुक्त होती हैं उनका अपना प्रतीकात्मक महत्त्व होता है तथा प्रत्येक सामग्री में कोई विशिष्ट सन्देश अथवा उद्देश्य निहित होता है…
अभी तक हमने कलश तथा कलश स्थापना और वन्दनवार तथा यज्ञादि में प्रयुक्त किये जाने वाले आम्रपत्र और आम्र वृक्ष की लकड़ी, दीपक तथा पुष्पों इत्यादि के विषय में लिख चुके हैं… अब आगे…
घट स्थापना में तथा पूजा कार्य में नारियल का विशेष महत्त्व होता है | नारियल के गुणों से तो हम सभी परिचित हैं | शीतल तथा स्निग्ध गुण धर्म इसका होता है | माना जाता है कि इसमें सभी देवों का वास होता है तथा देवी को यह अत्यन्त प्रिय होता है – इसीलिए नारियल को संस्कृत में श्रीफल कहा जाता है | किसी भी शुभकार्य के आरम्भ में नारियल तोड़ने की प्रथा है – नारियल के बाह्य आवरण को यदि अहंकार का प्रतीक तथा भीतरी भाग को पवित्रता और शान्ति का प्रतीक माना जाए तो इसका महत्त्व स्वतः ही समझ में आ जाता है | पूजा की समाप्ति पर नारियल तोड़ने का भी यही अभिप्राय है कि व्यक्ति ने अपने अहंकार को समाप्त कर दिया | नारियल में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवों का वास माना जाता है |
कुछ लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि एक समय धार्मिक कार्यों में मनुष्य और पशुओं की बलि सामान्य बात थी | कहते हैं उस समय आदि शंकराचार्य ने इस अमानवीय परम्परा को तोड़ा और मनुष्य अथवा पशु के स्थान पर नारियल अर्पित करने की प्रथा आरम्भ की | नारियल देखा जाए तो मनुष्य के मस्तिष्क से मेल खाता है | नारियल की जटा की तुलना मनुष्य के बालों से, कठोर कवच की तुलना मनुष्य की खोपड़ी से, भीतर के गूदे की तुलना मनुष्य के दिमाग़ से नारियल पानी की तुलना रक्त से की जा सकती है |
नारियल से पूर्व कलश में जो दूर्वा, कुश, सुपारी, पुष्प आदि डाले जाते हैं उनमें भी यही भावना निहित होती है कि हमारे भीतर दूर्वा जैसी जीवनी शक्ति बनी रहे, कुश जैसी
प्रखरता हमारे ज्ञान में विद्यमान रहे, सुपारी के समान गुणों से युक्त स्थिरता रहे तथा पुष्प के सामान सर्वग्राही गुणों का निवास हमारे मन में हो जाए |
इसके अतिरिक्त सुपारी को सभी देवों का प्रतीक भी माना जाता है और इसीलिए नवग्रह उपासना में नवग्रहों के प्रतीक स्वरूप सुपारी रखी जाती है | गणेश जी का रूप भी सुपारी को माना जाता है और गणेश जी की प्रतिमा न होने पर सुपारी में मौली बाँधकर उसे ही गणेश जी मानकर पूजा की जाती है | किसी भी अनुष्ठान में जहाँ पति पत्नी दोनों का होना अनिवार्य हो वहाँ यदि एक उपस्थित न हो तो उसके स्थान पर भी सुपारी को रखने की प्रथा है |
नवरात्रों के पावन नौ दिनों में दुर्गा माँ के नौ स्वरूपों की पूजा उपासना बड़े उत्साह के साथ की जाती है – चाहे चैत्र नवरात्र हों अथवा शारदीय नवरात्र | माँ भगवती को प्रसन्न करने के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष सामग्रियों से उनकी पूजा की जाती है | यद्यपि माँ क्योंकि एक माँ हैं तो साधारण रीति से की गई ईशोपासना भी उतनी ही सार्थक होती है जितनी कि बहुत अधिक सामग्री आदि के द्वारा की गई पूजा अर्चना | साथ ही जिसकी जैसी सुविधा हो, जितना समय उपलब्ध हो, जितनी सामर्थ्य हो उसी के अनुसार हर किसी को माँ भगवती अथवा किसी भी देवी देवता की पूजा अर्चना उपासना करनी चाहिए… वास्तविक बात तो भावना की है… भावना के साथ यदि अपने पलंग पर बैठकर भी ईश्वर की उपासना कर ली गई तो वही सार्थक हो जाएगी…
