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मेरी सहेली और गुरु गौरैया

Gunjan Khandelwal
Gunjan Khandelwal

(On World Sparrow Day)

गुँजन खण्डेलवाल

चींचीं का शोर बहुत सवेरे मुझे उठा देता और गौरैया व उसकी सखियाँ मेरे छोटे से बगीचे में फुदकने लगतीं | इधर वो दाने, कीड़े आदि चुनकर सफाई करतीं की मैं घर बुहार लेती | उसमें  और मेरी माँ में मुझे समानता लगती | कभी ना थकती कभी ना रूकती की तर्ज़ पर माँ के काम चलते जाते और ये गौरैया भी दाना पानी की जुगत में लगी रहती | सामने की झाड़ी में उसे चोंच में भर कभी तिनके, सींक और रूई लेकर जाते देख लगा कि घोंसला बना रही है | जैसे माँ स्वेटर बुनती लगभग वैसे ही गौरैया ने अपना घोंसला तैयार कर लिया | कुछ दिन बाद मुझे उसमें गोल, सफेद अंडे दिखाई दिए | अब मेरी सखी गौरैया का स्वभाव बदल रहा था | ज़्यादातर वह अपने घोंसले में चौकन्नी रहती अपनी गर्दन घुमाती रहती | उस दिन तो उसने शोर मचाकर और पंख फड़फड़ा कर दुश्मन पंछी को भगा कर ही दम लिया | कुछ दिन बाद मुझे पंख विहीन, मरियल चूज़े दिखाई दिए |

गौरैया की व्यस्तता बढ़ती जा रही थी | आसपास की बड़ी इमारतों और सड़कों के कारण उसे दाना चुगने दूर जाना पड़ता था | उससे मेरी घनिष्ठता इस तरह बढ़ी की अब मैं कुछ गेहूं – चावल के दाने और एक सकोरे में पानी रोज छत पर रखने लगी | मुझे देखकर अब वो एक दम उड़ती नहीं थी वरन  पास पड़े दाने चुनते रहती | गौरैया को देख उसके बच्चे चोंच खोल देते और वो उसमें दाना डाल देती | समय अपनी गति से चल रहा था | उस दिन गौरैया घोंसले में नहीं थी | पता नहीं कैसे उसका एक बच्चा नीचे गिर पड़ा | इस से पहले बिल्ली उसको झपट लेती मैंने उसे सुरक्षित घोंसले में पहुंचा दिया | देर शाम तक गौरैया चींचीं करती मेरे घर के चक्कर काटती रही | अब किसी भी माँ की तरह वो भी अपने बच्चों को दुनिया दारी के लिए तैयार कर रही थी | बच्चे थोड़ी उड़ान भरने लगे थे | वो बड़ी  भयावह शाम थी | गर्मी में बरामदे का पंखा  तेजी से घूम रहा था | गौरैया का एक बच्चा पता नहीं कब उस ओर उड़ते हुए आया और एक पल में पंखे से टकरा कर गिर गया | उस रात मेरे आंसू और गौरैया की चीं चीं वाली चीख़ आपस में घुल मिल गईं |

समय ने गति पकड़ ली थी | मेरे बच्चे दूसरे शहरों में पढ़ने चले गए | मेरी उदासी गहरा रही थी | उस दिन मैंने देखा गौरैया के बच्चे पेड़ों के एकाध चक्कर लगा कर उड़ गए | कभी ना वापस आने के लिए | मैं निराश हो गई | पर ये क्या?गौरैया अगली सभी सुबह खुशी खुशी चहकती आ धमकती और पुरानी दिनचर्या में व्यस्त हो गई | उसके चहचहाने से मुझे सीख मिल गई कि बच्चों को अपना भविष्य बनाने जाना ही है इसलिए उसमें बाधा न बनो और गौरैया की तरह अपेक्षा न रखते हुए अपने कर्तव्य पूर्ण खुशी खुशी करते रहो | मेरी सहेली गौरैया ने मुझे एक साथ यानि समाज से जुड़ने का संदेश दिया | आत्म निर्भरता, आत्म रक्षा और पर्यावरण संरक्षण जैसे सबक भी जाने अनजाने सिखा दिए | अब  मैं उसे सहेली के साथ गुरु भी मानने लगी हूँ |

 

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Certificate of Participation

साँझ सकारे कोयल कूके, लो वसन्त आया |

रंग बिरंगे फूल खिलाता लो वसन्त आया ||

पाँच फरवरी को वसन्त पञ्चमी का उल्लासमय पर्व था… ऋतुराज वसन्त के स्वागत हेतु WOW India ने साहित्य मुग्धा दर्पण के साथ मिलकर डिज़िटल प्लेटफ़ॉर्म ज़ूम पर दो दिन काव्य संगोष्ठियों का आयोजन किया… द्वितीय कड़ी 5 फरवरी को आयोजित की गई जिसमें दोनों संस्थाओं के सदस्यों स्वरचित रचनाओं का पाठ किया… काव्य पाठ प्रस्तुत वाले वाले सदस्यों को सम्मानस्वरूप एक प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किया गया है… सादर: डॉ पूर्णिमा शर्मा…

Anubha Pandey

 

 

 

 

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Festival of Hindi Poetry on Spring

वसन्त पर हिन्दी कविताओं का उत्सव

नमस्कार ! WOW India के सदस्यों की योजना थी कि कुछ कवि और कवयित्रियों की वासन्तिक रचनाओं से वेबसाइट में वसन्त के रंग भरेंगे, लेकिन स्वर साम्राज्ञी भारत

Lata Mangeshkar
Lata Mangeshkar

कोकिला लता मंगेशकर जी के दिव्य लोक चले जाने के कारण दो दिन ऐसा कुछ करने का मन ही नहीं हुआ… जब सारे स्वर शान्त हो गए हों तो किसका मन होगा वसन्त मनाने का… लेकिन दूसरी ओर वसन्त भी आकर्षित कर रहा था… तब विचार किया कि लता दीदी जैसे महान कलाकार तो कभी मृत्यु को प्राप्त हो ही नहीं सकते… वे तो अपनी कला के माध्यम से जनमानस में सदैव जीवित रहते हैं…

नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा
मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे

