(रेखा अस्थाना जी का संस्मरण… जब हम कोई वृक्ष रोपते हैं तो उसके साथ अपनी सन्तान के जैसा मोह हो जाना स्वाभाविक ही है… उसके फलने फूलने में कोई कमी रह
जाए तो मन उदास हो जाता है – उसी तरह जैसे अपनी सन्तान को कष्ट में देखकर होता है, और जब वो फलता फूलता है तो मन उसी प्रकार प्रफुल्लित हो उठता है जैसे अपनी सन्तान को सुखी देखकर होता है… यही भाव रेखा जी के इस संस्मरण में हैं… रेखा अस्थाना जी रिटायर्ड अध्यापिका हैं तथा हिन्दी की लब्धप्रतिष्ठ लेखिका और कवयित्री होने के साथ ही पर्यावरण के लिए भी कार्य कर रही हैं… डॉ पूर्णिमा शर्मा)
कवि हृदय की कमी आपको बता दूँ, वे कभी अपने मन के उदगार छिपा नहीं पाते | दुख हो या सुख, वे दूसरों को बताएँगे जरूर | एक तरह से ढोल होते हैं वे | जब तक बता न दें बेचैन रहते हैं वे | कोई सुनने वाला न मिले तो कागज पर ही मन की बात उतार देते हैं |
अब आइए मुद्दे की बात पर | मैं भी कुछ ऐसी ही हूँ | सारी हृदय की बातें जब तक कह न दूँ पेट में गैस बन जाती है | हुआ ऐसा कि मुझे पेड़ पौधों से बहुत लगाव है | बचपन से ही इनके बीच रहती आई हूँ | पेड़-पौधे की हर अवस्था को बारीकी से देखती व समझती हूँ | और जिस तरह बच्चे की हर क्रियाकलाप में आप उसे आशीष देते हैं मैं अपने इन पेड़ों को देती हूँ |
आज से लगभग ढाई बरस पूर्व मैंने एक सहजन का पौधा रोपा था | माली से ढाई सौ में खरीद कर | उसके पूर्व कई बार अनेक कटिंग सहजन की लगाई थी पर कोई न उगा |
यह लगाया हुआ पेड़ बड़ी तीव्र गति से पूरा वृक्ष बन गया | इसकी बढ़त देखकर मन झूम उठता | फिर इसकी छँटाई भी करवाई | पर ढाई बरस में फूला नहीं, मन उदास हो गया | भगवान से प्रार्थना कर रही थी |
अचानक फरवरी 2021 के प्रथम सप्ताह में जब प्रातः उठकर अपने छज्जे से सूर्यदेव को प्रणाम कर रही थी और दृष्टि सहजन के गाछ पर गयी तो फुनगियों पर कुछ गुलाबी मिश्रित नारंगी रंग के कलियों के गुच्छे दिखाई दिए |
मन में अचानक उछाह उठा | जल्दी से भीतर जाकर चश्मा उठा लाई और लगा कर बड़े ही प्यार से निहारने लगी और ईश्वर को कोटि- कोटि धन्यवाद दिया | सच बताऊँ कितनी खुशी हुई जैसे प्रथम बार किसी को माँ बनने की खबर पता चलती है उतनी ही खुशी इन कलियों को देखकर हुई |
मुझे अपने पोते को पहली बार जब देखकर मन प्रसन्न हुआ उसी प्रकार इन कलियों को निहार कर हुआ | अब तो रोज ही कलियों को निहारती हूँ और इनसे फूल बनने की प्रक्रिया भी देख रही हूँ | दोनों हाथ जोड़कर ईश्वर से आशीष माँगती हूँ | खूब फलो फूलो मेरे सहजन |तुम दुनिया की बुरी नज़र से बचे रहो|
इस प्रक्रिया को किसी को कह न पाई सो लिख दिया ताकि आप सब पढ़ सकें | और हाँ मेरे सहजन को आशीर्वाद जरूर देना…
