Today I am sharing an article by Dr Deepika Kohli on Understanding Fatty Liver. Dr. Kohli is a Joint Secretary of WOW India and a well-known Dietitian/Nutritionist in Mayur Vihar Ph-I, Delhi and has an experience of 26 years in this field. Ms. Deepika Kohli practices at Deepika’s Diet Clinic in Mayur Vihar Ph-I, Delhi, Jeevan Anmol Hospital in Mayur Vihar Ph-I, Delhi and Life Care Centre in Preet Vihar, Delhi. She is a Certified Diabetes Educator ) from Pfizer in 2011. She is a member of Indian Dietetic Association. Some of the services provided by the doctor are: Diabetic diet, PCOD Diet, Weight Gain Diet Counselling, Therapeutic Diet’s and Weight Loss Diet Counselling etc. Must read… Dr. Purnima Sharma, Secretary General & Editor of WOW Website…
Understanding Fatty Liver
Causes, Symptoms, and Management
Fatty liver, also known as hepatic steatosis, is a condition characterized by the accumulation of fat in the liver cells. While a small amount of fat in the liver is normal, excessive fat build-up can lead to inflammation and liver damage. Fatty liver can be categorized into two main types: alcoholic fatty liver disease (AFLD) and non-alcoholic fatty liver disease (NAFLD).
*Non-Alcoholic Fatty Liver Disease (NAFLD)**
NAFLD is the most common form of fatty liver and is not related to excessive alcohol consumption. It often occurs in individuals who are overweight or obese, have type 2 diabetes, or have metabolic syndrome. NAFLD encompasses a spectrum of liver conditions, ranging from simple fatty liver (steatosis) to non-alcoholic steatohepatitis (NASH), which involves inflammation and liver cell damage. If left untreated, NASH can progress to more severe liver complications, such as cirrhosis and liver failure.
**Alcoholic Fatty Liver Disease (AFLD)**
As the name suggests, AFLD is caused by excessive alcohol consumption over an extended period. Alcohol is metabolized in the liver, and chronic alcohol abuse can lead to the accumulation of fat in liver cells, inflammation, and liver damage. AFLD may progress to more severe forms of liver disease, including alcoholic hepatitis and cirrhosis, if alcohol consumption continues.
*Causes of Fatty Liver* *
The exact cause of fatty liver is not fully understood, but several factors contribute to its development:
* *Obesity and Metabolic Syndrome**: Excess weight, particularly abdominal obesity, and conditions like insulin resistance and high blood sugar levels are closely associated with NAFLD.
**Type 2 Diabetes**: Insulin resistance and high blood sugar levels in individuals with type 2 diabetes can contribute to the accumulation of fat in the liver.
* *High Cholesterol and Triglycerides**:
Elevated levels of cholesterol and triglycerides in the blood can increase the risk of fatty liver.
* *Alcohol Consumption**: Chronic alcohol abuse is a significant risk factor for AFLD.
* *Genetic Factors**: Some genetic factors may predispose individuals to develop fatty liver.
*Symptoms of Fatty Liver**
Fatty liver often does not cause noticeable symptoms in its early stages. However, as the condition progresses, individuals may experience:
Fatigue
Weakness
Abdominal discomfort or pain in the upper right side
Enlarged liver
Jaundice (yellowing of the skin and eyes) in severe cases
*Diagnosis and Management* *
Fatty liver is often diagnosed through blood tests, imaging studies (such as ultrasound or MRI), and sometimes a liver biopsy. Management of fatty liver focuses on addressing underlying risk factors and lifestyle modifications:
**Weight Loss**: Achieving and maintaining a healthy weight through a balanced diet and regular exercise is essential for managing fatty liver, especially in individuals with NAFLD.
* *Healthy Diet**: A diet low in saturated fats, refined carbohydrates, and added sugars, and high in fruits, vegetables, whole grains, and lean proteins can help reduce fat accumulation in the liver and improve liver health.
* *Regular Exercise**: Regular physical activity can help improve insulin sensitivity, aid in weight loss, and reduce liver fat.
* *Limit Alcohol Consumption**: Individuals with AFLD should limit or avoid alcohol consumption altogether to prevent further liver damage.
* *Medications**: In some cases, medications may be prescribed to manage underlying conditions such as diabetes, high cholesterol, or metabolic syndrome.
In conclusion, fatty liver is a common condition characterized by the accumulation of fat in liver cells. While it may not cause noticeable symptoms in its early stages, fatty liver can progress to more severe liver complications if left untreated. Lifestyle modifications, including weight loss, healthy diet, regular exercise, and limiting alcohol consumption, are key components of managing fatty liver and improving liver health. Individuals with fatty liver should work closely with their healthcare providers to develop a personalized treatment plan tailored to their needs.
हिन्दू मान्यता के अनुसार ऋद्धि सिद्धिदायक भगवन गणेश किसी भी शुभ कार्य में सर्वप्रथम पूजनीय माने जाते हैं | गणेश जी को विघ्नहर्ता माना
जाता है, यही कारण है कि कोई भी शुभ कार्य आरम्भ करने से पूर्व गणपति का आह्वाहन और स्थापन हिन्दू मान्यता के अनुसार आवश्यक माना जाता है | चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित मानी जाती है और इस दिन गणपति की उपासना बहुत फलदायी मानी जाती है |
माह के दोनों पक्षों में दो बार चतुर्थी आती है | इनमें पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है | इस प्रकार यद्यपि संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर माह में होता है, किन्तु माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का विशेष महत्त्व माना जाता है |