और यही सब सोचकर आज इस कार्य को सम्पन्न कर रहे हैं… लता दीदी वास्तव में माता सरस्वती की पुत्री थीं… तभी तो उनका स्वर कभी माँ वाणी की वीणा जैसा प्रतीत होता है… कभी कान्हा की बंसी जैसा… तो कभी वासन्तिक मलय पवन संग झूलते वृक्षों के पत्रों के घर्षण से उत्पन्न शहनाई के नाद सरीखा… तभी तो नौशाद साहब ने अपने एक इन्टरव्यू में कहा भी था “लता मंगेशकर की आवाज़ बाँसुरी और शहनाई की आवाज़ से इस क़दर मिलती है कि पहचानना मुश्किल हो जाता है कौन आवाज़ कण्ठ से आ रही है और कौन साज़ से…” उन्हीं वाग्देवी की वरद पुत्री सुमधुर कण्ठ की स्वामिनी लता दीदी को समर्पित है इस पृष्ठ की प्रथम रचना… माँ वर दे… सरस्वती वर दे…
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
वीणा पर वह भैरव गा दे, जो सोए उर स्वतः जगा दे |
सप्त स्वरों के सप्त सिन्धु में सुधा सरस भर दे ||
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
गूँज उठें गायन से दिशि दिशि, नाच उठें नभ के तारा शशि |

Vasant Panchami
Vasant Panchami

पग पग में नूतन नर्तन की चंचल गति भर दे ||
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
तार तार उर के हों झंकृत, प्राण प्राण प्रति हों स्पन्दित |
नव विभाव अनुभाव संचरित नव नव रस कर दे ||
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
वीणा पुस्तक रंजित हस्ते, भगवति भारति देवि नमस्ते |
मुद मंगल की जननि मातु हे, मुद मंगल कर दे ||
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…

अब, वसन्त का मौसम चल रहा है… जो फाल्गुन मास से आरम्भ होकर चैत्र मास तक रहता है… फाल्गुन मास हिन्दू वर्ष का अन्तिम महीना और चैत्र मास हिन्दू नव वर्ष का प्रथम माह होता है… भारतीय वैदिक जीवन दर्शन की मान्यता कितनी उदार है कि वैदिक वर्ष का समापन भी वसन्तोत्सव तथा होली के हर्षोल्लास के साथ होता है और आरम्भ भी माँ भगवती की उपासना के उल्लास और भक्तिमय पर्व नवरात्रों के साथ होता है… तो प्रस्तुत हैं हमारे कुछ साथियों द्वारा प्रेषित वासन्तिक रचनाएँ… सर्वप्रथम प्रस्तुत है डॉ ऋतु वर्मा द्वारा रचित ये रचना… प्रेम वल्लरी
हवाओं को करने दो पैरवी,
हौले हौले फूलों को रंग भरने दो
बस चुपचाप रहो तुम,
प्रेम वल्लरी अंबर तक चढ़ने दो
किरनों आओ, आकर धो दो हृदय आंगन
अब यहां आकर रहा करेंगे, सूर्य आनन
धड़कनों को घंटनाद करने दो,
विवादों को शंखनाद करने दो
प्रेम वल्लरी…..
सौंदर्यमयी आएगी पहनकर / नीहार का दुशाला
तुम भी दबे पांव आना / अति सजग है उजाला
प्रेम प्रालेय को देह पर गिरने दो,
चश्म के चश्मों को नेह से भरने दो
प्रेम वल्लरी….
ये हृदयहीन जाड़ा, क्यूं गलाये स्वप्न?
तेरा अलाव सा आगोश, पिघलाये स्वप्न
कहीं दूर शिखरों पर बर्फ गिरती है, तो गिरने दो
जलती है दुनिया पराली सी, तो जलने दो
प्रेम वल्लरी…..

और अब, रेखा अस्थाना जी की रचना… सखी क्या यही है वसन्त की भोर?

सखि क्या यही है वसन्त की भोर ?

खोल कपाट अलसाई नैनों से / देखा मैंने जब क्षितिज की ओर |
सुगंध मकरंद की भर गई / चला न पाई संयम का जोर ||
सखी कहीं यही तो नहीं वसन्त की भोर? |
फिर चक्षु मले निज मैंने / लगी तकन जब विटपों की ओर |
देख ललमुनियों का कौतुक / प्रेमपाश में मैं बंध गई
भीग उठे मेरे नयन कोर |
सखी यही तो नहीं वसन्त की भोर ||
फिर पलट कर देखा जब मैंने / बौराए अमुआ गाछ की ओर,
पिक को गुहारते वेदना में / निज साथी को बुलाते अपनी ओर |
देख उनकी वेदना, पीड़ा उठी मेरे पोर पोर |
सखी क्या यही है वसन्त की भोर ||
सुनकर भंवरे की गुंजार / पुष्प पर मंडराते करते शोर
अंतर भी मेरा मचल उठा |
सुन पाऊँ शायद मैं इस बार सखी
अपने प्रियतम के बोल |
लग रहा मुझको तो सखी यही है
अब वसन्त की भोर ||
मृदुल, सुगंधित, सुरभित बयार ने
आकर जब छुआ मेरे कोपलों को,
तन ऊर्जा से भर गया मेरा |
खुशी का रहा नहीं मेरा ओर-छोर |
अलि अब तो समझ ही गयी मैं,
यही तो है वसन्त की भोर ||