जैसा कि सब ही जानते हैं चैत्र नवरात्र चल रहे हैं और हर घर में माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जा रही है | आज चैत्र शुक्ल पञ्चमी – यानी पञ्चम नवरात्र है – देवी के स्कन्दमाता रूप की उपासना सबने की है | छान्दोग्यश्रुति के अनुसार भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुए सनत्कुमार का नाम स्कन्द है, और उन स्कन्द की माता होने के कारण ये स्कन्दमाता कहलाती हैं | इसीलिये यह रूप एक उदार और स्नेहशील माता का रूप है |
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः |
जब धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ता है माता अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का नाश करने निकल पड़ती हैं | युद्ध के लिए निकलना है लेकिन पुत्र के प्रति अगाध स्नेह भी है, माँ के कर्तव्य का भी निर्वाह करना है, इसलिए युद्धभूमि में भी सन्तान को साथ ले जाना आवश्यक हो जाता है एक माँ के लिए | साथ ही युद्ध में प्रवृत्त माँ की गोद में जब पुत्र होगा तो उसे बचपन से ही संस्कार मिलेंगे कि आततायियों का वध किस प्रकार किया जाता है – क्योंकि सन्तान को प्रथम संस्कार तो माँ से ही प्राप्त होते हैं – इन सभी तथ्यों को दर्शाता देवी का यह रूप है |
नवरात्रों में लगभग प्रत्येक घर में फलाहार ही ग्रहण किया जाएगा | हम पिछले कुछ दिनों से अपने WOW India के सदस्यों द्वारा भेजी हुई भारतीय परम्परा के अनुसार बनाए जाने वाले फलाहारी पकवानों की रेसिपीज़ आपके साथ साँझा कर रहे हैं | इसी क्रम में आज हम दो रेसिपी प्रस्तुत कर रहे हैं… मखाने तो हाँ सब ही बड़े चाव से खाते हैं… कभी भून कर नमक लगाकर, तो कभी ऐसे ही बिना भुने… कभी तलकर तो कभी खीर बनाकर… अनेक प्रकार से मखानों का सेवन हम करते हैं… पर क्या आपने कभी मखाने की पूरी बनाकर खाई हैं…? नहीं…? तो आइये आज सीखते हैं अर्चना गर्ग जी से… भई कुट्टू और रागी आदि की पूरियाँ तो बहुत खा लीं व्रत के दिनों में… आज मखाने की पूरी खाते हैं… स्वास्थ्य के लिए भी मखाने बहुत लाभकारी होते हैं… डॉ पूर्णिमा शर्मा…
हम मखानों में से बिना फूले हुए मखाने चुन लेते हैं – जिन्हें ठुड्डी कहा जाता है | | इसको हम मिक्सी में महीन पीस लेते हैं | उसके बाद इसको चलनी से छान के ऊपर का मोटा वाला आटा यानी चोकर अलग कर देंगे और नीचे का बारीक वाले आटे से हम पूरियाँ बनाएँगे | तो ये दो कटोरी आटा
दो आलू उबले हुए मीडियम साइज के
थोड़ा देसी घी पूरी तलने के लिए
आधा चम्मच सेंधा नमक
बनाने की विधि…
एक बाउल में आटा ले लिया | दो उबले हुए आलू अच्छे से कद्दूकस करके मैश कर लिए और उसमें नमक डाल दिया। अब उसमें थोड़ा थोड़ा पानी डालकर उसका रोटी जैसा आटा सान लिया | मखाने का आटा फूलता बहुत है इसका ध्यान रखना है | इसको 15 मिनट ढक के रख दिया | 15 मिनट बाद देखा अगर वह खड़ा है तो थोड़ा सा पानी और डालकर उसको मुलायम दो | अब जैसे हम रोटी की लोई बनाते हैं ऐसे सब लोई तोड़ कर रख ले | चकले पे जरा सा मखाने का आटा डाला, उसके ऊपर लोई रखी और जरा सा आटा और डाला और धीरे-धीरे उसको हाथ से भी थपक सकते हैं और बेलन से भी बोल सकते हैं | छोटी-छोटी पराठे तैयार करके तवे पर डाल दिया | देसी घी लगा लगा कर अच्छा गोल्डन ब्राउन दोनों तरफ से सेंक लिया | यह खाने में बहुत ही स्वादिष्ट लगता है | आप इसे चाहे तो पूरी की तरह भी तल सकते हैं | लेकिन घी काफी लग जाता है उसमें | पराठे बहुत स्वाद लगते हैं | न्यूट्रीशन वैल्यू बहुत है – जैसा कि सभी को मालूम है कि मैं खाने में कितने गुण होते हैं |
दही की अरबी के लिए सामग्री…
मखाने की पूरी या पराँठे तो हमने तैयार कर लिए, लेकिन इन्हें खाएँगे किसके साथ ? क्यों न दही वाली अरबी बनाई जाएँ… इसके लिए…