कोई मित्र घर पर आए हुए थे | बातों बातों में वो कहने लगे “हम तो और कुछ नहीं चाहते, बस इतना चाहते हैं कि हमारा बेटा अच्छा जीवन जीये… अब देखो जी वो हमारे साले का बेटा है, अभी तीन चार साल ही तो नौकरी को हुए हैं, और देखो उसके पास क्या नहीं है… एक ये हमारे साहबजादे हैं, इनसे कितना भी कहते रहो कि भाई से कुछ सीखो, पर इनके तो कानों पर जूँ नहीं रेंगती… इतना कहते हैं भाई सपने बड़े देखोगे तभी बड़े आदमी बनोगे…”
उनका बेटा बहू भी वहीं बैठे थे तो बेटा “क्या पापा आप भी न हर समय बस…” बोलकर वहाँ से उठ गया और दूसरे कमरे में जा बैठा | मैं सोचने लगी “अच्छा जीवन” की हमारी परिभाषा क्या है ? ये जो इनका बेटा अभी इनसे अप्रसन्न होकर यहाँ से उठकर चला गया क्या यही है “अच्छा जीवन” ? जबकि इसके पास भी तो अच्छी खासी नौकरी है, सारी सुख सुविधाएँ हैं, फिर ये क्यों इसकी तुलना अपने भतीजे से कर रहे हैं ? क्या तथाकथित “बड़े सपने” देखना अच्छा जीवन है ? बिल्कुल हो सकता है | जितना कुछ अपने पास है उससे अधिक प्राप्त करने के सपने देखना अच्छा जीवन है ? हो सकता है | जो कुछ अपने पास है उसे सुरक्षित रखने के सपने देखना अच्छा जीवन है ? सम्भव है ऐसा ही हो | क्योंकि “बड़े सपने देखकर ही तो बड़े कार्य करने में सक्षम हो पाएँगे | क्योंकि तब हम “बड़े सपने” सत्य करने का प्रयास करेंगे” |
बड़े सपने तो कुछ भी हो सकते हैं – जैसे अथाह धन सम्पत्ति तथा भोग विलास के भौतिक साधनों को एकत्र करना भी हो सकता है, अथवा आत्मोन्नति के लिए प्रयास करना… दूसरों की निस्वार्थ भाव से सेवा करना… अपने भीतर के सुख और सन्तोष में वृद्धि करना ताकि उसके द्वारा हम दूसरों के जीवन में भी वही सुख और सन्तोष प्रदान कर सकें आदि कुछ भी हो सकता है…
यों देखा जाए तो सपने “छोटे या बड़े” हमारी कल्पना की तथा पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्थाओं की उपज होते हैं | जबकि वास्तव में सपना सपना होता है – न छोटा न बड़ा… एक साकार हो जाए तो दूसरा आरम्भ हो जाता है… कई बार जीवन में कुछ ऐसी अनहोनी घट जाती है कि हमें लगने लगता है हमारे सारे स्वप्न समाप्त हो गए, कहीं खो गए | सम्भव है जीवन की आपा धापी में हम दूसरों की अपेक्षा कहीं पीछे छूट गए हों, अथवा अकारण ही दैवकोप के कारण हमारा कुछ विशिष्ट हमसे छिन गया हो, या ऐसा ही बहुत कुछ – जिसकी कल्पना मात्र से हम सम्भव हैं काँप उठें… किन्तु इसे दु:स्वप्न समझकर भूल जाने में ही भलाई होती है… एक “बड़ा” स्वप्न टूटा तो क्या ? फिर से नवीन स्वप्न सजाने होंगे… तभी हम आगे बढ़ सकेंगे… जीवन सामान्य रूप से जी सकेंगे… अपने साथ साथ दूसरों के भी सपनों को साकार करने में सहायक हो सकेंगे…
और यही है वास्तव में वह अनुभूति जिसे हम कहते हैं “अच्छा जीवन”… हम जीवन में कितने भी सम्बन्ध बना लें, कितनी भी धन सम्पत्ति एकत्र कर लें, किन्तु कुछ भी सदा विद्यमान नहीं रहता… सब कुछ नश्वर है… मानव शरीर की ही भाँति… जो पञ्चतत्वों से निर्मित होकर पञ्चतत्व में ही विलीन हो जाता है… तो क्यों न कोई ऐसा “बड़ा” स्वप्न सजाया जाए जो हमारे आत्मोत्थान में सहायक हो…? ताकि हमारी “अच्छे जीवन” की परिभाषा सत्य सिद्ध हो सके…