इस वर्ष कल यानी 29 जनवरी को माघ कृष्ण चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाएगा – जिसे विघ्न विनाशक गणपति की पूजा अर्चना के कारण लम्बोदर चतुर्थी तथा आम भाषा में सकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है | कल सूर्योदय 7:11 पर है, उससे एक घण्टा पूर्व 6:11 के लगभग बव करण और शोभन योग में चतुर्थी तिथि का आगमन होगा जो तीस तारीख़ को प्रातः 8:55 तक रहेगी, अतः कल ही संकष्टी चतुर्थी के व्रत का पालन किया जाएगा | कल चन्द्र दर्शन रात्रि नौ बजकर दस मिनट के लगभग होगा | इस व्रत को माघ मास में होने के कारण माघी भी कहा जाता है तथा इसमें तिल के सेवन का विधान होने के कारण तिलकुट चतुर्थी भी कहा जाता है | उत्तर भारत में तथा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इस व्रत की विशेष मान्यता है और विशेष रूप से माताएँ अपनी सन्तान की मंगल कामना से इस व्रत को करती हैं |
गणपति की पूजा अर्चना के साथ ही संकष्टी माता या सकट माता की उदारता से सम्बन्धित कथा का भी पठन और श्रवण इस दिन किया जाता है | कथा अनेक रूपों में है – अपने अपने परिवार और समाज की प्रथा के अनुसार कहीं भगवान शंकर और गणेश जी की कथा का श्रवण किया जाता है कि किन परिस्थितियों में गणेश जी को हाथी का सर लगाया गया था | कहीं कुम्हार की कहानी भी कही सुनी जाती है | तो कहीं कहीं गणेश जी और बूढ़ी माई की कहानी तो कहीं साहूकारनी की कहानी कही सुनी जाती है | किन्तु, जैसी कि अन्य हिन्दू व्रतोत्सवों की कथाओं के साथ कोई न कोई नैतिक सन्देश जुड़ा होता है, इन कथाओं में भी कुछ इसी प्रकार के सन्देश निहित हैं कि कष्ट के समय घबराना नहीं चाहिए अपितु साहस से बुद्धि पूर्वक कार्य करना चाहिए, माता पिता की सेवा परम धर्म है, लालच और ईर्ष्या अन्ततः कष्टप्रद ही होती है तथा मन में लिए संकल्प को अवश्य पूर्ण करना चाहिए |
साथ ही, पूजा में जो तिलकुट का प्रयोग किया जाता है वह भी ऋतु के अनुसार ही है – तिल और गुड़ का कूट बनाकर भोग लगाया जाता है जो कडकडाती ठण्ड में कुछ शान्ति प्राप्त करने का अच्छा उपाय है | ऐसा भी माना जाता है कि तिल में फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा अधिक होने के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है | ऐसा भी ज्ञात हुआ है कि तिल में जो एंटीऑक्सीडेंट होता है वह अनेक प्रकार के कैंसर की सम्भावनाओं को क्षीण करता है | तिलों के सर्दियों में सेवन से जोड़ों में दर्द नहीं होता, स्निग्ध बनी रहती है | बालों के लिए भी तिल उपयोग लाभकारी माना जाता है | वैसे ये सब दादी नानी के नुस्ख़े हैं, मूल रूप से तो ये सब डॉक्टर्स के विषय हैं – वही इस दिशा में जानकारी दें तो अच्छा होगा |
अस्तु ! हम सभी परस्पर प्रेम और सौहार्द की भावना के साथ ऋद्धि सिद्धिदायक विघ्नहर्ता भगवान गणेश का आह्वाहन करें और प्रार्थना करें कि गणपति सभी को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त रखें… इसी कामना के साथ सभी को संकष्टी चतुर्थी के व्रत की हार्दिक शुभकामनाएँ…
तॄणैर्गुणत्वमापन्नैर्बध्यन्ते मत्तदन्तिन: || हितोपदेश 1/35
अल्प वस्तुओं को भी यदि
एकत्र करें, एक डोर में गूंथे
कार्य सिद्ध उनसे हो जाए
गर्व से सर ऊंचा हो जाए
तिनकों से एक डोर बने जब
करि मदमत्त भी बंध जाता है
मनुज एकता भाव में बंधकर
बड़े लक्ष्य भी पा सकता है
जी हां, छोटी छोटी वस्तुओं को भी यदि एक स्थान पर एकत्र किया जाए तो उनके द्वारा बड़े से बड़े कार्य भी किये जा सकते हैं | उसी प्रकार जैसे घास के छोटे छोटे तिनकों से बनाई गई डोर से एक मत्त हाथो को भी बाँधा जा सकता है | वास्तव में एकता में बड़ी शक्ति है ऐसा हम सभी जानते हैं | तो क्यों न गणतन्त्र दिवस के शुभावसर पर हम सभी मनसा वाचा कर्मणा एक हो जाने का संकल्प लें ? इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि हम सब एक जैसे ही कार्य करें, एक जैसी ही बोली बोलें या एक जैसे ही विचार रखें | निश्चित रूप से ऐसा तो सम्भव ही नहीं है | प्रत्येक व्यक्ति की पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यावसायिक आदि विभिन्न परिस्थितियों की आवश्यकताओं के अनुसार हर व्यक्ति मनसा वाचा कर्मणा एक दूसरे से अलग ही होगा | हर कोई एक ही बोली नहीं बोल सकता | हर व्यक्ति की सोच अलग होगी | हर व्यक्ति का कर्म अलग होगा | मनसा वाचा कर्मणा एक होने का अर्थ है कि हम चाहे अपनी परिस्थितियों के अनुसार जो भी कुछ करें, पर मन वचन और कर्म से किसी अन्य को किसी प्रकार की हानि पहुँचाने का जाने अनजाने प्रयास न करें | और जब आवश्यकता हो तो पूरी दृढ़ता के साथ एक दूसरे को सहयोग दें | मनसा वाचा कर्मणा एक सूत्र में गुँथने का अर्थ है कि हम अपनी व्यक्तिगत समस्याओं और आवश्यकताओं के साथ साथ सामूहिक समस्याओं और आवश्यकताओं पर भी ध्यान दें… जैसे बच्चों और महिलाओं का सशक्तीकरण यानी Empowerment… और बच्चों तथा महिलाओं का स्वास्थ्य यानी Good Health… यदि इन दोनों विषयों के लिए हम सामूहिक प्रयास करते हैं तो हम मनसा वाचा कर्मणा एकता की डोरी में ही गुँथे हुए हैं… सर शान से उठाए लहराता तिरंगा भी यही तो सन्देश देता है कि कितनी भी विविधताएँ हो, कितने भी वैचारिक मतभेद हों, किन्तु अन्ततोगत्त्वा राष्ट्रध्वज के केन्द्र में चक्रस्वरूप सबके विचारों का केन्द्र देश ही होता है… अर्थात अपने अपने कार्य करते हुए, अपनी अपनी सोच के साथ, अपनी अपनी भाषा का सम्मान करते हुए साथ मिलकर आगे बढ़ते जाना… ऐसी स्थिति में न विचार बाधा बनेंगे, न भाषा, न वर्ण, न वेश, और न ही कर्म… ऐसे देश को निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होने से कोई रोक नहीं सकता…
समानो मन्त्र: समिति: समानी, समानं मन: सहचित्तमेषाम् |
समानं मन्त्रमभिमन्त्रयेव:, समानेन वो हविषा जुहोमि || – ऋग्वेद
हम सब कार्य करें संग मिलकर
एक समान विचार बनाकर
चित्त और मन एक जैसे हों
और मन्त्रणा भी हो मिलकर
तब ही सम निष्कर्ष पे पहुँचें
राष्ट्र के हित में हर पल सोचें
सद्भावों के यज्ञ से जग को
करें सुगन्धित साथ में मिलकर
मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्, मा स्वसारमुत स्वसासम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया | – अथर्ववेद
भाई भाई में द्वेष रहे ना
दो बहनों में क्लेश रहे ना
जग सेवा संकल्पित हों सब
वाणी में कोई खोट रहे ना
प्रेममयी वाणी से जग को
स्नेहसरस आओ अब कर दें
ॐ सहनाववतु | सहनौ भुनक्तु | सहवीर्य करवावहै | तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै – कृष्ण यजुर्वेद
साथ में मिलकर कार्य करें सब
स्नेह भाव हो सबके मन में
साथ में मिलकर भोग करें सब
त्याग भाव हो सबके मन में
शौर्य करें सब, साथ खड़े हों
और अध्ययन तेजस्वी हो
द्वेष भाव का त्याग करें सब
राम राज्य हो सबके मन में
जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं,
नाना धर्माणां पृथिवी यथौकसम् |
सहस्रं धारा द्रविणस्य मे दुहां,
ध्रुवेव धेनु: अनपस्फुरन्ती || – अथर्ववेद