अब डॉ नीलम वर्मा जी का हाइकु…

बसंत-हाइकु

उन्मुक्त धरा

गा दिवसावसान

बसंत- गान

– नीलम वर्मा

अब पढ़ते हैं गुँजन खण्डेलवाल की रचना… पधार गए रति नरेश मदन…

माघ पौष से ठिठुरी, शुष्क धारा रति,

रूठी, उदास, फीकी, मन की जान रही गति,

सर्द तीखी हवा में बिखराए दूर्वा कुंतल,

रात भर तृण तृण पर बिछा तुहिन,

बुझाती विरह अनल,

श्वेत हिम के बगूलो से स्वयं जम गई,

नव सूर्य की प्रथम रश्मि से धीरे से पिघल गई,

उत्तरायण में ज्यों ली दिनकर ने करवट,

संवारने लगी वसुंधरा रूप अपना झटपट,

डगर, द्वार सजने लगी बलखाती लतिकाओं की बंदनवार,

कहे वसुधा – उठ अलि, उठ कलि, कर मेरा सोलह श्रृंगार,

सखी कोयल लगी कुहुकने, कीट भृंग करें गुंजार,

सुप्त तितलियों ने त्याग निद्रा सतरंगी पंख दिए पसार,

सरसों ने फैलाया उन्मुक्त पीला आंचल, दी लज्जा बिसार

रंग बिरंगे पुष्पों से शोभित हुए उपवन – अवनि,

बालियों से अवगुंठित पहन हार, ऋतुराज ढूंढे सजनी,

झटक कर अपने पुराने वसन,

नूतन पत्र पंखों से वृक्ष करते अगुवाई,

आंख मिचौली खेलती धूप, स्निग्ध ऊष्म से देती बधाई,

लहलहाने लगे खेत, उपवन करते अभिनंदन,

ईख उचक उचक लहराते, झुक झुक करते वंदन,

आम्रमंजरी, नव नीम पल्लव, पीपल कर रहे नमन,

चिड़ियों की चहक बजाएं ढोल शहनाई,

प्रफुल्ल पक्षियों ने जल तरंग बजाई,

लचकती टहनियां झूमें, छेड़े जो मलय पवन,

आनंद, प्रेम रस में हिलोरे लेते धरती गगन,

कामदेव प्रिया पीत अमलतास बिछाए,

शीश पर धर मयूर पंख किरीट रतिप्रिय मुस्काए,

कुमकुमी उल्लास, गुनगुनाते प्रेम राग पधार रहे ऋतुराज मदन,

पधार गए रति नरेश मदन।।

और अब प्रस्तुत है अनुभा पाण्डे जी की रचना… लो दबे पाँव आ गया वसन्त है…

धरती की हरिता पर यौवन अनंत है,

दिनकर की छाँव में प्रस्फुटित मकरंद है, पल्लवित कोंपलों में मंद हलचल बंद है,

लो दबे पाँव आ गया बसंत है |

शुष्क पत्र के छोड़ गलीचे,

झुरमुट हटा निस्तेज डाल की,

उल्लास की पायल झनकाती,

नव-जीवन मदिरा छलकाती,

धनी चूनर पहने धरती सराबोर रसरंग है…

लो दबे पाँव आ गया बसंत है |

झूम रहीं डाली, कलियाँ,

पत्ते सर-सर कर डाल रहे,

खेतों में नाचे गेहूँ, सरसों,

नभचर उन्मुक्त हुए, गगन मानो तोल रहे,

धरती, बयार दोनों थिरक रहे संग हैं…

लो दबे पाँव आ गया बसंत है |

फिर से कोयल कूकेगी,

फिर से अमरायी फूटेगी,

ओट से जीवन झांकेगा,

शैथिल्य की तंद्रा टूटेगी,

सुप्त तम का क्षीण-क्षीण हो रहा अंत है…

लो दबे पाँव आ गया बसंत है |

नयनाभिराम, अनुपम ये दृश्य,

रति- मदन मगन कर रहे हों नृत्य,

देव वृष्टि कर रहे ज्यों पुष्य,

मधु-पर्व की रागिनी पर सृष्टि की लय- तरंग,

शीत के कपोल पर कल्लोल कर रहा बसंत है,

लो दबे पाँव आ गया बसंत है |

माँ झंकृत कर दो मन के तार,

अलंकृत हों उद्गार, विचार,

हे वीना- वादिनी! दे विद्या उपहार,

धनेश्वरी, वाक्येश्वरी माँ! प्रार्थना करबद्ध है…

लो दबे पाँव आ गया बसंत है |

लो दबे पाँव आ गया बसंत है ||

अब प्रस्तुत कर रहे हैं रूबी शोम द्वारा रचित ये अवधी गीत… आए गवा देखो वसन्त…
आय गवा देखो बसंत, पिया नहीं आए रे
देखो सखी मोर जिया, हाय घबराए रे -3
फूल गेंदवा से चोटी, मैंने सजाई रे,
देख देख दरपन मा खुद ही लजाई रे |
अंजन से आंख अपन आंज लिंहिं आज रे
पर मोर गुइयां देखो साजन अबहुं नहीं आए रे |
आय गवा देखो बसंत सखी पिया नहीं आए रे |
पियर पियर सारी और लाल च चटक ओढ़नी
पहिन मै द्वारे के ओट बार बार जाऊं रे |
आय गवा देखो बसंत पिया नहीं आए रे -3
पियर पियर बेर शिव जी को चढ़ाऊं रे
पूजा के बहाने अब तो पिया का पंथ निहारूं रे
आय गवा देखो बसंत पिया नहीं आए रे |
पांती लिख लिख भेज रही मै हृदय की ज्वाला जल रही
आ जाओ पिया फाग में रूबी तुमरी मचले रे |
आय गवा देखो बसंत पिया नहीं आए रे
देखो सखी मोर जिया हाय घबराए रे |
ये है नीरज सक्सेना की रचना… बसंत…
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
धरती से पतझड़ की सायें का अंत
बेलों में फूलों की खुशबू अनंत
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
रचा सरसों के खेतों में बासंती रंग
इठलाई अमुआ की डाली बौरों के संग
कोयलियां कि कुह कुह जगावें उमंग
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
बहे मंद मंद पवन लेके भीनी सुगंध
घटी सर्दी की चादर कुहासें का अंत
दिनकर की आभा से चमचम दिगंत
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
गूंजे भौरें की गुंजन मधुप चखें मरकंद
देख मौसम के रंग जुड़े प्रेम के प्रसंग
जगे आशा की किरणें जगे भाव जीवंत
सखी आया वसंत सखी छाया वसंत
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं!

ये रचना श्री प्राणेन्द्र नाथ मिश्रा जी की है… आनन्द हो जीवन में…

नीरसता थी, नीरव था विश्व
हर ओर मौन छाया तब तक
मां सरस्वती की वीणा से
गूंजी झंकार नहीं जब तक |
अभिलाषा! ले आ राधातत्व
जीवन हो जाए कृष्ण भक्त,
शारदे की वीणा झंकृत हो
आलोक ज्ञान रस धरा सिक्त |
हो, कुसुम कली का कलरव हो
मन मारे हिलोरें दिशा दिशा
ढूंढती फिरे अमावस को
उत्सुक हो कर ज्योत्सना निशा |
झूमे पलाश, करे मंत्र पा
आहुति दे पवन, लिपट करके
नृत्यांगना बन कर वन देवी
नाचे पीपल से सिमट कर के |
यह पर्व है या यह उत्सव है
पावन मादकता है मन में
छूती वसंत की गलबहियां
कहतीं, आनंद हो जीवन में!