और इस सबके साथ ही एक महत्त्वपूर्ण तथ्य ये भी कि इन सभी सपनों को सत्य करने के लिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी आवश्यक है… स्वास्थ्य ही यदि साथ नहीं देगा तो सारे सपने अधूरे ही रह जाएँगे… और मन में एक हताशा… एक निराशा… एक कुण्ठा… जन्म ले लेगी…
आज वसन्त पञ्चमी का वासन्ती पर्व है और हम सब माँ वाणी का अभिनन्दन करेंगे | माँ वाणी – सरस्वती – विद्या की – ज्ञान की देवी हैं | ज्ञान का अर्थ है शक्ति प्राप्त करना, सम्मान प्राप्त करना | ज्ञानार्जन करके व्यक्ति न केवल भौतिक जीवन में प्रगति कर सकता है अपितु मोक्ष की ओर भी अग्रसर हो सकता है | पुराणों में कहा गया है “सा विद्या या विमुक्तये” (विष्णु पुराण 1/19/41) अर्थात ज्ञान वही होता है जो व्यक्ति को मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करे | मोक्ष का अर्थ शरीर से मुक्ति नहीं है | मोक्ष का अर्थ है समस्त प्रकार के भयों से मुक्ति, समस्त प्रकार के सन्देहों से मुक्ति, समस्त प्रकार के अज्ञान – कुरीतियों – दुर्भावनाओं से मुक्ति – ताकि व्यक्ति के समक्ष उसका लक्ष्य स्पष्ट हो सके और उस लक्ष्य तक पहुँचने का मार्ग स्पष्ट हो सके | हम सब ज्ञान प्राप्त करके भय तथा सन्देहों से मुक्त होकर अपना लक्ष्य निर्धारित करके आगे बढ़ सकें इसी कामना के साथ सभी को वसन्त पञ्चमी और सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ…
अभी पिछले दिनों कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी | वसन्त के आगमन के साथ ही सर्दी में भी कुछ कमी सी है | और ऐसे सुहाने मौसम में ऋतुराज वसन्त के स्वागत में प्रकृति के कण कण को उल्लसित करता हुआ वसन्त पञ्चमी का अर्थात मधुऋतु का मधुमय पर्व…
कितना विचित्र संयोग है कि इस दिन एक ओर जहाँ ज्ञान विज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती को श्रद्धा सुमन समर्पित किये जाते हैं वहीं दूसरी ओर प्रेम के देवता कामदेव और उनकी पत्नी रति को भी स्नेह सुमनों के हार से विभूषित किया जाता है |
कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम् और ऋतुसंहार तथा बाणभट्ट के कादम्बरी और हर्ष चरित जैसे अमर ग्रन्थों में वसन्त ऋतु का तथा प्रेम के इस मधुर पर्व का इतना सुरुचिपूर्ण वर्णन उपलब्ध होता है कि जहाँ या तो प्रेमीजन जीवन भर साथ रहने का संकल्प लेते दिखाई देते हैं या फिर बिरहीजन अपने प्रिय के शीघ्र मिलन की कामना करते दिखाई देते हैं | संस्कृत ग्रन्थों में तो वसन्तोत्सव को मदनोत्सव ही कहा गया है जबकि वसन्त के श्रृंगार टेसू के पुष्पों से सजे वसन्त की मादकता देखकर तथा होली की मस्ती और फाग के गीतों की धुन पर हर मन मचल उठता था | इस मदनोत्सव में नर नारी एकत्र होकर