विविध धर्मं बहु भाषाओं का देश हमारा,
सबही का हो एक सरिस सुन्दर घर न्यारा ||
राष्ट्रभूमि पर सभी स्नेह से हिल मिल खेलें,
एक दिशा में बहे सभी की जीवनधारा ||
निश्चय जननी जन्मभूमि यह कामधेनु सम,
सबको देगी सम्पति, दूध, पूत धन प्यारा ||
हमारे वैदिक ऋषियों ने किस प्रकार के परिवार, समाज और राष्ट्र की कल्पना की थी – एक राष्ट्र एक परिवार की कल्पना – ये कुछ मन्त्र इसी कामना का एक छोटा सा उदाहरण हैं… अभी 26 जनवरी को हमारे देश के महान गणतंत्र दिवस का समारोह सभी देशवासियों ने पूर्ण हर्षोल्लास से मनाया… इस महान अवसर पर वैदिक ऋषियों की इस उदात्त कल्पना को हम अपने जीवन का लक्ष्य बनाने का संकल्प लें यही वास्तविक उत्सव होगा गणतंत्र का… और इसी भावना के साथ हमारे WOW India के कुछ सदस्यों ने अपने मन के भावों को शब्दों की माला में पिरोकर हमें भेजा जो प्रस्तुत हैं इस संकलन में… जयहिन्द… वन्देमातरम्…
—–कात्यायनी
जो भारत पर जान दिए फिर आजादी संजो लाए थे,
जो अपना सर्वस्व देश हित हंस कर यहां गवाएं थे,
है नमन उन्हें है नमन उन्हें शत बार नमन है वीरों को,
जो पहने माला फांसी की आजादी दुल्हन लाए थे,
– मीना कुण्डलिया
दिलो जाँ से प्यारा, चमन ये हमारा
है सोने की चिड़िया, वतन ये हमारा
है महफ़ूज़ अब ये जमीं, ये समंदर
है महफ़ूज़ नीला, गगन ये हमारा
ये माना कि आसाँ नहीं राह आगे
है बेखौफ़ फिर भी तो मन ये हमारा
रहे परचम-ए-हिंद ऊंचा जहाँ में
ना टूटे कभी भी , वचन ये हमारा
– डा नीलम वर्मा
बलिदानी, रचनाकार थे कल
देकर स्वतंत्रता आगे बढ़े
प्रतिनियति रक्त दे भारत को
इस देश की रचना को भी गढ़े |
परिणाम है उनकी रचना का
हम प्रजातंत्र के देश में हैं
गणतंत्र विधाएं अपनी है
बलिदानी, भारत भेष में है |
करते हैं नमन उन वीरों को
जो आज का दिन दिखलाएं हैं
भारत स्वतंत्रता रक्त रचित
से प्रजातंत्र हम पाए हैं |
सम्मानित हो यह प्रजातंत्र
सम्मानित हो गणतंत्र दिवस
बच्चा बच्चा यह बोल रहा
जय भारत, जय भारत अंतस |
– प्राणेंद्र नाथ मिश्र
राष्ट्र ही आराधना है , राष्ट्र ही मेरा सुधर्म ,
राष्ट्र ही बस वन्दना है , राष्ट्र ही मेरा सुकर्म ,
राष्ट्र को ही हूं समर्पित ,मैं मेरे मन,क्रम ,वचन ,
राष्ट्र सबका राष्ट्र के सब,राष्ट्र को शत-शत नमन ।
धन-मन मेरा है राष्ट्र का , राष्ट्र को अर्पित यह तन ,
राष्ट्रवादी हों देशवासी , हो राष्ट्रवादी प्रत्येक जन ,
काट कर विद्वेष के तम , हो उदय नव भास्करम् ,
आज निकले हर हृदय से, बस एक वन्देमातरम् ।
अनेकता को एकता में हमने संवारा है ,
मूलमन्त्र पंचशील के भी तो हमारे हैं।
हिमगिरि-मुकुट शीश शोभित है देश के,
चरण पखारें हिन्द,अरब उदधि प्यारे हैं।।
नदियों की धाराएं ज्यों धमनी, शिराएं हों ,
वन-उपवन ज्यों हों फुफ्फुसीय रचनाएं ।
ज्यों हों मजबूत अस्थि पंजर भारत देश का,
वो हैं अरावली व दोनों घाट पर्वत-श्रंखलाएं।।
निगमागम,पुराणों की शुचि भूमि भारत
है,देवों के विविध अवतार बहु बखाने हैं।
सलिला,गिरि, मूर्तियां,सूर्य,चन्द्र पूज्य यहां ,
धर्म, सम्प्रदाय,पंथ, संस्कृति बहु जाने हैं ।।
वेद-चक्षु मानते हैं, ईश्वरीय विज्ञान ज्योतिष ,
ऋग्वेद से प्रतिष्ठित देश की ज्यों आत्मा हैै।
जैमिनी, पाराशरी,के पी,रमल हैं आंकिकी ,
विविध शाखा, विविध विधि स्वीकार्यता है।।
विविध हैं मन्दिर और पूजा स्थल भी विविध,
ग्रहस्थ-संत,फकीर,योगी,साधु भी धर्मात्मा हैं।
ध्यान,भक्ति, ज्ञान,हठ,लय, तंत्र,राज योग में ,
विविध योगी,साधनारत,मिशन में परमात्मा हैं।।
वेशभूषा भी विविध हैं और खान-पान भी ,
विविध हैं भाषा यहां, विविध उच्चारण भी हैं।
विविध सम्मिश्रण मृदा का,भूमिगत जल भी
विविध,प्रथकत: प्रदेशों का वातावरण भी है ।।
विविध भाषा,भाषी,साधक साधनाऐं भिन्न हैं,
खाना,पानी, वेशभूषा, गर्मी-ठण्डक भिन्न हैं ।
निगम,आगम,पुराण, ज्योतिष भी विविध हैं,
संस्कृति, साहित्य, देवी देवता भी विविध हैं।।
विविध राजनैतिक दलों की धारणाएं भिन्न हैं ,
भिन्न हैं सबके समर्थक, झण्डे,नारे भिन्न हैं।
विविधता में एकता ही इस देश की बस एक है,
बात हो जब देश की तो भारतीय सब एक हैं।।
एक है जन,गण,मन हमारा,एक ही विज्ञान है,
हरेक जन,गण के ही मन पर सभी का ध्यान है ।
अवसरों,अभिव्यक्ति, शिक्षा, आस्था, स्वतंत्र है,
विविध पुष्पों के गुच्छ सा अभिनव मेरा गणतंत्र है।।
प्रभात शर्मा
गण के लिए ही गण के द्वारा हिन्दोस्तान है,
देशभक्तों की शहादत का ये हिंदुस्तान है।
रोजी रोटी के नाम पे वोट बिक रहे यहां,
फिर भी गरीबी, बेकारी कम क्यूँ ना है।
हर रोज नये कानून बन रहे हैं यहां,
फिर भी यहां पे बेटियां महफूज़ क्यूँ ना है।
शिक्षा,स्वास्थ्य, पानी भी बिकने लगा यहां,
आपा-धापी लूट है, चैन कयूँ ना है।
आम आदमी की जरूरते एक है यहां,
लहू का रंग एक है तो प्यार क्यूँ ना है।
संविधान में अधिकार है सबके लिए यहां,
उनके लेने देने में समता क्यूँ ना है।
झरना माथुररंग- बिरंगा देश है मेरा,
वसुधा है चित्रकला सी।
रंग -बिरंगे फूलों से सजी, धरती लगती दुल्हन सी,
झरने झर- झर बहते हैं, नदियाँ गातीं हैं कल-कल।
हरियाली का जब, रूप निखराता,
हवा से बातें करता है।
हिमालय रक्षा करता,
देश के मुकुट समान हैं।
सूरज आरती करता,
प्यार लुटाता चाँद है,
पैर पखारता सागर,
भारत माँ का करता गुणगान है ।
रंग बिरंगी वेश-भूषा,
कहीं साड़ी, कहीं लहंगा,
कहीं कुर्ती, कहीं वर्दी है,
शाल, दुशाला ओढ़े,
बेटियाँ भारत की जान है ।
हिंदी, उर्दू, बंगाली, गुजराती,
मराठी, पंजाबी,
अलग-अलग हैं भाषा,
लेकिन भाव एक समान हैं ।
कभी सावन के मेले तो,
कभी दिवाली के दीपक हैं,
कहीं ईद पर गले मिले सब,
होली के रंग में नहाए हैं।
संस्कृति, परंपरा,
से हमारी शान है।
कहीं गुरु ग्रंथ का मान हैं।
कहीं गीता और कुरान है।
भारतवासी इतने प्यारे,
सब धर्मों का करते सम्मान हैं।
डा रश्मि चौबेआजादी कैसे पाई हमने
ये बतलाना मुश्किल है
कितनों ने है जान गंवाई
ये कह पाना मुश्किल है
डट कर हम थे खड़े रहे
बांध कफ़न सब अड़े रहे
अंग्रेजों के जुल्मों सितम का
कौन नहीं बना निशाना
ये समझाना मुश्किल है
शहीदों ने अपने लहू से
लिखी आजादी की अमर कहानी
ये बात अपनी जुबां पर लाना मुश्किल है
सदा गगन पर लहराए तिरंगा
देश धर्म पर तन मन वारा
फिर से न आये कोई फिरंगी
देश में, ये तय कर पाना मुश्किल है
गणतंत्र रहे ये देश हमारा
इस धरा पर सर्वस्व लुटाना
जन गण मन हो ध्येय हमारा
ये बात हर इंसा को कह पाना मुश्किल है।
– रूबी शोम
राखी लिए हाथ
बहन जोह रही भाई की बांट
मां लगी रसोई में बना रही पकवान
आएगा उसका बेटा जो है देश का जवान
बहन सोच रही आज
भाई से लेगी क्या उपहार
बहन से ज्यादा दोस्त बनी हू
दोस्ती का लूंगी हिसाब
बहुत छिपाई भाई की बात
अब लूंगी बदला आ जाए एकबार
मां बैठी सोचे आएगा बेटा
करूंगी शादी की बात
बहुत रह लिया अकेला
अब ले आए बहु साथ
मरने से पहले खेल लू
उसके बच्चो के साथ
हुई दरवाजे पर दस्तक
भागी बहन दरवाजे तक
होश उड़ गए जब खोला दरवाजा