आधा किलो उबली हुई अरबी
1 कटोरी दही हल्की खट्टी
नमक स्वादानुसार
एक बड़ा चम्मच देसी घी
दो हरी मिर्च
चौथाई कप कटा हुआ बारीक हरा धनिया
आधा चम्मच गरम मसाला
दो कप पानी
बनाने की विधि…
कढ़ाई में घी डाला | उसके बाद उसमें दही डाला और सारे मसाले डाल दिए | उसे लगातार चलाते रहें नहीं तो दही फट जाएगी | अब उसमें उबली हुई अरबी दो दो पीस काट कर डाल दिए और उसे चलाते रहे | फिर दो कप पानी डाल दिया | जब वह अच्छे से खनक जाए तो लटपट दही की अरबी हमारी तैयार हो गई |
यह मखाने की पूरी के साथ या पराठे के साथ बहुत ही स्वादिष्ट लगती है तो लीजिए हमारा व्रत का खाना तैयार है आप भी खाइए दूसरों को भी खिलाइए और बताइए कैसा लगा आपको यह खाना…
साम्वत्सरिक नवरात्र चल रहे हैं और समूचा हिन्दू समाज माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना में बड़े उत्साह, श्रद्धा और आस्था के साथ लीन है | इस अवसर पर कुछ
मित्रों के आग्रह पर माँ दुर्गा की उपासना में जिन वस्तुओं का मुख्य रूप से प्रयोग होता है उनके विषय में लिखना आरम्भ किया है | अभी तक हमने कलश तथा कलश स्थापना और वन्दनवार तथा यज्ञादि में प्रयुक्त किये जाने वाले आम्रपत्र और आम्र वृक्ष की लकड़ी, जौ और दीपक के विषय में लिखने का प्रयास किया था | अब आगे…
किसी भी पूजा में पुष्पों का प्रयोग भी किया जाता है | दुर्गा सप्तशती में श्री दुर्गा मानस पूजा में मन्त्र आता है…
अर्थात… हम कह्लार, उत्पल, नागकेसर, मालती, मल्लिका, कुमुद, केतकी तथा लाल कनेर आदि पुष्पों से तथा सुगन्धित पुष्पमालाओं से और नाना प्रकार के रसों की धारा से लाल कमल के भीतर निवास करने वाली श्री चण्डिका देवी की पूजा करते हैं |
इनमें कह्लार तथा उत्पल – कह्लार और उत्पल – दोनों ही अलग अलग प्रकार के कमल पुष्पों के नाम हैं तथा भारत के राष्ट्रीय पुष्प हैं | इनका बहुगुणीय औषधि के रूप में भी उपयोग होता है | कमल को पंकज अर्थात कीचड़ में उत्पन्न होने वाला पुष्प भी कहा जाता है और सम्भव है इसीलिए इसे आध्यात्मिकता, ज्ञान और पवित्रता का प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है – अर्थात जो इस असार संसार रूपी कीचड़ से अध्यात्म की ओर ले जाए |
नागकेसर – जिसे नागचम्पा भी कहते हैं तथा यह भी पीले रंग का होता है तथा कषैले स्वाद का होता है | यह एक सदाबहार छायादार वृक्ष है | इस पुष्प से भी औषधि तथा मसाले बनाए जाते हैं |
मधु मालती – इससे मधु प्राप्त होता है और इसे मोगरे अथवा का पुष्प भी कहते हैं – मल्लिका भी इसी का एक प्रकार है, कुमुद – यह कमल के पुष्प जैसा ही पुष्प होता है तथा इसके गुण धर्म भी कमल के ही समान होते हैं | इसी प्रकार केतकी अर्थात केवड़े का पुष्प – हर कोई इसके गुण धर्म से भी परिचित है | इस प्रकार ज्ञात होता है कि भगवती को सभी सुगन्धित तथा शीतलता और बल प्रदान करने वाले पुष्प प्रिय हैं | क्योंकि पुष्पों के अनेकों रंगों से तथा उनकी सुगन्धि से असीम शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है |
इसके अतिरिक्त ऐसी भी मान्यता है कि भगवती के शैलपुत्री रूप को श्वेत कनेर का पुष्प अधिक प्रिय है | ब्रह्मचारिणी को वटवृक्ष के पत्र और पुष्प, चंद्रघंटा को शंखपुष्पी – जिसे शारीरिक पराक्रम तथा मानसिक ज्ञान में वृद्धिकारक और सुख समृद्धि का कारक भी माना जाता है, कूष्माण्डा देवी को पीत पुष्प और कूष्माण्ड अर्थात जिसे हम कद्दू या सीताफल आदि नामों से भी जानते हैं, स्कन्दमाता को नीले रंग के पुष्प, कात्यायनी देबी को बेर के पुष्प, कालरात्रि को गुँजा अर्थात रत्ती की माला, महागौरी मौली यानी कलावा मात्र अर्पित करने से प्रसन्न हो जाती हैं तथा सिद्धिदात्री के रूप में भगवती को गुड़हल के पुष्प अधिक प्रिय हैं |