 

अब पढ़ते हैं नीरज सक्सेना जी की रचना… आया वसन्त…

सखी आया वसंत सखी छाया वसंत

धरती से पतझड़ की सायें का अंत

बेलों में फूलों की खुशबू अनंत

सखी आया वसंत सखी छाया वसंत

रचा सरसों के खेतों में बासंती रंग

इठलाई अमुआ की डाली बौरों के संग

कोयलियां कि कुह कुह जगावें उमंग

सखी आया वसंत सखी छाया वसंत

बहे मंद मंद पवन लेके भीनी सुगंध

घटी सर्दी की चादर कुहासें का अंत

दिनकर की आभा से चमचम दिगंत

सखी आया वसंत सखी छाया वसंत

गूंजे भौरें की गुंजन मधुप चखें मरकंद

देख मौसम के रंग जुड़े प्रेम के प्रसंग

जगे आशा की किरणें जगे भाव जीवंत

सखी आया वसंत सखी छाया वसंत

 

और अन्त में, डॉ रश्मि चौबे की रचना… देखो सखी, आया बसंत

यहाँ मौन निमंत्रण देता, देखो ,सखी आया बसंत !

धरती का यौवन देख सखी, फिर मुस्काया बसंत |

यहाँ मौन निमंत्रण देता, देखो, सखी आया बसंत |

वीणा वादिनी की धुन पर, कोकिला पंचम स्वर में गाती,

गुलाब सा चेहरा खिलाए, कोपलों से मेहंदी रचाती,

सरसों की ओढ़ चुनरिया, मलयगिरि संग चली है,

आम्र की डाल बौराई है, जैसे कंगना पहन चली है,

और स्वर्णिम रश्मियों से, नरमाई, कुछ शरमाई सी,

धरती का यौवन देख सखी, फिर मुस्काया बसंत |

हरियाली का लहंगा देखो, कितने रंगों से सजाया है,

पीली-पीली चोली देखो, गेंदों ने हार पहनाया है,

पाँव में छोटे फूल बिछे, जैसे कालीन बिछाया है,

देखो सब मदहोश हुए हैं, मदन ने तीर चलाया है,

आज वसुधा ने दुल्हन बन, बसंत से ब्याह रचाया है,

यहां मौन निमंत्रण देता, देखो फिर मुस्काया बसंत |

चलो सखी हम नृत्य करें, आओ यह त्योहार मनाते हैं,

मन सप्त स्वरों में गाता है, पग ठुमक- ठुमक अब जाता है,

राधा -श्याम की मुरली में, मेरा हृदय रम जाता है |

गुप्त नवरात्रों में माँ दुर्गे ने, योगियों के सहस्रार खिलाए है,

आ चल विवाह के मंडप में सखी, आत्मा को परमात्मा से मिलाएं |

संकलन – डॉ पूर्णिमा शर्मा…

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A tribute to Veteran Singer Lata Mangeshkar

from some of our Friends

अभी कल ही की तो बात है जब WOW India और साहित्य मुग्धा दर्पण द्वारा आयोजित वसन्तोत्सव में WOW India की अध्यक्ष डॉ लक्ष्मी ने लता जी का फिल्म “स्वप्न सुन्दरी” के लिया गाया कोयल के जैसा मधुर गीत “कुहू कुहू बोले कोयलिया” गाकर सुनाया था और हम सबने उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए ईश्वर से प्रार्थना की थी… लेकिन ऐसा सम्भव न हो सका और लगभग एक महीने का जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष – और अन्त में विजय मृत्यु की हुई – जीवन हार गया – आज सुबह ही समाचार मिला कि लगभग एक महीने तक स्वास्थ्य लाभ के लिए संघर्ष कर रही स्वर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर जी परम धाम को प्रस्थान कर गई हैं… वास्तव में सभी की आँखें नम हैं इस समाचार से… ऐसा लगता है जैसे भारत की आवाज़ ही कहीं गुम हो गई है… आजीवन स्वर की साधना में लीन रही लता मंगेशकर जी का निधन वास्तव में देश की कला और संस्कृति के लिए एक अपूरणीय क्षति है… किन्तु ये भी सत्य है कि ऐसी महान आत्माएँ कभी मरती नहीं… लता जी अपने स्वरों के माध्यम से सदा जीवित रहेंगी… नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज़ ही पहचान है… ऐसे ही कला के साधकों के लिए लिखा गया है… वास्तव में समझ नहीं आ रहा कि माँ सरस्वती के प्रादुर्भाव के दूसरे दिन ही वाग्देवी की वरद पुत्री लता मंगेशकर जी के पार्थिव का पञ्चतत्व में विलीन हो जाना मात्र एक संयोग कहें या क्या कहें…? अश्रुपूरित नेत्रों से विदा देते हुए हमारे कुछ साथियों ने श्रद्धा सुमन समर्पित किये हैं दिवंगत आत्मा के प्रति…

सरस्वती विसर्जन वाले दिन ही आज की सरस्वती का निधन एक संयोग मात्र है या कोई ईश्वरीय तय घटना..🙏… सरिता रस्तोगी

 

Veteran Lata ji passed away on such an auspicious day of maà Saraswati s visarjan… RIP🙏🏻🙏🏻How symbolic… she was maà Saraswati ji herself…. सुनन्दा श्रीवास्तव

 

थम गई गीत की सुर सरिता

लय टूट गई, गति हुई मन्द

छन्दों  का मान करें अब क्या

हो गया बन्द हर पद्यबन्ध

माँ वाणी की वीणा निस्तब्ध

सूनी है गोद भारती की

कोकिला सदा के लिए सुप्त

कैसी आई ये ऋतु वसन्त

पर सदा प्रवाहित वह धारा

निःसृत जो कण्ठ से थी उसके

और सदा करेगा मान जगत

उस सरगम को जो हुई रुद्ध

माँ वाणी की मानस पुत्री कोकिलकण्ठी स्वर साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर जी को अश्रुपूर्ण भावभीनी श्रद्धांजलि…. डॉ पूर्णिमा शर्मा

 