चुन चुन कर पीले पुष्पों के हार बनाकर एक दूसरे को पहनाते और एक दूसरे पर अबीर कुमकुम की बौछार करते हुए वसन्त की मादकता में डूबकर कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा करते थे | यह पर्व Valentine’s Day की तरह केवल एक दिन के लिए ही प्रेमी जनों के दिलों की धड़कने बढ़ाकर शान्त नहीं हो जाता था, अपितु वसन्त पञ्चमी से लेकर होली तक सारा समय प्रेम के लिए समर्पित होता था | आज भी बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और उत्तराँचल सहित देश के अनेक अंचलों में पीतवस्त्रों और पीतपुष्पों में सजे नर-नारी बाल-वृद्ध एक साथ मिलकर माँ वाणी के वन्दन के साथ साथ प्रेम के इस देवता की भी उल्लासपूर्वक अर्चना करते हैं |
इस सबके पीछे कारण यही है कि इस समय प्रकृति में बहुत बड़े परिवर्तन होते हैं | सर्दियों की विदाई हो जाती है… प्रकृति स्वयं अपने समस्त बन्धन खोलकर – अपनी समस्त सीमाएँ तोड़कर – प्रेम के मद में ऐसी मस्त हो जाती है कि मानो ऋतुराज को रिझाने के लिए ही वासन्ती परिधान धारण कर नव प्रस्फुटित कलिकाओं से स्वयं को सुसज्जित कर लेती है… जिनका अनछुआ नवयौवन लख चारों ओर मंडराते भँवरे गुन गुन करते वसन्त का राग आलापने लगते हैं… और प्रकृति की इस रंग बिरंगी छटा को देखकर मगन हुई कोयल भी कुहू कुहू का गान सुनाती हर जड़ चेतन को प्रेम का नृत्य रचाने को विवश कर देती है… इसीलिए तो वसन्त को ऋतुओं का राजा कहा जाता है…
और संयोग देखिए कि आज ही के दिन नूतन काव्य वधू का अपने गीतों के माध्यम से नूतन श्रृंगार रचने वाले प्रकृति नटी के चतुर चितेरे महाप्राण निराला का जन्मदिवस भी धूम धाम से मनाया जाता है… यों निराला जी का जन्म 21 फरवरी 1899 यानी माघ शुक्ल एकादशी को हुआ था… लेकिन प्रकृति के सरस गायक होने के कारण 1930 से वसन्त पञ्चमी को उनका जन्मदिवस मनाने की प्रथा आरम्भ हुई…
तो, वसन्त के मनमोहक संगीत के साथ सभी मित्रों को सरस्वती पूजन, निराला जयन्ती तथा प्रेम के मधुमय वासन्ती पर्व वसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ… इस आशा और विश्वास के साथ कि हम सब ज्ञान प्राप्त करके समस्त भयों तथा सन्देहों से मोक्ष प्राप्त कर अपना लक्ष्य निर्धारित करके आगे बढ़ सकें… ताकि अपने लक्ष्य को प्राप्त करके उन्मुक्त भाव से प्रेम का राग आलाप सकें…
संग फूलों की बरात लिए लो ऋतु वसन्त अब चहक उठी ||
कोयल की तान सुरीली सी, भँवरे की गुँजन रसभीनी
सुनकर वासन्ती वसन धरे, दुलहिन सी धरती लचक उठी |
धरती का लख कर नवयौवन, लो झूम उठा हर चरन चरन
हर कूल कगार कछारों पर है मधुर रागिनी झनक उठी ||
ऋतु ने नूतन श्रृंगार किया, प्राणों में भर अनुराग दिया
सुख की पीली सरसों फूली, फिर नई उमंगें थिरक उठीं |
पर्वत टीले वन और उपवन हैं झूम रहे मलयानिल से
लो झूम झूम कर मलय पवन घर द्वार द्वार पर महक उठी ||