इसके अतिरिक्त बहुत से सुगन्धि द्रव्यों का भी पूजा में उपयोग किया जाता है… मांसीगुग्गुलचन्दनागुरुरजः कर्पूरशैलेयजै-
र्माध्वीकैः सह कुङ्कुमैः सुरचितैः सर्पिर्भिरामिश्रितैः |
सौरभ्यस्थितिमन्दिरे मणिमये पात्रे भवेत् प्रीतये
धूपोऽयं सुरकामिनीविरचितः श्रीचण्डिके त्वन्मुदे ||11||
अर्थात, हे चण्डिका देवि ! देव वधुओं के द्वारा तैयार किया हुआ यह दिव्य धूप आपकी प्रसन्नता में वृद्धि करे | यह धूप रत्नमय पात्र में – जो सुगन्धि का निवास स्थान है – रखा
हुआ है, तथा इसमें जटामांसी – डिप्रेशन और तनाव दूर करता है तथा इम्यून सिस्टम को ठीक रखता है, गुग्गुल – गुग्गुल भी सूजन तथा जोड़ों में दर्द के सहित अनेक रोगों में लाभकारी माना जाता है, चंदन, अगुरु – जो देखने में गोंद जैसा होता है तथा यह भी अनेक रोगों में लाभकारी माना जाता है – का चूर्ण, कपूर, शिलाजीत, मधु, कुमकुम और घी मिलाकर उत्तम रीति से इसे बनाया गया है | अर्थात धूप में जितने भी पदार्थ मिलाए जाते हैं वे सभी सुगन्धित होने के साथ ही अनेकों आयुर्वेदीय गुणों के भण्डार भी होते हैं |
ध्यान देने योग्य बात है कि ये सबही पौराणिक आख्यान हैं और इनमें से बहुत सी वस्तुएँ तो आज के युग में सरलता से उपलब्ध भी नहीं हैं, और यदि हैं भी तो महँगी होने के कारण बहुत से लोगों की पहुँच से बाहर हैं | तो यदि ये समस्त सामग्रियाँ नहीं होंगी तो भगवती भक्तों की पूजा स्वीकार नहीं करेंगी ?
इसीलिए हम बार बार यही कहते हैं कि पूजन सामग्री के फेर में न पड़कर केवल भावना की सामग्री से देवी की उपासना की जाए… माँ उसी से प्रसन्न हो जाएँगी… इसीलिये बोला जाता है “पुष्पाणि समर्पयामि ऋतुकालोद्भवानि च…” अर्थात जिस ऋतु में पूजा की जा रही है तथा जिस स्थान पर पूजा की जा रही है उस समय और उस स्थान पर जो पुष्प उत्पन्न होते हैं वे हम आपको समर्पित करते हैं…
माँ भगवती के सभी रूप अल्पात्यल्प सामग्री से की पूजा को भी ग्रहण करते हुए प्राणिमात्र की रक्षा करें तथा सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करें यही कामना है…
जैसा कि सब ही जानते हैं चैत्र नवरात्र चल रहे हैं और हर घर में माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जा रही है | आज चैत्र शुक्ल तृतीया – यानी तीसरा नवरात्र है – देवी के चन्द्रघंटा रूप की उपासना का दिन | देवी कूष्माण्डा – सृष्टि की आदिस्वरूपा आदिशक्ति | इनका निवास सूर्यमण्डल के भीतरी भाग में माना जाता है | अतः इनके शरीर की कान्ति भी सूर्य के ही सामान दैदीप्यमान और भास्वर है | इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं | ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है | कुत्सितः ऊष्मा कूष्मा – त्रिविधतापयुतः संसारः, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्याः स कूष्माण्डा – अर्थात् त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है वे देवी कूष्माण्डा कहलाती हैं…
नौ दिन चलने वाले नवरात्रों में लगभग प्रत्येक घर में फलाहार ही ग्रहण किया जाएगा | हम पिछले कुछ दिनों से अपने WOW India के सदस्यों द्वारा भेजी हुई भारतीय परम्परा के अनुसार बनाए जाने वाले फलाहारी पकवानों की रेसिपीज़ आपके साथ साँझा कर रहे हैं | इसी क्रम में आज प्रस्तुत कर रहे हैं कुट्टू के आटे की पूरी अमरूद की सब्ज़ी के साथ… जो हमें भेजी है रेखा अस्थाना जी ने… और उसके बाद मीठे के लिए अरबी के गोंद की रेसिपी… अरबी का गोंद…? जी, सही पढ़ा आपने… अरबी का गोंद… जो हमें सिखाएँगी अर्चना गर्ग जी… तो पहले बनाते हैं कुट्टू की पूरी के साथ अमरूद की सब्ज़ी… डॉ पूर्णिमा शर्मा…