माँ सरस्वती का पूजन कल, आज लता जी कर गई विकल।

स्वर कोकिला भी गईं निकल, श्रद्धा में नत हो खड़े सकल।

आँख में नीर भी भर लेना, वतन के लोगों ठहर लेना।

सुर साम्राज्ञी थी भर लेना, याद को उनकी लहर देना।

भारत रत्न वही पुरस्कार, शोभा उनसे मिलती अपार।

वो भी उनको रहता निहार, स्वर, गीत, ताल का कर विचार।

श्रद्धा से अर्पण करे फूल, सुर सागर की बनी मस्तूल।

संगीत के वन की शार्दूल, वो अमर गीत दे बनीं धूल।

करबद्ध हुए, दिल आहत है, शान्त ईश्वर करे, चाहत है।

दुख है पर नहीं मसाहत है, वो गीत बचे ये राहत है।

आँखों से बहा हर काजल है, सुर पर अब छाया बादल है।

शेखर दुख ये दावानल है, ये अश्रुपूर्ण श्रद्धा जल है।

डॉ हिमांशु शेखर, पुणे

 

लता ताई संगीत की पहचान थी

वह तो वाणी वीणा की प्राण थी

पीढ़ी दर पीढ़ी का मधुर गान थी

हर ह्रदय बसी स्वर लहरी तान थी

उनकी आवाज देश की पहचान थी

भोर की पहली किरण जिस स्वर से हमे जागती थी

दोपहर की धूप जिनकी तान से शीतलता बांट जाती थी

जिसके सतरंगी गीतों से सज के सांझ उतर आती थी

जिनकी मीठी लोरियों से अखियों में नींद पसर जाती थी

थकी देह जिनके गीतों को सुनके सुकून से सुस्ताती थी

थम गई मधुर आवाज जो हर मन उमंग जगाती थी

सर्द रातों में जिनके गीतों से गरमाहट सी आ जाती थी

रिमझिम बारिश को जो आवाज ख़ुशगवार बना जाती थी

वो प्यार का तराना वो माँ की लोरी के गीतों की थाती थी

वो देश को समर्पित वो भाई बहन के रिश्तों को जगाती थी

अर्चना आरती वो संदेशो के गीतों से मन मे उतर जाती थी

जिनकी स्वर लहरी बुझते रिश्तों मे भी उम्र बढ़ाती थी

जिनके गीत उम्र के आखरी पड़ाव को जवां बना जाती थी

थम गई वह आवाज जो हर उम्र उमंग जगाती थी

नीरज सक्सेना, ग़ाज़ियाबाद

 

शारदा विसर्जन का दिन है

संग चली गईं, सुर साम्राज्ञी,

चिन्मयी कोकिला कंठ दिव्य

मृणमयी माते की अनुरागी।

तुम कितना भी दूर रहो,

दीदी! न तुम्हें हम भूलेंगे

जब भी गूंजेंगे तुम्हारे स्वर

हम नमन तुम्हें कर छू लेंगे।

🙏भावभीनी श्रद्धांजलि🙏

पी एन मिश्रा, कोलकाता

 

अपूर्णीय क्षति, हमारे देश की कोकिला कंठी का जाना हृदय शोक से भर गया। अत्यंत दुखद ,उनकी कमी कोई नहीं पूरी कर पाएगा , परन्तु उनकी आवाज अजर,अमर रहेगी। ईश्वर उनकी आत्मा को श्री चरणों में स्थान दें।🙏

ॐ शांति 🙏नूतन शर्मा, दिल्ली

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Vasant Kavi

आज फिर से खिल उठा मन, लो नवल मधुमास आया

ये सजीला सा मनोहारी नवल मधुमास आया

जी हाँ, पाँच फरवरी को वसन्त पञ्चमी है… ऋतुराज वसन्त के स्वागत हेतु WOW India ने साहित्य मुग्धा दर्पण के साथ मिलकर तीन फरवरी को डिज़िटल प्लेटफ़ॉर्म ज़ूम पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया… जिसमें देश के विभिन्न भागों से लब्ध प्रतिष्ठ कवि और कवयित्रियों ने अपने आकर्षक काव्य पाठ से मंच को गौरवान्वित किया… डॉ मंजु गुप्ता – दिल्ली से, डॉ नीलम वर्मा – दिल्ली से, सुश्री नीलू मेहरा – कोलकाता से, श्री प्राणेन्द्र नाथ मिश्रा जी – कोलकाता से, श्री हिमांशु शेखर जी – पुणे से और श्री नीरज सक्सेना जी – ग़ाज़ियाबाद से – आप सभी के हम हृदय से आभारी हैं कि आप लोगों ने हमारा आमन्त्रण स्वीकार कर अपने व्यस्त समय में से कुछ पल हम सबके साथ व्यतीत किये और कार्यक्रम को सफल बनाकर मंच को गौरवान्वित किया… दोनों संस्थाओं की ओर से आपको “वसन्त कवि” से सम्मानित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है…

कार्यक्रम का मनोहर और सफल संचालन किया लीना जैन ने… प्रस्तुत है इसी काव्य सन्ध्या की वीडियो रिकॉर्डिंग… देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें… डॉ पूर्णिमा शर्मा…

https://youtu.be/gcckClS9ERw

Dr. Manju Gupta
Dr. Manju Gupta
Mr. Neeraj Saxena
Mr. Neeraj Saxena
Mr. P N Mishra
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Dr. Neelam Verma
Dr. Neelam Verma
Ms. Neelu Mehra
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Mr. Himanshu Shekhar
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Padma Shri Sindhu Tai Mai

Gunjan Khandelwal
Gunjan Khandelwal

पद्मश्री सिन्धु ताई माई

इतिहास के पन्नों में न खो जाएँ – गुँजन खण्डेलवाल

गुँजन खण्डेलवाल जी की आज की प्रस्तुति – सिन्धु ताई माई के आदिवासियों के पुनर्वास की प्रक्रिया में भीख माँगकर बच्चों को पालने से लेकर पद्मश्री बनने तक की कहानी…

अभी सन् 2022 में प्रविष्ट ही हुआ था की 4 जनवरी को समाचार पढ़ा, सिंधु ताई नहीं रहीं | वज्रपात सा हुआ कि कितने सारे बच्चे एक साथ अनाथ हो गए | थोड़ा बहुत उनके बारे में पढ़ा सुना था | पर के बी सी की एक कड़ी में महानायक अमिताभ बच्चन का उनको पैर छूकर सम्मान देना और सदा सिर को पल्लू से ढक कर रखते हुए उनका मुस्कुराता अपनत्व भरा चेहरा याद हो आया | स्त्रीत्व के सभी गुण ममत्व, मर्यादा, गरिमा और आत्मविश्वास से भरपूर थीं वो |