तिरंगे में लिपटा अपना भाई देखा
मुंह से निकल गई चींख
आंख से बह निकली अश्रु की धारा
दर्द से बोल उठी बहन रो रोकर कर रही पुकार
हे भगवान भाई से मैंने ना मांगा ये उपहार
अब लाऊंगी कहा से राखी के लिए हांथ
जो मुझे भर भरकर देते थे आशीर्वाद
मां बोली ना कर ऐसे विलाप
भाई गया नही कही
बस हुआ अपने देश के लिए शहीद
शहीद कभी मरते नहीं
अमर हो जाते है
देश की सेवा के लिए
बार बार जन्म लेते है
बांध हाथ पर राखी
कर माथे पर तिलक
जिस धरती के लिए हुआ शहीद
कर उस धरती के सुपुर्द
गर्व हमे उस जवान पर
जो देश के लिए मर मिट जाते
गर्व हमे उस मां बहन पत्नी पर
जो जिंदा रहकर अपना फर्ज निभाते
शत शत नमन वीरों की शहादत को
शत शत नमन हिंदुस्तान की मिट्टी को
ऐसे शेर जन्म है लेते
नमन वीर की मां को
वो शेरनी है तभी जियाले शेर कहलाते
वन्दे मातरम् वन्दे मातरम् वन्दे मातरम्
– संगीता गुप्ता
जब आजादी मिली मेरे भारत को
तो वीरों की गाथा गाई गई।
मातृभूमि की माटी भी।
मस्तक से यूं लगाई गई।
देते न आहुति वीर यदि
बलिदानों को कैसे जानते।
वीरों की वो कुर्बानी।
सबकी जुबानी गाई गई-2
जो मातृ भूमि के रखवाले।
मैं उनकी गाथा गाती हूं।
जो वीर शहीद बलिदानी थे।
मैं उनकी बात बताती हूं।
अपनी धरती मां के लिए
वीरों ने प्राण गवाए हैं।
जिनके बलिदानों को हम।
भूल कभी ना पाए हैं।
अपने खूं से इतिहास लिखा।
मैं उनको शीश नवाती हूं।
जो मातृ भूमि के रखवाले।
मैं उनकी गाथा गाती हूं।
जब तक सांसों में सांस रही।
तब तक हार न मानी है।
जान रहे न रहे तन में।
मन में बस यह ठानी है।
हर पल दिल में जुनूं यही।
मैं उन सी होना चाहती हूं।
जो मातृ भूमि के रखवाले।
मैं उनकी गाथा गाती हूं।
मेरे देश की रज को यहां।
माथे पे सजाया जाता है।
मां से पहले भारत मां को।
मां कहके बुलाया जाता है।
इतनी पावन है धरा मेरी।
इसमें ही मिल जाना चाहती हूं।
जो मातृ भूमि के रखवाले।
मैं उनकी गाथा गाती हूं।
अपने तो अपने हैं यहां।
गैरो का भी आदर होता है।
(गैर से मतलब यहां विदेशी मुल्क से है)
जहां बच्चों को संस्कार बता।
सम्मान सिखाया जाता हैं।
चरणों में झुकने की रीत यहीं।
यह देखके खुश हो जाती हूं।
जो मातृ भूमि के रखवाले।
मैं उनकी गाथा गाती हूं।
इस मिट्टी में ही जन्मे प्रभु।
कान्हा ने बचपन में खेला है।
यही रास रचाया गोपिन संग।
गैया को मैया बोला है।
ऐसी पावन है धरा यहां।
मैं हर पल पूजना चाहती हूं
जो मातृ भूमि के रखवाले।
मैं उनकी गाथा गाती हूं।
राधा ने यहीं वियोग सहा।
मीरा ने प्रेम निभाया है।
जहां द्रोपदी की रक्षा के लिए।
मोहन ने लाज बचाया है
जहां गीता ज्ञान दिया प्रभु ने।
मैं तृप्त वहीं हो जाती हूं
जो मातृ भूमि के रखवाले।
मैं उनकी गाथा गाती हूं।
जहां रोज सवेरे तुलसी को।
जल और दीप चढ़ाए जाते हैं।
जहां मां गंगा में डुबकी लगाकर।
सब पाप मिटाए जाते हैं।
हर तीज व्रत और त्यौहार।
सब संग मिलके मानाना चाहती हूं
जो मातृ भूमि के रखवाले।
मैं उनकी गाथा गाती हूं।
वाल्मीकि ने रामायण को रचा।
तुलसी ने काव्य को गाया है।
जहां देव तुल्य हर मानव ने।
हर धर्म ग्रंथ समझाया है।
जिनकी गाथा मैं सदियों से।
हर मुख से सुनती आई हूं।
जो मातृ भूमि के रखवाले।
मैं उनकी गाथा गाती हूं।
जो वीर शहीद बलिदानी थे।
मैं उनकी बात सुनाती हूं।
– नूतन नवल
कोटि कोटि वंदन है मेरा वीरों के सम्मान को
आंच जिन्होंने आने न दी भारत मां की शान को l
अत्याचारों को भी अपना खेल समझकर झेल गए
आजादी के दीवाने जो प्राणों पर भी खेल गए
कदमों से जो रौंद गए हर दुश्मन के अभिमान को
आंच जिन्होंने आने न दी भारत मां की शान को ll
लिए तिरंगा हाथों में जो वन्देमातरम को गाते
झंडे गाड़ दिए चोटी पर सीने पर गोली खाते
भुला नहीं सकते हैं हम उन वीरों के बलिदान को
आंच जिन्होंने आने न दी भारत मां की शान को ll
चूड़ी रोली कंगन बिछुए बेबस राह निहार रहे
घर आने की आशा में हो बेबस तुम्हें पुकार रहे
लेकर चले गए हो सबकी आंखों के अरमान को
आंच जिन्होंने आने न दी भारत मां की शान को ll
कोटि कोटि वंदन है वीरों के सम्मान को
आंच जिन्होंने आने न दी भारत मां की शान को ll
– संगीता अहलावत l
और अन्त में इन पंक्तियों के साथ संकलन का समापन…
गणतन्त्र दिवस फिर आया है, कुछ नया संदेसा लाया है |
भारत के हर एक कण कण ने कुछ नया राग अब गाया है ||
हम आतंकों से जूझे हैं, पर हार न हमने मानी है |
कोरोना को भी हमने हँसते हँसते दूर भगाया है ||
है तब ही तो परिधान नया धरती ने वासन्ती धारा |
और साज सजा है नया नया, कुछ नया राग गुँजाया है ||
है देश मेरा ऐसा जिसमें हैं रंग रंग के पुष्प खिले |
उन सबसे मिलकर बना हार भारत माँ को पहनाया है ||
इसके आँगन में लहराती नदियों ने नृत्य दिखाया है |
गंगा यमुना कावेरी ने सागर संग रास रचाया है ||
हर कोई कर्मप्रधान रहे, हों चाहे कितने भी तूफां |
हर जीवन में मधुमास रहे, संकल्प सभी ने पाला है ||
हम प्रायः बात करते हैं कि भगवान भाव के भूखे हैं – इस सन्दर्भ में एक लोक कथा भी हम सभी ने सुनी हुई है कि भगवान राम जब शबरी की कुटिया पर पहुँचे तो शबरी ने उन्हें चख चख कर मीठे बेर प्रस्तुत किए और भक्त की भावनाओं का सम्मान करते हुए भगवान श्री राम ने बड़े स्नेह और सम्मान के साथ शबरी के झूठे उन बेरों का भोग लगाया… लेकिन यह केवल एक जन श्रुति है और भारत की ही नहीं अपितु विश्व की किसी भी रामायण में यह कथा नहीं उपलब्ध होती, शबरी वास्तव में एक भील योद्धा थी और वनों में रहने के कारण उसे जड़ी बूटियों की अच्छी पहचान थी… इसी विषय पर विस्तार से उद्धरणों सहित बता रहे हैं पुणे से DRDO में कार्यरत वैज्ञानिक और एक वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हिमाँशु शेखर… एक बार अवश्य पढ़ें… डा पूर्णिमा शर्मा…
शबरी के बेर
डॉ हिमाँशु शेखर, पुणे
दिनाँक 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद राम कथा की बाढ़ आ गई है | राम कथा में कई प्रकार की विसंगतियां भी देखने को मिली हैं | उनमें से एक दृष्टांत है शबरी के जूठे बेरो का | क्या वास्तव में भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे ?
अगर आपको टीवी पर आने वाला रामायण सीरियल याद होगा तो जब यह कथा शबरी के आश्रम में पहुँची थी, तब इसके निर्देशक रामानंद सागर ने कहा था कि इस घटना का जिक्र राम कथा के 5 मूल ग्रंथों में नहीं दिखता है | ये पांच ग्रंथ उनके हिसाब से थे – वाल्मीकि रामायण, महाकवि तुलसीदास की श्री रामचरितमानस, तमिल का कंबन रामायण, तेलुगु का रंगनाथ रामायण, और बंगाल का कृतिवास रामायण | इन सब में भगवान श्री राम को शबरी द्वारा जूठे बेर देने का जिक्र नहीं है |
आइए, एक बार उस प्रकरण को इन राम कथाओं में खोजने की चेष्टा करें, जहां शबरी के आश्रम में भगवान राम और लक्ष्मण जाते हैं | उनकी आवभगत माता शबरी किस प्रकार करती हैं, इसपर एक नजर डालते हैं | मातंग ऋषि के आश्रम में शबरी द्वारा भगवान राम और लक्ष्मण की सेवा सत्कार किस तरह की गई ?