कुट्टू के आटे की पूरी (पूड़ी )के साथ अमरूद की सब्जी
सभी कुट्टू की पूरी बनाना जानते हैं | पर आपको मैं फिर से बनाना बता रही हूँ…
सामग्री…
कुट्टू का आटा 250 ग्रा०, आटे को हमेशा छलनी से छान लिया करें
आलू या अरबी (चार ) उबले हुए
सेंधा नमक स्वादानुसार
तलने के लिए रिफाइंड
बनाने की विधि…
उबले हुए आलू या अरबी को छीलकर मसल लें | अब कुट्टू के आटे में नमक और ये मैश किये हुए आलू या अरबी मिलाकर आटे को सख्त सा सान लें | ध्यान रहे जब व्रत खोलना हो उसके कुछ समय पूर्व ही आटा साने | पहले से सानने से आटा बेकार हो जाता है | ढीला पड़ जाता है फिर पूड़ी बिलती नहीं है | कड़े आटे की पूड़ी ख़स्ता होती है | अब इस आटे की लोई बनाकर रख लें और एक एक करके पूड़ियाँ तलकर निकाल लें | आप इन्हें दही के साथ भी परोस सकते हैं और अमरूद की सब्ज़ी के साथ तो ये बेहद स्वाद लगती हैं |
तो अब बनाते हैं अमरूद की सब्ज़ी…
सामग्री…
आधा किलो अमरूद
हरी मिर्च
हरी धनिया
काली मिर्च
सेंधा नमक एक टी स्पून
जीरा एक टी स्पून
नीबूं .एक
चीनी… तीन टी स्पून
अमरूद को चाकू से छील लें | फिर उसके बीज चाकू से निकाल कर अलग कर दें | अब बारीक बारीक अमरूद को काट लें | पैन में बस एक चम्मच घी डालकर जीरे और हरी मिर्च का तडका लगाएँ | अब उसे चलाकर ढक दें | पाँच मिनट के बाद उसमें सेंधा नमक डाल कर फिर पकाएँ | जब पकने को हो उसमें चीनी डालकर एक नींबू निचोड़ कर चलाकर ढक दें | अब आपकी विटामिन सी से भरपूर एनर्जी देने वाली सब्जी बनकर तैयार है।
भाई मेहनत तो है, पर पौष्टिकता से भरपूर विटामिन सी युक्त भोजन है | तो आज ही तैयारी कर लीजिए | और हाँ, अमरूद पके हों तो सब्जी ज्यादा अच्छी बनती है |
साथ में कोई भी चटनी बना सकती हैं | व्रत की चटनी को सिलबट्टे से ही पीसे बस खाने भर का ही पीसे | एक साथ पीस कर सात दिन न चलाएँ | व्रत का भोजन कभी रखा हुआ नहीं खाते हैं | हमेशा खाने पूर्व ही बनाएँ |
________________रेखा अस्थाना
और अब… कुछ मीठा हो जाए…? तो सीखते हैं अर्चना गर्ग से अरबी का गोंद बनाने की विधि…
सामग्री…
1kg अरबी थोड़ी मोटी और बड़ी
तलने के लिए ढाई सौ ग्राम देसी घी
300 ग्राम चीनी
डेढ़ सौ ग्राम पानी
बनाने की विधि…
सबसे पहले हमने अरबी को अच्छे से छिलके उसे पानी से रगड़ रगड़ के धो लिया | फिर सूखे कपड़े से उसे अच्छी तरीके से पोंछ लिया | जब उसका लिसलिसापन खत्म हो गया तो चिप्स वाली मशीन में उसके चिप्स बना लिए और एक धोती के कपड़े पर उसे फैला दिए और पंखा चला दिया | 10 मिनट में वह हल्के हल्के से फरहरे ऐसे हो जाएंगे | फिर कढ़ाई में घी गरम करने के लिए रख दें | जब घी गरम हो जाए तो उसमें थोड़े-थोड़े चिप्स डालती जाएं | जब वह गोल्डन ब्राउन हो जाएं तो उन्हें निकाल निकाल कर रखती रहे | इस तरह से सारे चिप्स तल ले |
अब दूसरी कढ़ाई में पानी और चीनी चढ़ा दें | जब चीनी घुल जाए अच्छी तरीके से और दो तार की चाशनी बन जाए तब उसमें सारे चिप्स डाल दें और उनको चलाती रहे ताकि सबके ऊपर चाशनी चढ़ जाए और एक एक चिप्स खिल जाए | लीजिए अरबी का गोंद तैयार हो गया | यह खाने में बहुत ही स्वादिष्ट लगता है और मां का भोग भी लग गया | इसे अरबी के मीठे चिप्स भी कह सकते हैं…
अस्तु, अन्त में, समस्त देवताओं ने जिनकी उपासना की वे देवी कूष्माण्डा के रूप में सबके सारे कष्ट दूर कर हम सबका शुभ करें…
The covid virus has a vibration of 5.5hz and dies above 25.5hz.