वर्धा के बेहद गरीब चरवाहे परिवार में अवांछित रूप में जन्मी वो चिंदी (चिंडी मराठी में) कहलाई गईं | सन् 1948 में उनका जन्म हुआ था | विपरीत परिस्थितियों के कारण पढ़ाई में गहन रुचि रखने के बावजूद वे केवल चौथी कक्षा तक पढ़ सकीं | 12 वर्ष की उम्र में उनका विवाह उनसे लगभग 20 वर्ष बड़े व्यक्ति से करवा दिया गया | उनकी पहली संतान का जन्म तबेले में हुआ जब वे 20 वर्ष की थी क्योंकि उनके पति ने उन्हें घर से निकल दिया था | मायके वालों ने सहारा नहीं दिया तो भटकते हुए वो चिकलदरा तक जा पहुंची | यहां भी अपने स्वाभाविक गुण अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाते हुए आदिवासियों के पुनर्वास में मदद की |

अपने स्वयं के बच्चे को पालते हुए उन्हें स्टेशन पर एक और अनाथ बच्चा मिला जिसे उन्होंने अपना लिया | वो भीख मांग कर उन्हें पालती रहीं और उनके ‘बच्चों’ की संख्या बढ़ती गई | उनकी दिली इच्छा थी कि वे उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा व आश्रय दें सकें |

अपने शुरुआती दिन उन्होंने प्लेटफार्म पर बिताए व रातें श्मशान में क्योंकि वही स्थान उन्हें सुरक्षित लगा | धीरे धीरे स्वयं की बचत और संगठनों की मदद से अनेक बच्चों के आश्रय स्थल उन्होंने स्थापित किए | यहां बच्चों को नौकरी या काम धंधे में लग जाने तक रहने की स्वतंत्रता मिली | उनके पाले अनेक युवा देश – विदेश में कार्यरत है |

सिंधु ताई को डी. वाय. पाटिल इंस्टीट्यूट द्वारा मानद डॉक्टरेट भी दी जा चुकी है | उनकी बायोपिक ‘मी सिंधु ताई सपकाल’ 2010 लंदन फिल्म फेस्टिवल में वर्ल्ड प्रीमियर के लिए चुनी गई |

700 से भी अधिक पुरस्कारों से सम्मानित सिंधु ताई ने सारी राशि अनाथ बच्चों के घर बनाने में लगा दी | 2021 में वे राष्ट्रपति कोविद द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित हुई |

इनके पति वृद्धावस्था में इनके पास आए तो सहृदयता का परिचय देते हुए उन्हें भी आश्रय दिया |

यूं हीं नहीं मिलती राही को मंज़िल,

With orphan children
With orphan children

एक जुनून सा दिल में जगाना होता है |

पूछा चिड़िया से कैसे बना आशियाना

बोली – भरनी पड़ती है उड़ान बार-बार

तिनका तिनका उठाना होता है |

बाल दिवस पर जन्मी सिंधु ताई ने बाल गोपालों के लिए जीवन समर्पित कर दिया | संघर्षों के मध्य मार्ग बनाती और बताती, माई सभी के लिए प्रेरणा है | भावपूर्ण श्रद्धांजलि | जय हिंद!

गुंजन खंडेलवाल

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Christmas Vs Basil Worship Day

क्रिसमस बनाम तुलसी पूजन दिवस

Katyayani Dr. Purnima Sharma
Katyayani Dr. Purnima Sharma

कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा 

तुलसी पूजन दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सभी को सुबह की राम राम जी… आज कुछ विशेष बात करने का मन हुआ तो सुबह सुबह लिखने बैठ गए… आजकल “क्रिसमस बनाम तुलसी पूजन दिवस” एक अत्यन्त आवश्यक विषय बना हुआ है और बहुत दिनों से इस पर चर्चाएँ देखने सुनने पढ़ने में आ रही हैं | हम क्रिसमस के स्थान पर तुलसी पूजन दिवस मनाने की बात करते हैं – जो हमारी सनातन संस्कृति के विचार से बहुत अच्छा प्रयास है – हम भी सहमत हैं इस बात से कि निश्चित रूप से हमारा देश सांता का नहीं है – स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर, गुरु तेग बहादुर, गुरु नानक देव जैसे सन्तों का है – और इन सबने जो उच्च आदर्श स्थापित किये उनका सम्मान करना ही भारतीय संस्कृति का भी सम्मान करना होगा और यही हर भारतवासी का प्रथम कर्तव्य भी होना चाहिए |

लेकिन यहाँ एक बात अवश्य जानना चाहेंगे | आप सब जानते ही होंगे कि “क्रिसमस ट्री” को जब सजाया जाता है तो उस पर बहुत सारे उपहार लटका दिए जाते हैं जो बाद में सभी को दिए जाते हैं | बच्चों के लिए तो बहुत बड़ा आकर्षण होता है यह | साथ ही एक आकर्षण और होता है कि रात को जुराब में या बच्चों के तकिए के नीचे कोई उपहार छिपा दिया जाता है और बच्चे जब सुबह नींद से जागते हैं तो उस “सरप्राइज गिफ्ट” को देखकर उछल पड़ते हैं | इसी सन्दर्भ में कुछ दिन पहले एक सुझाव फॉरवर्ड किया था कि क्या हम क्रिसमस के स्थान पर तुलसी पूजन के अवसर पर ऐसा कुछ नहीं कर सकते ? इससे हमारे बच्चों में भी तुलसी पूजन के प्रति क्रिसमस जैसा ही उत्साह उत्पन्न होगा | हम तुलसी पूजन के समय वहाँ कुछ उपहार रखें जो बाद में प्रसाद के रूप में बच्चों में वितरित किये जाएँ तो बच्चे पूर्ण उत्साह के साथ उसमें भाग लेंगे और धीरे धीरे क्रिसमस के प्रलोभन को भूल जाएँगे | जिनके बच्चे 2 वर्ष से दस वर्ष तक की आयु के हैं वे एक बार ऐसा प्रयोग आरम्भ तो करें, केवल “क्रिसमस का बहिष्कार करो और उसके स्थान पर तुलसी पूजन करो” इस प्रकार की कोरी नारेबाजी से क्या कुछ सम्भव होगा ?