वाल्मीकि रामायण में इस संदर्भ में लिखा हुआ है –
मया तु विविधं वन्यं संञ्चितं पुरुषर्षभ |
तवार्थे पुरुषव्याघ्र पम्पायास्तीर संभवम ||
यह 3.74.17 श्लोक संख्या है | इसमें लिखा है कि जो भी पंपा सरोवर के तट पर उपलब्ध था, जो भी संभव था, जो वन से संचित सामग्री थी, उनसे ही भगवान राम का स्वागत सत्कार किया गया | इसमें फलों का या जूठे होने का जिक्र नहीं है |
चलिए तुलसीदास की श्री रामचरितमानस के अरण्यकांड का दोहा 34 देखते हैं | उसमें लिखा हुआ है कि –
कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि |
प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि ||
अर्थात कंद मूल फल ही राम को अर्पित किया गया था |
इसी तरह रंगनाथ रामायण जो 13वीं सदी में गोनबुद्ध रेड्डी ने लिखा है, उसमें भी राम को कंदमूल फल अर्पण करने का जिक्र है | बेर का तो कहीं जिक्र ही नहीं है | कृतिवास रामायण में भी फल अर्पण करने का प्रसंग ही नहीं है | कंबन रामायण में भी इसकी चर्चा नहीं है | इस तरह से अगर आप इसको सही ढंग से खोजेंगे तो कवितावली में भी इसका जिक्र कहीं पर नहीं दिखाई देता है |
एक और रचना है, गीतावली, जिसमें राम कथा के बारे में कुछ जानकारी है | गीतावली के 17 में पद में पांचवा गीत है | गीता प्रेस गोरखपुर के 1960 के संस्करण में पृष्ठ संख्या 246-247 पर जो पद लिखे हैं वह इस तरह के हैं कि –
पद पंकजात पखारि पूजे पंथ श्रम विरति भये |
फल फूल अंकुर मूल सुधारि भरि दोना नये ||
प्रभु खात पुलकित गात, स्वाद सराहि आदर जनु जये |
फल चारिहू फल चारि दहि, परचारि फल सबरी दये ||
अर्थात माता शबरी ने फल फूल अंकुर मूल से भरा दोना भगवान की सेवा में प्रस्तुत किया | भगवान ने उसमें से सिर्फ चार ही फल लिए और उन चार फलों के बदले में शबरी को चार चीजें, जो हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी होती हैं – धर्म अर्थ काम और मोक्ष, ये चार वर दिए |
इस तरह अगर आप विभिन्न राम कथाओं को देखें तो शबरी के जूठे बेरों का जिक्र कहीं नहीं मिलता है | अब उन रचनाओं को देखें, जहां पर शबरी के जूठे बेरों का जिक्र है | एक कथा आती है उस ग्रंथ में, जिसे दांडी रामायण कहते हैं | ये उड़िया में बलराम दास ने लिखा था | इसमें उन्होंने लिखा है कि भगवान राम ने दांत के निशान वाले आम खाए थे | और ये दांत के निशान किसके थे ऐसा सीधे तो नहीं लिखा है परंतु माना जाता है कि ये शबरी के दांतों के निशान थे | यहाँ आम लिखा है | इसमें बेर का जिक्र नहीं है, आम का जिक्र है | इसी तरह चैतन्य महाप्रभु के शिष्य प्रियादास ने नाभादास रचित भक्तमाल पर भक्ति रसबोधिनी टीका में इसी तरह का वर्णन किया है |
एक और असमंजस में डालने वाली बात है कि एक राधेश्याम कथावाचक थे | उन्होंने वर्णन करते हुए लिखा है कि शबरी के जूठे बेरों का जिक्र सूरसागर में है | अब आप हमें सबको मालूम है कि सूरसागर सूरदास जी ने लिखा है | वे कृष्ण भक्त थे | तो कृष्ण भक्ति राम भगवान राम के कृतित्व पर अपनी सोच का आक्षेप कर रही हैं, ऐसा प्रतीत होता है | लेकिन सूरसागर के नवम स्कंध में जूठे फलों का जिक्र है | बेर का तो जिक्र नहीं है, लेकिन जूठे फलों का जिक्र है |
सबरी आस्रम रघुबर आए, अरधासन दै प्रभु बैठाए |
खाटे फल तजि मीठे ल्याई, जूठे भए सो सहुज सुहाई |
अंतरजामी अति हित मानि, भोजन कीने स्वाद बखानि |
तो इसमें खट्टे फल को छोड़कर मीठे फल लाई | खट्टे और मीठे के बीच का भेद जानने के लिए उसे खाना पड़ा होगा | इसके कारण वे फल जूठे हो गए | ऐसा जिक्र सूरसागर में है, जो कि राम कथा नहीं, कृष्ण की भक्ति का ग्रंथ है |
वैसे अगर आप वैज्ञानिक दृष्टि से इस पर एक नजर डालें तो ऐसा प्रतीत होता है और ऐसा कहा जाता है कि शबरी श्रमणा नाम की भील कन्या थी, जो अपने विवाह के दिन पशुबलि को रोकने के लिए घर छोड़कर चली गई थी | मातंग ऋषि के आश्रम में उन्होंने आश्रय लिया था और वे एक बहुत बड़ी वैज्ञानिक थी | साथ ही बहुत बड़ी गुप्तचर संस्था भी मातंग ऋषि के आश्रम से वे चलाती थी | जहां तक उन बेरो या उन फलों का जिक्र आता है तो ऐसा भी माना जा सकता है जूठा खाने से प्रेम बढ़ता है | शायद उस प्रेम को दर्शाने के लिए कभी-कभी कुछ कथा वाचकों ने राम कथा में इसका जिक्र सम्मिलित कर लिया है | परंतु अगर आप शबरी को एक वैज्ञानिक मानते हैं, गुप्तचर व्यवस्था की प्रमुख मानते हैं, तो ऐसा माना जा सकता है कि उसे पंपा सरोवर के आसपास उगने वाले जड़ी बूटियों का ज्ञान था | उन्हें पता था कि किस तरह की जड़ी बूटियों से सेहत अच्छी रहती है | किसके सेवन से आगे आने वाले युद्ध में राम और लक्ष्मण अजेय हो पाएंगे | ऐसी भी मान्यता है कि माता शबरी उन बेरों का चयन और उन फलों का चयन कर भगवान को दे रही थी जिससे उनका तेज बढ़े, उनका शौर्य बढ़े, उनका बल बढ़े | और कहा जाता है कि भगवान राम तो उन बेरो को, उन फलों को खा रहे थे, परंतु लक्ष्मण जी उसे नहीं खा रहे थे | कहा जाता है कि भगवान राम के कहने पर लक्ष्मण जी ने एक फल लिया भी, तो उसे राम की दृष्टि बचाकर उन्होंने फेंक दिया | वह फल प्राणदायक था | जब उन्हें मूर्छा आई तब संजीवनी बूटी लाने से उनकी मूर्छा टूटी थी | ऐसा भी माना जा सकता है कि माता शबरी एक चिकित्सा की जानकार थी | अगर लक्ष्मण जी उनके द्वारा दिए गए फल को अरण्य काण्ड के दौरान ही खा लेते तो, शायद उन्हें मूर्छा नहीं आती | भगवान राम इसी कारण अजेय थे और तमाम अस्त्र, शस्त्र झेलकर भी वह लगातार युद्ध रत रह पाए थे |
इस व्याख्या से चार तथ्य सामने आते हैं | पहला प्रामाणिक राम कथा में शबरी के जूठे बेरों का जिक्र नहीं है | दूसरा श्रुति ग्रंथ होने के कारण जनता को आकृष्ट करने के लिए कथावाचकों ने जूठे बेरों को राम कथा में जोड़ दिया है | तीसरा भावुकता पूर्ण संवेदना का संदर्भ हो सकता है, जो जूठा खाने से प्रेम से जोड़ता है | चौथा पंपा सरोवर के पास बहुत सारी जड़ी बूटियां थी और वाल्मीकि रामायण में जिक्र है कि भगवान राम माता शबरी से अनुरोध करते हैं कि वे पेड़ पौधे भगवान राम को दिखाएं | उन जड़ी बूटियां की पहचान शबरी को थी | इसी कारण जो शारीरिक बल बढ़ाने वाली औषधियां थी, उसी तरह की जड़ी बूटी उन्होंने भगवान राम को अर्पित किया था | तो मेरे विचार से शबरी के जूठे बेरों का दोनों पक्ष है | एक पौराणिक पक्ष है जो सफलतापूर्वक स्थापित नहीं किया जा सकता है, लेकिन एक आधुनिक वैज्ञानिक पक्ष भी रखा जा सकता है, जिसमें भगवान राम को अर्पित फल उनके बल को बढ़ाने वाले साबित हुए हैं |
(तो ये तो था शबरी के झूठे बेरों का प्रसंग डॉ हिमाँशु शेखर की दृष्टि से… अब भगवान श्री राम मन्दिर अयोध्या में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर कोलकाता से श्री प्राणेन्द्र नाथ मिश्रा जी की एक छोटी सी रचना…)
राम मंदिर
यह न सोचो यह नया कोई साज था
राम मंदिर का पुराना ब्याज था |
म्लेच्छों को सीख देने के लिए
राम का यह भी नया अंदाज़ था |
टेंट भी बन जाते हैं एक दिन महल
भक्तों में बैठा हुआ एक बाज़ था |
कौन जाने किसकी शामत आ रही है
पांच सौ सालों का कोई राज़ था |
सूर्यवंशी को, नमन करती शफक़
उनके जैसा क्या कोई सरताज था ?