For humans with a higher vibration, infection is a minor irritant that is soon eliminated!
The reasons for having low vibration could be:
Fear, Phobia, Suspicion
Anxiety, Stress, Tension.
Jealousy, Anger, Rage
Hate, Greed
Attachment or Pain
And so……we have to understand to vibrate higher, so that the lower frequency does not weaken our immune system.
The frequency of the earth today is 27.4hz. but there are places that vibrate very low like:
Hospitals
Assistance Centers.
Jails
Underground etc.
It is where the vibration drops to 20hz, or less.
For humans with low vibration, the virus becomes dangerous.
Pain 0.1 to 2hz.
Fear 0.2 to 2.2hz.
Irritation 0.9 to 6.8hz.
Noise 0.6 to 2.2hz.
Pride 0.8 hz.
Superiority 1.9 hz.
A higher vibration on the other hand is the outcome of the following behaviour :-
Generosity 95hz
Gratitude 150 hz
Compassion 150 hz or more.
The frequency of Love and compassion for all living beings is 150 Hz and more.
Unconditional and universal love from 205hz
So…Come on …
Vibrate Higher!!!
What helps us vibrate high?
Loving, Smiling, Blessing, Thanking, Playing, Painting, Singing, Dancing, Yoga, Tai Chi, Meditating, Walking in the Sun, Exercising, Enjoying nature, etc.
Foods that the Earth gives us: seeds-grains-cereals-legumes-fruits and vegetables-
Drinking water: help us vibrate higher ….. !!!
The vibration of prayer alone goes from 120 to 350hz
So sing, laugh, love, meditate, play, give thanks and live !
Let’s vibrate high …!!!
This information is compiled & edited by Naturotherapist Dr. Harshal Sancheti, Nasik but
the original source of this information is anormous literature on sprituality
Please share this valuable information!
?
An article by the Chairperson of WOW India Dr. Sharda Jain
साम्वत्सरिक नवरात्र चल रहे हैं और समूचा हिन्दू समाज माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना में बड़े उत्साह, श्रद्धा और आस्था के साथ लीन है | इस अवसर पर कुछ मित्रों के आग्रह पर माँ दुर्गा की उपासना में जिन वस्तुओं का मुख्य रूप से प्रयोग होता है उनके विषय में लिखना आरम्भ किया है | कल अपनी अल्पबुद्धि से कलश तथा कलश स्थापना और वन्दनवार तथा यज्ञादि में प्रयुक्त किये जाने वाले आम्रपत्र और आम्र वृक्ष की लकड़ी और जौ के विषय में लिखने का प्रयास किया था | आज आगे…
आज हम बात करते हैं दीपक की | किसी भी पूजा में दीपक का बहुत महत्त्व होता है | पूजा में कहा जाता है ““भो दीप त्वम् ब्रह्मस्वरूप: अन्धकारनिवारक:, इमां मया कृतां पूजां गृहाण तेजो प्रर्द्धय”…” इत्यादि इत्यादि | अन्धकार – सबसे बड़ा अन्धकार तो अज्ञान का ही होता है, गले सड़े ऐसे रीति रिवाज़ों का होता है जो मानव समाज को बेड़ियों में जकड़े रहते हैं और इसी कारण से मानव मात्र की प्रगति में बाधक होते हैं, दुर्भावों का होता है | तो समस्त प्रकार के अन्धकार को दूर भगाने की प्रार्थना दीप प्रज्वलन के समय की जाती है |
माँ भगवती की उपासना में तथा अन्य भी पूजा अर्चना में प्रायः घी का अखण्ड दीप प्रज्वलित करने की प्रथा है | गौ घृत हो तो अत्युत्तम, अन्यथा कोई भी घी चल सकता है | दीप प्रज्वलित करने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, नकारात्मक ऊर्जाएँ समाप्त होती हैं तथा आस-पास का वातावरण शुद्ध हो जाता है | दीप प्रज्वलन के समय मन्त्र बोले जाते हैं:
शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसम्पदा |
शात्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोSस्तु ते ||