नमस्कार ! जैसा कि सभी जानते हैं कि सोलह फरवरी को वसन्त पञ्चमी का उल्लासमय पर्व है… तो सर्वप्रथम सभी को वसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ… वास्तव में बड़ी मदमस्त कर देने वाली होती है ये रुत… वृक्षों की शाख़ों पर चहचहाते पक्षियों का कलरव ऐसा लगता है मानों पर्वतराज की सभा में मुख्य नर्तकी के आने से पूर्व उसके
सम्मान में वृन्दगान चल रहा हो… हमें अक्सर याद आ जाता है कोटद्वार में अपने कार्यकाल के दौरान सिद्धबली मन्दिर के बाहर मुंडेर पर बैठ जाया करते थे अकेले… अपने आपमें खोए से… नीचे कल कल छल छल बहती खोह का मधुर संगीत मन को मोह लिया करता था… मन्दिर के चारों तरफ़ और ऊपर नीचे देखते तो हरियाली की चादर ताने और रंग बिरंगे पुष्पों से ढकी ऊँची नीची पहाड़ियाँ ऐसी जान पड़तीं… मानों अपने तने हुए उभरे कुचों पर बहुरंगी कंचुकियाँ कसे… हरितवर्णी उत्तरीयों से अपनी कदलीजँघाओं को हल्के से आवृत किये… कोई काममुग्धा नर्तकी नायिका… प्रियतम को मौन निमन्त्रण दे रही हो… उसे अभी कहाँ होश पर्वतराज की सभा में जा नृत्य करने का… अभी तो कामक्रीड़ा के पश्चात् कुछ अलसाना है… और उसके पश्चात्… और अधिक पुष्पों की जननी बनना है… वसन्त के आगमन पर उसे स्वयं को पुष्पहारों से और भी अलंकृत करना है… ताकि पिछली रात के सारे चिह्न विलुप्त हो जाएँ… और ऋतुराज वसन्त के लिये वो पुनः अनछुई कली जैसी बन जाए… ऐसा मदमस्त होता है वसन्त का मौसम… तभी तो कहते हैं इसे ऋतुओं का राजा… इसी उपलक्ष्य में प्रस्तुत हैं कुछ काव्य रचनाएँ ऋतुराज के सम्मान में… जो लिखी हैं हमारी सदस्यों ने… वसन्त पञ्चमी को क्योंकि माँ वाणी का भी प्रादुर्भाव माना जाता है, इसलिए “काव्य संकलन” के आज के अंक का आरम्भ हम माँ वाणी की वन्दना के साथ ही कर रहे हैं… समस्त प्रकार के ज्ञान विज्ञान अधिष्ठात्री देवी माँ वाणी… जो कुन्द के श्वेत पुष्प, धवल चन्द्र, श्वेत तुषार तथा धवल हार के सामान गौरवर्ण हैं… जो शुभ्र वस्त्रों से आवृत हैं… हाथों में जिनके उत्तम वीणा सुशोभित है… जो श्वेत पद्मासन पर विराजमान हैं… ब्रह्मा विष्णु महेश आदि देव जिनकी वन्दना करते हैं… तथा जो समस्त प्रकार की जड़ता को दूर करने में समर्थ हैं… ऐसी भगवती सरस्वती हमारा उद्धार करें तथा जन जन के हृदयों में नवीन आशा और विश्वास का संचार करें… प्रस्तुत पंक्तियों की जिसकी रचनाकार हैं पूजा श्रीवास्तव…
माता सरस्वती कर दे उजाला
जीवन में मेरे हे दीन दयाला
पियरी पहन मां सेज विराजे, देखूं तुझे और कुछ न साजे
वीणा संग मां हंस की सवारी, दरश करे ये दुनिया सारी
अपनी दया करो माता हमपे
सद्गुण सत्कर्म हो हम सबके
ऋतु छायी हरियाली सौन्दर्य ऐसा, मन को लुभाए मन मोहक जैसा
कुसुमित हो हर उपवन महके, मन मेरा देख के रह रह बहके
सर्वस्व मेरा तुझको समर्पण
मेरी बुराई का करो तुम तर्पण
मांगू मां तुझसे एक ही वर दो, हम कवियों की लेख अमर हो