22 जनवरी को भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या में भगवान श्री राम मन्दिर में प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा समारोह सम्पन्न हुआ | जो हम सभी देशवासियों के लिए गर्व और हर्ष का विषय है | इस अवसर पर WOW India के भी कुछ सदस्यों ने अपने मनोभाव प्रस्तुत किए – जो प्रस्तुत हैं “
नश्वर जग का सार राम हैं” शीर्षक से… रचनाएँ प्रकाशित करें उससे पूर्व कुछ बातें – सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा… और इस पर विश्वास भी करना होगा… कि भगवान श्री राम केवल किसी सम्प्रदाय विशेष की आस्था मात्र का विषय ही नहीं हैं… अपितु एक स्वस्थ… सन्तुलित और मर्यादित जीवन शैली का आदर्श भी हैं… यही कारण है वे इस राष्ट्र के ही नहीं… वरन विश्व के कण कण में समाए हुए हैं… मन्दिरों में भगवान श्री राम सीता की मूर्ति केवल एक प्रस्तर प्रतिमा पात्र नहीं है… बल्कि वास्तव में प्रतीक हैं भगवान श्री राम के महान आदर्शों के… क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम यों ही नहीं कहलाते हैं… तो, कुछ भाव सुमन भगवान श्री राम को नमन करते हुए…
सर्वप्रथम मधु रुस्तगी की रचना जो उन्होंने 21 जनवरी को भगवान श्री राम की प्रतिमा के प्राण प्रतिष्ठा से पहले दिन लिखी थी…
सब तरफ उल्लास है
और है खुशियों के पल
शोर है उत्सव का हुआ,
मची सब के मन मे हलचल।
है बज उठा शंखनाद अयोध्या में
श्री राम जी के आने का
मिलन होगा और होगा दर्शन
पतित पावन श्री राम का।
आप के हैं प्रभु राम,आप के लिए
सज रहे हैं आप के ही द्वारा।
कल होगी स्थापना उनकी
बहने दो आंखों से पानी खारा।
हर दिशा शोभायमान है हो उठी
ये पवन भी प्रफुल्लित हो उठी
हर जन के तन मन मे
मधुर ध्वनियां गुंजित हो उठी।
भाव जो हमने संचित किए थे
आंसुओं से भीगे हृदयों में
छलकने दो भरी गगरी को नैनों मे।
कल जब भोर होगी,तो वो होगी श्रीराम की
जब ढलेगी शाम तो, वो भी होगी श्रीराम की।
युद्ध था छिड़ा पांच सदियों से हमारे राम का
बिगुल बज उठा है जीत का,स्वागतहै श्रीराम का
आज सज रही अयोध्या और भारत है सज रहा
रामलला विराजेंगें,हर मंदिर में शंख है बज रहा।
उठो,करो स्वागत सभी,प्रभु श्रीराम का
अयोध्या बनी है स्वर्ग,पावन हुई भारत की ये धरा
अब एक रचना डा दिनेश शर्मा जी की लिखी हुई…
राम !
औरों को शाप मुक्त करके भी
स्वयम रहे अभिशप्त
कभी दूसरों के क्रोध से संतप्त
तो कभी अपनो से त्रस्त !!
राम !
अकारण नही हुआ वनवास तुम्हे
और न ही पत्नी हरण !!
न होता –
तो कैसे बनते
सहनशीलता के उत्कर्ष
युग पुरुष !
राम !
हर युग में
कोई तो विष पीता है
आक्रोश और अपमान का
शिव होने को !
राम!
अकारण भग्न नही हुआ
तुम्हारा जन्मस्थल –
मूर्ख आक्रांताओं से !
न होता
तो कैसे विराट बनते
इक्कीसवीं सदी के
हर भारतीय मन में
पुनः युगनायक बनकर !!
सब में राम – डा रश्मि चौबे…
मैं भारत की वासी हूं, रामराज्य ही चाहूंगी ,
दैहिक ,दैविक ,भौतिक ताप मिटे, ऐसा देश में चाहूंगी ।
पीड़ा में हरेराम कहूं तो ,दवाई रामबाण मिले ।
राम भरोसे रहकर मैं, राम जाने ही कहती हूं ।
दुख में हे राम कहूं तो, राम ही मेरी पीड़ा हरे।
शपथ में राम दुहाई दे, दुश्मन से सच कहलवाती हूं ।
ऐसा कोई काम ना करूं कि,लज्जा से हाय राम कहूं ।
ऐसा कोई अशुभ ना हो कि,अरे राम- राम कहूं ।
हिंदी में अभिव्यक्ति करूं तो, श्री राम पग- पग पर खड़े।
निर्बल के वन के प्रभु ,राम सबल होने को कहें।
अंत में राम नाम सत्य सुनकर, परमधाम पहुँच जाऊं ।
ऐसे सियाराम दया के सागर, करुणा सिंधु को मैं पाऊं।
राम – मीना कुंडलिया…
राम राम जय राम जय श्री राम!!
सांस सांस में बसे हैं राम
कण कण में हैं समाहित राम !!
मेरे अंध तमस में राम जग के उजियारे में राम!!
आस्था हैं वरदान हैं राम आदर्श और प्रतिमान हैं राम!!
शबरी के बेरों में राम केवट की नैय्या में राम!!
दशरथ राज दुलारे राम कौशल्या के प्यारे राम!!
हनुमत के हैं बस राम सबके तारणहारे राम !!
प्रेम सत्य और दया हैं राम न्याय भक्ति दुखहर्ता राम!!
अविचल और अविनाशी हैं राम
राम राम बस राम ही राम
राम राम जय राम जय श्री राम!!
जय श्री राम – गुँजन खण्डेलवाल…
जय राम आपकी
क्योंकि सरल नहीं है राम होना
ऐश्वर्यवान कुल में जन्म लेकर ऋषि मुनियों की रक्षा करना
बड़े भ्राता होने का धर्म निभा, छोटे के समक्ष उदाहरण हो जाना
अपने पराक्रम से दशानन को लज्जित कर सीता का वरण करना
कितनी सरलता से त्याग दिया राज्य पर अधिकार
सौंप कर भरत को, वन गमन किया वैदेही सहित निर्विकार
पिता की आज्ञा पर भृकुटी भी न चढ़ाई
शीश झुकाकर आदर्श पुत्र की भूमिका निभाई
विमाता की असंगत मांग पर प्रश्न भी न किए
चौदह वर्षों के लिए राज सुख क्षण भर में त्याग दिए
केवट और शबरी को सम्मान दिया
प्रेम ही सर्वश्रेष्ठ है ज्ञान दिया
मित्रता का संबंध रक्त से भी बड़ा है, समझाया
विभीषण और सुग्रीव को व्यवहार से अपनाया
अहंकार और पर स्त्री की कामना अधर्म है
पशु पक्षी सेवा सभी का धर्म है
लंकेश का वध कर बता दिया
जटायु की सेवा से जता दिया
कितना कठिन होगा सीता की अग्नि परीक्षा लेना
और निष्ठुर बन उस प्राण प्रिया को वन भेज देना
महल में रहकर भी ऋषि सा जीवन बिताना
सांसारिक सुखों के मध्य अविचलित योगी हो जाना
राम, वीर है
राम, गंभीर है
सृष्टि में राम विचारक
अहिल्या के उद्धारक
राम, धैर्यवान है
लोक कल्याण के प्रतिमान है
त्याग की पराकाष्ठा
संपूर्ण जगत की आस्था
राम, संस्कार और शौर्य में सर्वोत्तम
राम, आप ही मर्यादा पुरुषोत्तम
श्री राम – रूबी शोम…
अयोध्या धाम हो पावन
यहां प्रभु राम आयेंगे
बिछाओ फूल राहों में
प्रभु के चरण पखारेंगे
सजाओ घर और द्वार
मेरे प्रभु राम आयेंगे
निराशा मिट गई सारी
खुशियों के पल आयेंगे
आज दिन महीने बरसों के बाद
राम अवतार आयेंगे
दीवाली सा जगमगाता है
आज शहर ये सारा
साथ राम सीता संग लखन आयेंगे
ये कैसा संयोग है प्यारा
घर घर दीप जले हैं और
मंदिर में आरती होती
खुशी से हैं सभी पागल
न सारी रात सोते हैं
हुई है आरज़ू पूरी
सभी के दिल मुस्कुराते हैं
चलो मिलकर मचाएं धूम
अवध के राम आयेंगे
धरा पर है महा उत्सव
श्री राजा राम आयेंगे
गाओ भजन और कीर्तन
दशरथ के लाल आयेंगे
पापों से मिले मुक्ति
हृदय में हो राम की भक्ति
कवि की कल्पनाओं में
राम के भाव आयेंगे
बरसों से प्यासी हैं ये आंखें
पाकर प्रभु राम के दर्शन
ये नैना तर जायेंगे
अयोध्या धाम हो पावन
यहां प्रभु राम आयेंगे।
रामराज्य – संगीत गुप्ता…
राम राज्य जब चाहो तब है
सिर्फ हम सब की सोच का फेर है
हम देखे सिर्फ अच्छाई तो दिखेगा सतयुग
गर देखे सिर्फ बुराई तो बन जाए कलयुग
राम राज्य में भी हुआ था
पुत्र मोह में सत्ता का लालच
कलयुग में भी भाई के प्यार से ऊपर
हो जाती है धन दौलत
राम राज्य में भी मां बनी सौतेली
दिया देश निकाला
पिता बना मूक दर्शक
देख रहा नियति का खेल निराला
राम के होते भी हुआ सीता का हरण
कलयुग में भी खड़ा है रावण करने सीता का हरण
उस युग में भी सीता हुई थी अपमानित
अग्नि परीक्षा देकर साबित किया अपना स्तीत्व
इस युग में भी बेटियां होती है अपमानित
राम राज्य लाना है गर
पहले समाज की कुरीतिया हो दूर
बेटी और बेटे में ना हो कोई भेद
समान अधिकार हो स्त्री और पुरुष में
हो आपस में भाईचारा ना हो कोई जाति भेद
सोच बदलेगी तो राम भी होंगे घर घर
बदलेगा समाज तो रामराज्य भी होगा
और अब अपनी कुछ पंक्तियों के साथ इस संकलन का समापन…
नश्वर जग का सार राम हैं
बहुत कठिन है राम के पथ पर
चलना, सहना कष्ट अनेकों
जगती को विश्राम कराने
हित जो जगते, वही राम हैं
कष्टों का अवसान राम हैं