दीपो ज्योति परम ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दान: |
दीपो हरतु में पापं सन्ध्यादीप नमोSस्तु ते ||
अर्थात, सुख और कल्याण करने वाले, आरोग्य प्रदान करने वाले, धन सम्पत्ति प्रदान करने वाले तथा शत्रुओं की बुद्धि का विनाश करने वाले दीप को हम नमस्कार करते हैं | स्पष्ट है कि व्यक्ति के मन से – विचारों से – अज्ञान तथा नकारात्मकता का अन्धकार जब छंट जाएगा तभी वह कुछ सकारात्मक और क्रियात्मक दिशा में प्रयास कर सकेगा | और इस सकारात्मकता के कारण उसका मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा – तथा मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो शारीरिक स्वास्थ्य तो स्वयं ही ठीक रहेगा | दीपक की ऊँची उठती लौ किसी भी प्रकार अज्ञान को – चाहे वह अज्ञान का हो, अशिक्षा का हो, नकारात्मकता का हो – कैसा भी अज्ञान हो – मिटाकर जीवन में निरन्तर कर्मशील रहने तथा उन्नति के पथ पर अग्रसर रहने की प्रेरणा देती है |
अखण्ड दीप को पूजा स्थल के आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण पूर्व दिशा में रखना शुभ माना जाता है | दीप एक साधक के लिए साधना में सहायक नेत्र और हृदय ज्योति का भी प्रतीक है |
दीप प्रायः गौ के देसी घी से प्रज्वलित किया जाता है | यदि उपलब्ध न हो तो तिल अथवा सरसों के तेल से भी दीप प्रज्वलित कर सकते हैं – किन्तु रिफायंड का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए – न पूजा में और न ही भोजन बनाने में | गाय से प्राप्त हर वस्तु में पोषक तथा स्वास्थ्यवर्धक तत्व उपस्थित रहते हैं – चाहे वह दूध हो, गौ मूत्र हो, गाय का गोबर हो अथवा गाय के दूध से निर्मित पदार्थ हों जैसे घी, दही, मक्खन इत्यादि | इसीलिए पञ्चामृत में भी गाय के ही दूध, घी तथा दही का प्रयोग किया जाता है | साथ ही गाय के घी में बहुत से ऐसे तत्व भी पाए गए हैं जो रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं | संस्कृत में घी को घृत कहा जाता है – जिसका अर्थ होता है सिंचित करने वाला, आलोकित करने वाला, उज्ज्वल करने वाला | इसी प्रकार तिल के तेल में भी तिल के औषधीय गुण निहित होते हैं, जैसे : यह मधुर होता है, वातशामक होता है, प्रकृति इसकी गर्म होती है तथा यह भी स्निग्धता प्रदान करता है | सरसों के तेल में भी इसी प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं | इसीलिए दीप प्रज्वलन तथा यज्ञादि के लिए गौ घृत सबसे अधिक उपयुक्त माना जाता है | और यदि न उपलब्ध हो सके तो तिल अथवा सरसों के तेल का प्रयोग करने की सलाह विद्वान् लोग देते हैं |
आज चैत्र शुक्ल तृतीया को भगवती के चंद्रघंटा रूप की उपासना का विधान है | भगवती का ये रूप सबका मंगल करे तथा सभी के जीवन तथा हृदयों से समस्त प्रकार के अन्धकार का उन्मूलन करे और सबको स्वास्थ्य प्रदान करे… यही कामना है…
जैसा कि सब ही जानते हैं चैत्र नवरात्र चल रहे हैं और हर घर में माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जा रही है | आज चैत्र शुक्ल तृतीया – यानी तीसरा नवरात्र है – देवी के चन्द्रघंटा रूप की उपासना का दिन | चन्द्रः घंटायां यस्याः सा चन्द्रघंटा – आह्लादकारी चन्द्रमा जिनकी घंटा में स्थित हो वह देवी चन्द्रघंटा के नाम से जानी जाती है – इसी से स्पष्ट होता है कि देवी के इस रूप की उपासना करने वाले सदा सुखी रहते हैं और किसी प्रकार की बाधा उनके मार्ग में नहीं आ सकती |