तुलसी वृक्ष की महानता को कोई नहीं नकार सकता – चाहे वह आयुर्वेद की दृष्टि से हो, सामाजिक या धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टि से हो – पर्यावरण की दृष्टि से हो – प्रत्येक दृष्टि से तुलसी, अश्वत्थ, वट, आमलकी इत्यादि वृक्षों की महानता से तो समूचा विश्व ही परिचित है – जो हम भारतीयों के लिए वास्तव में गर्व की बात है | नहीं मालूम क्रिसमस ट्री में इस प्रकार के कोई गुण हैं अथवा नहीं – इस विषय में या तो उन देशों के निवासी बता सकते हैं जहाँ यह बहुतायत से उत्पन्न होता है और इसी कारण से उन देशों में क्रिसमस के अवसर पर इसे सजाया जाता है, या फिर वनस्पति विज्ञान के ज्ञाता इस पर कोई प्रकाश डाल सकते हैं | इसीलिए हमारे देश और संस्कृति के अनुकूल वास्तव में तुलसी आदि वृक्षों का पूजन ही है |

हमने देखा है कि जब तुलसी विवाह होता है तो उस समय बहुत सारे उपहार उपस्थित अतिथियों को देने का एक प्रकार से “फैशन” हो गया है | कुछ परिवारों में तुलसी विवाह में हम भी गए हैं तो वहाँ विशेष रूप से सौभाग्यवती महिलाओं को बड़े अच्छे उपहार ख़ूबसूरत पैकिंग में भेंट किये गए – तो फिर “तुलसी पूजन दिवस” को बच्चों के मध्य आकर्षण का केन्द्र बनाने के लिए ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता…? इसीलिए आप सबसे विनम्र निवेदन है कि इस उपहार वाले प्रस्ताव पर एक बार विचार अवश्य कीजियेगा…

साथ ही एक बात हमारे इस महान देश के विषय में हम सभी को याद रखने की आवश्यकता है कि भारतीय वैदिक संस्कृति ने संसार की सभी संस्कृतियों का सम्मान करना सिखाया है… सभी को एक सूत्र में पिरोने का उदात्त विचार दिया है…

जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं नानाधर्माणं पृथिवी यथौकसम्‌ |
सहस्त्रं धारा द्रविणस्य मे दुहां ध्रुवेव धेनुरनपस्फुरन्ती ||
– अथर्ववेद 12/1/45 – जिसका आशय यही है कि…

विविध धर्म बहु भाषाओं का देश हमारा,

सबही का हो एक सरिस सुन्दर घर न्यारा ||

राष्ट्र भूमि पर सभी स्नेह से हिल मिल खेलें,

एक दिशा में बहे सभी की जीवन धारा ||

निश्चय जननी जन्मभूमि यह कामधेनु सम,

सबको देगी सम्पति, दूध, पूत धन प्यारा ||

धन्यवाद…

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Padma Shri Chutni Mahato

Gunjan Khandelwal
Gunjan Khandelwal

पद्मश्री छुटनी देवी – झारखंड की शेरनी

इतिहास के पन्नों में न खो जाएँ – गुँजन खण्डेलवाल

गुँजन खण्डेलवाल जी की आज की प्रस्तुति – छुटनी देवी के झारखण्ड की शेरनी बनने से लेकर पद्मश्री बनने तक की कहानी…

इक्कीसवीं सदी में जब तकनीक की दुनिया में हम कहां से कहां पहुंच गए हैं पर मानसिकता में बदलाव आज भी धीमी गति के समाचार की तरह ही है | अंधविश्वास, रूढ़िवादिता और अशिक्षा से झारखंड जैसे बहुत से राज्य अपने यहां इनसे रिलेटेड दुर्घटनाओं को रोक पाने में असहाय से हैं | पिछले दो दशक में तकरीबन पंद्रह सौ से अधिक महिलाएं ‘डायन प्रथा’ का शिकार हो काल कवलित हो चुकीं हैं | झारखंड के सराय केला – खरसोवा जिले के बीरबांस गाँव की रहने वाली छुटनी देवी की कहानी इसी अंधविश्वास से जन्मी है |

सितम्बर 1995 की घटना है, अपने ससुराल में ये सुखपूर्वक रह रही थी कि पड़ोस में रहने वाली एक लड़की बहुत बीमार हुई | ईर्ष्यावश या अज्ञान या अंधविश्वास कहें कि इन पर ‘डायन’ होने का आरोप लगाकर दंड स्वरूप 500 रुपए का जुर्माना वसूला गया | उसके बाद भी अगले दिन 40-50 लोगों ने इन्हें घर से घसीटा, मारा पीटा और मैला भी फेंका | इस सब की टीस आज भी उनके चेहरे पर लगी चोट के दाग में उभर आती है |

पति ने भी साथ छोड़ दिया तो अपने 3 बच्चो के साथ रातोरात ये उफनती खरकई नदी पार करके मायके आ गई | कुछ दिन बाद छुटनी देवी की माँ की मृत्यु हो गई और मजबूरन ये पेड़ के नीचे झोपड़ा बनाकर रहने लगी | मेहनत मजदूरी कर किसी तरह बच्चों का पालन पोषण करती रहीं |

1996-97 में भाग्य से इनकी मुलाकात ‘फ्लैक’ – फ्री लीगल एडवाइजरी कमेटी के सदस्यों से हुई जिससे इनकी कहानी मीडिया द्वारा चर्चित हुई | इन पर नैशनल

Chutni Mahato - Padma Shree Award
Chutni Mahato – Padma Shree Award

ज्योग्राफिक सोसायटी ने एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई | अब छुटनी देवी ने अपने जैसी ‘डायन’ करार कर दी जाने वाली महिलाओं की मदद की मुहिम छेड़ दी है |

छुटनी देवी आज ‘आशा’ के पुनर्वास केंद्र की निदेशक के रूप में काम कर रहीं हैं | अपने जैसी 65 से अधिक महिलाओं को ये ‘बलि’ होने से पूर्व पुनर्जीवन दे चुकी हैं | कहीं से भी ऐसी प्रताड़ना आदि की सूचना मिलते ही इनकी टीम आरोपियों के खिलाफ लीगल एक्शन लेने पहुंच जाती है | आज वे झारखंड की शेरनी कहलाती हैं |

अशिक्षित होने पर भी ये हिंदी, बंगला व उड़िया भाषा में माहिर हैं | अपने बच्चों को इन्होंने सुशिक्षित किया है | प्रताड़ित व निर्धन परिवार के कम से कम 10 से 15 लोगों को वो प्रतिदिन अपने खर्च से भोजन कराती हैं, इसमें कोई भी शासकीय मदद नहीं मिलती है |

छुटनी देवी उदहारण है उस साहसी महिला का जो जुल्म का शिकार बनी पर प्रतिकार स्वरूप अपने जैसी पीड़िताओं का सम्बल बन समाज की रूढ़िवादी व अंधविश्वासी सोच से लड़ रही हैं | नारी का ये ‘काली रूप’ भी वंदनीय है जहां वो कुप्रथा के राक्षस का उन्मूलन कर रही है | जय हिंद!