ज्ञान और विज्ञान राम हैं
शोधों का हैं सत्य राम ही
जीवन में आराम राम हैं
राम दया हैं, राम त्याग हैं
हर युग के आदर्श राम हैं
राम जीव में विद्यमान हैं
तो जग के कर्ता भी राम हैं
राम साधना के साधन हैं
राम साधकों के साधक हैं
राम ध्यान के संवाहक हैं
केन्द्र ध्यान का एक राम हैं
हर प्राणी के नयनों के
अभिराम राम, विश्राम राम हैं
सभी द्वंद्व और संघर्षों के
अन्तिम पूर्ण विराम राम हैं
राम आदि हैं, राम अन्त हैं
भूत भविष्यत वर्तमान हैं
जीवन का उत्साह राम हैं
ऐसा मंजुल नाम राम हैं
रमता जो हर योगी में
हर प्रेमी, विरह वियोगी में
हर श्वास और नि:श्वासों में
ऐसा रंजक नाम राम हैं
राम मार्ग हैं, राम लक्ष्य हैं
हर मन के आराध्य राम हैं
राम ही नेता, राम प्रणेता
प्राणवाक्षर का नाद राम हैं
सूरज चांद सितारों में वह
हर घर, हर गलियारे में वह
अश्रु प्रवाहों में निर्बल के
न्याय का हर आधार राम हैं
वह बसे हरेक मां के हाय में
दें जीवन प्रस्तर प्रतिमा को
शबरी के झूठे बेरों और
हर नारी का अभिमान राम हैं
काकभूषुण्ड की वाणी में
वह शंकर औघड़दानी में
हम उसको यहां वहां ढूंढें, पर
आत्मा की पहचान राम हैं
नियम राम हैं, धरम राम हैं
जप तप का संयम भी राम हैं
शौर्य राम हैं, तो स्नेही जन
के मन का अनुराग राम हैं
नदिया की कल कल धारा में
सागर से उठती ज्वाला में
उच्च हिमाच्छादित शिखरों में
नश्वर जग का सार राम हैं
—–कात्यायनी
हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी शुक्रवार 25 अगस्त को दिल्ली के पटपडगंज स्थित IPEX भवन में WOW India द्वारा स्वतन्त्रता दिवस और सावन महीने के सम्मान के लिए एक रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम से पूर्व Bone merrow density और hemoglobin checkup के लिए कैम्प लगाया गया | साथ ही डॉ अम्बुजा शर्मा ने Dental checkup भी किया | ये तीनों ही टैस्ट निशुल्क थे |
इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम आरम्भ हुआ | सबसे पहले कार्यक्रम के स्पॉन्सर Cloud 9 hospitals की CEO डॉ प्रिया सिंह ने वर्तमान में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की देखभाल पर जोर देते हुए बताया कि Cloud 9 किस तरह इस दिशा में कार्य कर रहा है | दूसरे स्पॉन्सर IPCA की ओर से डॉ आभा शर्मा ने भी महिलाओं के स्वास्थ्य के विषय में ही बात की | उसके बाद संस्था की General Secretary डॉ पूर्णिमा शर्मा ने सावन के महत्त्व, आज़ादी और महिलाओं के स्वास्थ्य के सन्दर्भ में संस्था की नीतियों पर प्रकाश डाला | संस्था की Chairperson डॉ शारदा जैन ने भी महिलाओं के स्वास्थ्य के विषय में ही बात की – क्योंकि Delhi Gynaecologist Forum की Sister Organization के रूप में WOW India का गठन ही महिलाओं को उनके स्वास्थ्य की दिशा में जागरूक करने के उद्देश्य से हुआ था और हम लोग इसीलिए समय समय पर हेल्थ चेकअप कैम्प भी लगाते रहते हैं नियमित रूप से |
WOW India की Governing Body Members की प्रस्तुति – आज़ादी, सावन और राखी – प्रथम प्रस्तुति थी जिसे खूब सराहा गया – इसकी Script, Narration, Song selection & Direction संस्था की Cultural Secretary श्रीमती लीना जैन का था और Editing-Mixing-Compilation किया था डॉ पूर्णिमा शर्मा ने |
फिर शुरू हुआ Group dance competition और मल्हार का दौर… जिसमें First position पर WOW India की IPEX Branch रही, Second position पर रही WOW India की Indraprastha Branch और Third position पर रही WOW India की Doctors Branch इसके अतिरिक्त सभी की प्रेरणास्रोत श्रीमती विमलेश अग्रवाल जी को उनकी ब्रांच योजना विहार की सदस्यों के साथ Special Performance के लिए Consolation Prize दिया गया |
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा जनशिक्षा और संस्कार केन्द्र वसुन्धरा के बच्चों का आकर्षक समूह नृत्य | इन सभी बच्चों और इनकी शिक्षिकाओं को WOW India की इन्द्रप्रस्थ ब्रांच की सदस्य श्रीमती सुषमा अग्रवाल की ओर से स्कूल बैग्स उपहार स्वरूप दिए गए |
कार्यक्रम में Delhi Gynaecologist Forum की ओर से WOW India की Secretary General डॉ पूर्णिमा शर्मा को Life Time Achievement Award भी प्रदान किया गया |
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि और प्रतियोगिता की निर्णायक की भूमिका में थीं प्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना विल्का गोगिया…
कार्यक्रम का सफल संचालन किया श्रीमती लीना जैन ने… कार्यक्रम की समाप्ति पर लकी ड्रा भी निकाला गया और संस्था की Senior Vice President श्रीमती बानू बंसल जी के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हो गया – लेकिन बाद में बहुत देर तक सावन की धूम मची रही…
कार्यक्रम में संस्था के सदस्यों की बड़ी तादाद में उपस्थिति रही जिसके कारण कार्यक्रम सफल हो पाया – इसके लिए सभी सदस्यों का संस्था की ओर से आभार…
दिनांक 3 जून 2023 को WOW India के सौजन्य से YWA के प्रांगण में ‘अनिमिया मुक्त भारत’ योजना के तहत अनिमिया परीक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस अवसर पर रक्त परीक्षण के साथ-साथ आगामी पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में पौधारोपण कार्यक्रम भी आयोजित किया गया। आयोजन की सार्थकता को और बढ़ाया श्रीमति प्रिया गुप्ता ने जिन्होंने फेंके जाने वाले अवशेष खाद्य पदार्थों से खाद बनाना सिखाया।
भारत विकास परिषद, प्रांत महिला प्रमुख तथा WOW India की ‘अनिमिया मुक्त भारत’ योजना की संयोजिका श्रीमति अर्चना गर्ग ने सुगमता से हमारे आस-पास उपलब्ध सामग्री से एंजाइम बनाना सिखाया तथा उसके उपयोग पर भी चर्चा की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता की श्रीमति इंदु गुप्ता ने तथा सहयोगी रहीं इनर व्हील संस्था की सचिव श्रीमति मधुबाला, श्रीमति शशि कुमार, श्रीमति अनीता, भारत विकास परिषद सूर्य नगर शाखा की कार्यक्रम संयोजिका श्रीमति अनुभा पांडे व अन्य कर्मठ महिला कार्यकर्ता।
WOW India की ओर से श्रीमति स्वाती ने YWA छात्रावास की कुछ 67 युवतियों तथा स्टाफ का रक्त परीक्षण किया। मानक से कम हिमोग्लोबिन होने पर संबंधित महिलाओं को दवा या आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए। यह एक सूचनापरक, जागरूकता कार्यक्रम रहा जिसे सभी के द्वारा सराहा गया।
This story is written by Viramya Mishra, a class 12th Science student of Manava Bharti India International School, Dehradun. I liked it, that’s why I am
publishing it here. We should not forget that such incidents are happening even today’s world. See Viramya’s command on language, her style and her hold on the Subject… and her emotions towards the issue… Dr. Purnima Sharma, Secretary General, WOW India
It was the morning of 18th September 1985. Vaidehi was following her daily routine by watering the plants in her garden. It was the part of a daily chores, waking up early in the morning, cleaning the house as well as dishes, watering the plants, feeding her pet birds (Canary and Talking Parrot). Parrot would daily say thank you to Vaidehi as she feeds it with some Chana dal and Chili. Canary would chirp, this was her form of saying thank you. Now canary and parrot were the only ones in her whole house who would at least say thanks to her.