नौ दिन चलने वाले इस पर्व में लगभग प्रत्येक घर में फलाहार ही ग्रहण किया जाएगा | हम पिछले कुछ दिनों से अपने WOW India के सदस्यों द्वारा भेजी हुई भारतीय परम्परा के अनुसार बनाए जाने वाले फलाहारी पकवानों की रेसिपीज़ आपके साथ साँझा कर रहे हैं | इसी क्रम में आज हम फिर से दो रेसिपीज़ प्रस्तुत कर रहे हैं… पहली रेसिपी है दही भल्लों की और दूसरी एक ख़ास क़िस्म के शरबत की… तो, पहले खाने का कार्य हो जाए… जी हाँ, भल्ले… जिन्हें बड़े भी कहा जाता है… हम लोग मूँग की दाल, उड़द की दाल वगैरा के भल्ले तो अक्सर खाते ही हैं… लेकिन व्रत में तो ये खाए नहीं जा सकते… तो क्यों न कुट्टू ले आटे में लौकी मिलाकर उसके भल्ले बनाए जाएँ…? कैसे…? आइये सीखते हैं रेखा अस्थाना जी से… और फिर उन्हें पचाने के लिए आँवले का शरबत… जो हमें सिखाएँगी अर्चना गर्ग… डॉ पूर्णिमा शर्मा…
कुट्टू का आटा एक कटोरी (कुट्टू का आटा सदैव छानकर ही इस्तेमाल करें)
दही… आधा किलो
सेंधा नमक… स्वादानुसार
भुना जीरा… दो स्पून
कटी हरी मिर्च… स्वादानुसार
अदरख यदि खाते हो तो – हमने आपसे पहले भी बताया है कि आवश्यक नहीं आप ये सारी चीज़ें इस्तेमाल करें, वही चीज़ें इस्तेमाल करें जो आपके घर में खाई जाती हैं
रिफाइंड ऑयल… तलने के हिसाब से
विधि…
लौकी छीलकर कद्दूकस कर लें | फिर उसका पानी निचोड़ लें | निचोड़ी हुई लौकी को जीरा और हरी मिर्च के साथ एक चम्मच रिफाइंड कढ़ाई में डालकर उसे पका लें और फिर ठंडा करके उसमें कुट्टू का आटा, सेंधा नमक और अदरख मिलाकर पेड़े का आकार देकर नानस्टिक में गुलाबी सेंक कर प्लेट पर रख लें |
इधर दही को फेंटकर उसमें नमक, भुना पिसा जीरा व हरी मिर्च तथा हरी धनिया मिलाकर तैयार रखें | जब व्रत खोलने का समय हो उससे दस मिनट पूर्व प्लेट में सजी लौकी के पेड़ों पर दही डालकर सर्व करें |
इनको वाराणसी में उपवासी दही बड़े कहा जाता है | इसे खाने से तन -मन दोनों ही स्वस्थ रहता है | पेट भी ठीक रहता है | इसी तरह कच्चे पपीते के भी भल्ले बनाए जा सकते हैं |
इनके साथ यदि इमली या अनारदाने की सोंठ हो या हरी चटनी भी हो तो स्वाद और अधिक बढ़ जाएगा…
अभी हमने बहुत सारी व्रत की रेसिपी सीखी | आज हम आपको बताने जा रहे हैं आंवले का शरबत जो कि व्रत में पिया जा सकता है | यह सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद है | आंवले का शरबत बनाना बहुत ही आसान है | चलिए देखते हैं कि आंवले का शरबत कैसे बनाते हैं…
सामग्री…
एक कप आंवले का रस
दो कप चीनी
कुछ पुदीने के पत्ते
थोड़ा सा काला नमक
थोड़ा सा भुना जीरा
एक कप पानी
बनाने की विधि…
सबसे पहले हमने आंवले का एक कप जूस निकाला | आंवले का जूस निकालने के लिए आंवलों को महीन कद्दूकस में कस कर महीन जाली के कपड़े से छान छान कर कसके निचोड़ लीजिये |
अब कढ़ाई में चीनी और पानी डालकर उसे उबालने रख दीजिये | जब वह अच्छी तरह से उबल जाए तो उसमें चीनी मिलाकर गैस बंद कर दे और उसे ठंडा होने के लिए रख दें | जब वह बिल्कुल ठंडा हो जाए तो उसे कांच की बोतल में भरकर फ्रिज में भरकर रख दें | यह लगभग 2 से 3 महीने तक फ्रिज में चल सकता है | जब आपके घर में कोई आए या आपको खुद पीना हो तो ग्लास में चार चम्मच आंवले का शरबत डाल दें और कुछ क्रश किया हुआ बर्फ और पानी मिला दे | आप चाहे तो इसको सोडे में भी सर्व कर सकते हैं | सर्व करते समय इसमें थोड़ा सा काला नमक थोड़ा सा भुना जीरा और चार पांच पत्ते पुदीने के डालकर आप इसे सर्व करें यह बहुत ही स्वादिष्ट शरबत होगा |
आंवले में भरपूर मात्रा में विटामिन सी, कैल्शियम और कैंसर के बचाव के लिए एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं | आंवले का जूस अल्सर की रोकथाम में बहुत गुणकारी है | वजन कम करने के लिए आंवला बहुत फायदेमंद है | आंख की रोशनी और बालों को काला करने के लिए यह एक रामबाण का काम करता है | साथ ही शरीर को ठंडक पहुँचाता है |
__________________अर्चना गर्ग
तो बनाइये लौकी के भल्ले और साथ में आनन्द लीजिये आंवले के शरबत का… माँ चन्द्रघंटा के रूप में भगवती सभी की रक्षा करें और सभी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करें… डॉ पूर्णिमा शर्मा…