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Padmashree Harekala Hajabba

Gunjan Khandelwal
Gunjan Khandelwal

पद्मश्री हरेकला हजब्बा: अक्षरसंथ

इतिहास के पन्नों में न खो जाएँ – गुँजन खण्डेलवाल

सूती लुंगी व साधारण सी कमीज़ पहने, गले में गमछा डाले हजब्बा जब अपनी चप्पल उतारकर राष्ट्रपति कोविंद जी से अवॉर्ड लेने पहुंचे तो दर्शकों को कौतूहल और विस्मय हुआ | “सामने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कई बड़े बड़े लोग बैठे थे, मैं भला उनके सामने चप्पल कैसे पहन सकता हूं”, ऐसा विनम्रता की प्रतिमूर्ति हजब्बा का कहना था |

कर्नाटक के मंगलुरू के समीप न्यूपाडपु गांव के हजब्बा प्रतिदिन उधारी से संतरे लेकर बस डिपो पर बेचा करते थे | करीब 30 वर्ष पहले की एक छोटी सी घटना ने उनके मन पर गहरा प्रभाव डाला | एक विदेशी ने उनसे अंग्रेज़ी में संतरे का दाम पूछा, वे समझ नही पाए और चुप रह गए | अपने पढ़े लिखे नहीं होने की शर्मिंदगी को उन्होंने एक पॉजिटिव मिशन के रूप में लिया और अपने विद्यालय रहित गांव में स्कूल बनाने की ठान ली ताकि वे वहां के निर्धन बच्चों को शिक्षित कर सकें | अपनी स्वयं की बहुत मामूली बचत और अन्यों से सहयोग लेकर उन्होंने ये स्वप्न साकार किया | एक मस्जिद में छोटे बच्चो का पहला स्कूल बना जो आज बढ़ते बढ़ते बड़ा विद्यालय बन गया है |

Selling Oranges on the Street Harekala Hajabba
Selling Oranges on the Street Harekala Hajabba

हजब्बा के इस बिग ड्रीम को साकार करने में लोगों का बहुत सहयोग रहा | कृतज्ञता स्वरूप उनकी नाम पट्टिका स्कूल में लगवाई गई है | उन्हें अपने इस मिशन से संबंधित प्रत्येक घटना व व्यक्ति आज भी याद है | उनका एक कक्ष देश विदेश से प्राप्त अवार्डों से सज्जित है पर प्राप्त धनराशि वे स्कूल की ही मानते हैं |

शिक्षा का धर्म अन्य धर्मों से बड़ा है, संभवतः इसी लिए हर जाति के लोगों से उन्हें मदद मिली |

अल्जाइमर से ग्रस्त बीमार पत्नी, दो विवाह योग्य बेटियों और ‘पेड लेबरर’ बेटे के पिता हजब्बा प्रति दिन ये सब भूल कर स्वयं स्कूल के कक्ष खोलते हैं और भीतर जाने के पूर्व चप्पल उतरना नहीं भूलते और फिर निकल जाते हैं आज भी संतरे बेचने के काम पर, आंखों में अपने विद्यालय को कॉलेज बनता देखने का स्वप्न लिए जो कल साकार होगा |

स्वयं अशिक्षित होने पर भी, अन्यों को शिक्षित करने का हज्जबा का जज़्बा और विश्वास समाज सेवा के रूप में मिसाल बन गया है | इसी निश्चय और प्रयत्नों ने लोगों को उन्हें मदद देने को प्रेरित किया है |

“मैं तो अकेले ही चला था जानिब – ए मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया” | जय हिंद… गुँजन खण्डेलवाल

bookmark_borderHumour – Backbiting

Humour – Backbiting

आओ ज़रा सा हँस भी लें

Rekha Asthana
Rekha Asthana

हास्य रस – निंदा रस – रेखा अस्थाना 

जी हाँ निंदा रस… बहुत परिश्रम से किसी किसी के पास ही होता है, पर सौभाग्य  स्त्री को इसका मिलता है | पुरुष क्या जाने इसका स्वाद ? स्त्रियाँ जब इस रस की वार्ता में व्यस्त  हो जाती हैं उनका हृदय आनंद से सराबोर हो जाता है | अपना ध्यान सारा का सारा बोझिल कर्तव्यों से हटाकर बस निंदा रस के आनंद में मगन हो श्वेत पंख सी हल्की हो आकाश में विचरण करने लगती हैं | अंतर की सारी बेकार की बातें निकाल फेंकती हैं | चाहे वह सास, नन्द या पड़ोसी जो भी हो जिसको स्त्रियाँ पसन्द नहीं करती बस अपनी सखी से उसकी निंदा करना शुरू देती हैं | सच मानिए, तब उनका चेहरा कमल की तरह खिल उठता है 😊

अरे जनाब आप पुरुषों में ये गुण कहाँ जो हम स्त्रियों में है |

अब बोलो हमें इसी कारण हार्ट अटैक की संभावना भी कम होती है | जब हमारे पास निंदा रस है तो हम क्यों सेवन करें बीटरूट जूस, एलोवेरा जूस 😊

हम तो बस एक दो  टे टहलते हुए या जैसा भी माहौल हो जी भर के निंदा रस में मशगूल हो उसका सेवन करने और कराने में लग जाते हैं और बिल्कुल तरोताजा हो घर पर आराम से काम करते हैं | खर्राटे मार कर सोते हैं | अरे ये तो ईश्वर के द्वारा दिया हुआ गुण है हमें, तो क्यों न इसका उपयोग कर स्वस्थ रहें हम 😊

और ये सब तो नीतिपरक स्लोगन पुरुष ही अपने ऊपर लागू करें | ठीक कहा न हमने 😊

जय राम जी की… रेखा अस्थाना…