Vaidehi lived with her parents, uncle and aunt. Vaidehi’s father was an extremely rude, angry man. He never used to understand Vaidehi’s emotions. As Being a father there was a not even a single emotion he had for his daughter. He was totally emotionless man when it comes to Vaidehi. Her aunt and uncle were same as Vaidehi’s father. “Why would we care about this trash if her own blood doesn’t? ” These were used to be the words of them. This situation was not since Vaidehi’s childhood but it happened because Vaidehi was growing up and she was also the child who would get the property of her grandfather. These all were too minor things in front of the case which used to be the main mandatory part of her each day.
Vaidehi was a very beautiful girl, she used to get many marriage proposals from rich families. Her aunt used to hate it because, their daughter was not good looking or well-mannered enough. Aunt used to cancel all the proposals for Vaidehi, and torture her by abusing her, and giving all the household chores to her. She would not get good enough food to stay healthy, she was daily abused by her father, uncle, aunt, which mentally tortured her. Daily after completing all the work, she used to lock herself and cry for hours, which caused dark circles under her eyes, unhappiness and stale food was causing dullness and hair fall to her skin. Sumitra (Vaidehi’s aunt) used to do all possible things to destroy her.
Vaidehi’s mother Kashi who was the real owner of the house was in a shocking state. She was kept and considered as the maid of their house. She also went through all this after she got married to Sameer (Vaidehi’s father), but was unable to stop this torture which was happening with her daughter. Earlier when Kashi was pregnant i.e., when she carried Vaidehi inside her belly, Kashi was blackmailed by Sameer that he would kill the baby by giving her Rat Kill pills if she does not do as directed by the family members. Actually, Sameer’s family was narrow minded people they didn’t liked educated women as wives. Now same thing was happening with Vaidehi but for a different reason.
Vaidehi was tolerable enough but she was not able to see her mother in such a situation. One day when Sameer was extremely drunk, he took
off his belt and started beating Kashi unconsciously, which made tremendous marks on her body. Now this was the alarming sign for Vaidehi as well as Kashi. Day by day situations were getting worse and finally the day came when Kashi became mentally unstable and unfortunately was send to Agra’s Mental Asylum. That day Vaidehi almost became numb. She decided to take a big and final step and she ran away to police station. She gained courage and filed complaint against, each one of them. Police punished Vaidehi’s family under the section 498A of Indian Penal code according to the criminal law (Second Amendment).
This was the case of 1985, but now a days also domestic violence has not stopped. It’s been 2023, we have come so far and still some areas of India are deeply narrow minded and attempt domestic violence without thinking twice. It is said that approximately 30% of women are beaten up by their husbands after marriage. It is considered okay to do that. Society needs to pay attention to this, we as a society should raise our voices against this. Law needs to pay attention to this and make a severe, solid punishment for this. As it is equal to a murder or suicidal case.
Thank you!
Viramya Mishra
Because I liked it, so I am publishing it here. We should not forget that such incidents are happening even today.
29 अप्रैल 2023 को इन्द्रप्रस्थ विस्तार स्थित IPEX भवन में WOW India की ओर से एक काव्य सन्ध्या का सफल आयोजन किया – जिसमें साहित्य मुग्धा दर्पण नाम की साहित्यिक संस्था भी भागीदार बनी | कार्यक्रम की अध्यक्षता की पुणे से पधारे और DRDO के वैज्ञानिक डॉ हिमाँशु शेखर ने | कार्यक्रम का आरम्भ रूबी शोम ने सरस्वती वन्दना से किया | उसके बाद साहित्य मुग्धा दर्पण की अध्यक्षा श्रीमती रेखा अस्थाना ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए जल संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने वाली स्वरचित कविता का पाठ भी किया | तत्पश्चात WOW India की Secretary General डॉ पूर्णिमा शर्मा ने कार्यक्रम के विषय में बात करते हुए गंगा सप्तमी और सीता नवमी की प्रासंगिकता और उनमें निहित सन्देशों के विषय में बात की | साथ ही अपनी कविता “आओ शब्दों को चहका दें, अर्थों को सार्थकता दे दें” का पाठ भी किया | और फिर कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ हिमाँशु शेखर की आज्ञा से काव्य सन्ध्या का विधिवत आरम्भ हुआ | हिमाँशु जी ने व्यंग्य रचना “नरकगामी” के साथ ही कुछ आशु कविताओं और कुछ अन्य कविताओं का पाठ किया |
श्री R K Rastogi जी की कविता में संविधान संशोधन और रोज़गार के अवसरों के सन्दर्भ थे तो पूनम गुप्ता ने “माँ” को समर्पित कविता का पाठ किया | नीरज सक्सेना ने भी पहले “माँ” के सम्मान में कुछ पंक्तियाँ पढ़कर “मैं रोती आँखों का अश्रु हूँ” शीर्षक से बड़ी जोश और भावपूर्ण कविता का पाठ किया | पूजा भारद्वाज ने भी अपनी कविता के माध्यम से “माँ” का ही स्मरण किया | पुनीता सिंह की रचना भी प्रभावशाली रही | नूतन शर्मा की कविता “कैसे वो बिताया” में एक सैनिक की पत्नी की कथा व्यथा ध्वनित हुई तो उन्होंने एक माहिया भी गाकर सुनाया | कार्यक्रम का आकर्षण रही मुकेश आनन्द जी की रचना “लक्ष्मण को प्राणदण्ड” | इस कविता को रामायण की एक कथा को आधार बनाकर लिखा गया था | एक प्रसंग आता है कि एक बार यम श्री राम के साथ कुछ मन्त्रणा करने आए | किन्तु उन्होंने श्री राम से एक वचन माँगा कि जितनी देर मन्त्रणा चलेगी उतनी देर कोई व्यवधान नहीं उपस्थित करेगा – और यदि ऐसा होता है तो आप मर्यादा की रक्षा करते हुए उसे प्राणदण्ड देंगे | भगवान राम इस पर सहमत हो गए और उन्होंने अपने सबसे प्रिय अनुज लक्ष्मण को द्वार की रक्षा हेतु नियुक्त कर दिया | इसी बीच परम क्रोधी ऋषि दुर्वासा भी वहाँ आ गए | लक्ष्मण ने उन्हें बहुत रोकना चाहा किन्तु वे नहीं माने तो लक्ष्मण को बरबस भीतर जाकर भाई को उनके आगमन की सूचना देनी पड़ी | राम ने दुर्वासा ऋषि का स्वागत सत्कार तो किया – किन्तु यम को दिए वचन के अनुसार उन्हें लक्ष्मण को मृत्युदण्ड देना था क्योंकि उन्होंने मन्त्रणा में व्यवधान उपस्थित किया था | बड़ी कठिन स्थिति थी | तब उनके गुरुदेव महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें सुझाव दिया कि अपने किसी प्रिय का त्याग भी उसकी मृत्यु के समान ही होता है, अतः तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो | लक्ष्मण ने कहा कि श्री राम से दूर जाना उनके लिए मृत्यु से भी अधिक कष्टकारी होगा – इसलिए वे उनकी मर्यादा और वचन का पालन करते हुए अपने शरीर का त्याग कर देंगे – और उन्होंने जल समाधि ले ली | मुकेश जी ने इस घटना का वर्णन के साथ ही और भी कुछ प्रसंगों को उठाते हुए एक परिकल्पना प्रस्तुत की कि यदि राम और लक्ष्मण आज जीवित होते तो लक्ष्मण और उनके मध्य किस प्रकार का वार्तालाप होता | रचना वास्तव में अत्यन्त प्रभावशाली थी |
कार्यक्रम का समापन सभी रचनाकारों के सम्मान के बाद WOW India की Senior Vice President श्रीमती बानू बंसल जी के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ | कार्यक्रम में WOW India की कार्यकारिणी सदस्य श्रीमती अर्चना गर्ग सहित अनेक सदस्य उपस्थित रहे | कार्यक्रम का सफल संचालन WOW India की Cultural Secretary लीना जैन ने किया |
कार्यक्रम से पूर्व स्वस्थ जीवन के प्रति जागरूकता के लिए उपस्थित सदस्यों के HB और Thyroid की जाँच भी की गई |
बहुत शीघ्र ही कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग प्रस्तुत की जाएगी, तब तक प्रस्तुत हैं कार्यक्रम के कुछ चित्र…