विद्या बुद्धि और ज्ञान से भर दो, अपनी चरण में हमको जगह दो
लेखनी को मेरी अपनी कृपा दे
जब भी उठे चले सच के पथ पे
______________पूजा श्रीवास्तव
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वसन्त के स्वागत हित प्रस्तुत गीत रचा है रेखा अस्थाना जी ने… मदिराए वसन्त को देखकर नायिका मदमस्त हो थिरक उठती है… ऐसे में भला प्रियतम की याद उसे क्यों नहीं आएगी…
आ गया है ऋतु मेरा वसन्त |
धड़क धड़क धड़क जाए क्यों आज मेरा मन |
देखो सखी क्या आ गया है द्वार पर वसन्त…
स्वागत में मैंने उसके ओढ़ ली है पीली चुनर,
माथे पर अपने सजा ली है सुर्ख फूलों की झूमर |
धड़क धड़क धड़के है क्यों आज मेरा मन,
देखो सखी क्या आ गया मेरा प्रिय वसन्त…
होकर उसकी याद में मदमस्त बावरी,
कर ली सुगन्धि की मैंने तो पूरी शीशी ही खाली |
अब देखो चहुँ ओर बहने लगी है मलयज की तीखी गंध
थिरक रहें हैं पाँव मेरे, बस में नहीं रहा अब तो मेरा मन |
होकर बावरी गाऊँ गीत मैं, नाचूँ सनसनानन सन
धड़क धड़क धड़क रहा आज सखी मन…
बौराये वृक्ष देते हैं देखो, खुद ही निमन्त्रण
आ जाओ न प्रिय एक बार तुम, करने को आलिंगन |
पगलाई कोयलिया का नहीं, बस में रहा मन
देखो सखी क्या आ गया फिर से मेरा प्रिय वसन्त…
धड़क धड़क धड़क रहा है आज मेरा मन…
सुन्दर छटा अपनी देखकर, इतराए धरा का मन,
किस तरह करूँ आकर्षित तुमको,
गढ़ने लगी अब तो मैं भी प्रेम का ही छंद ||
धड़क धड़क धड़क रहा है क्यों आज मेरा मन
देखो सखी क्या आ गया मेरा प्रिय वसन्त…
____________________रेखा अस्थाना
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और अब एक अन्य ख़ूबसूरत रचना वसन्त के ही स्वागत में… समूची धरा जब हरीतिमा की चादर ओढ़े जन जन को मोहित कर रही हो ऐसे में प्रियतम का पन्थ निहारती नायिका की मनःस्थिति का बहुत सुन्दर चित्रण किया है शशिकिरण श्रीवास्तव ने…
आया बसंत लहराई सरसों, प्रकृति ने किया श्रृंगार
रंग बिरंगी ओढ़नी से ख़ुद को लिया सँवार ||
बागों में कूक रही है कोयल, आंगन में नाचे मोर
पीले पीले पुष्प खिलें हैं देखो चारों ओर ||
कण कण में मस्ती छाई है, अब आया मधुमास
बौराया यह मस्त महीना ले आया उल्लास ||
तन मन मेरा भीग गया जब ठंढी चली बयार
देखूं मैं चारों तरफ वसंत ले आया प्यार ||
देखकर मन मुग्ध हुई मैं देखूं बारंबार
आया वसंत झूमकर लेकर अपना प्यार ||
पतझड़ के कोख से होता हरियाली का जन्म
सब कुछ खोकर भी प्रकृति का उल्लास ना होता कम ||
अब आ भी जाओ साँवरे रही तेरी पंथ निहार
मिलकर रास रचाऊं मैं, तरस रहा संसार ||
___________________शशि किरन श्रीवास्तव
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डॉ बृजबाला शर्मा… हिन्दी की लब्धप्रतिष्ठ कवयित्री… जिस प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया, उसी का दोहन हम निरन्तर करते चले आ रहे हैं, ऐसे में कवयित्री का मन व्यथित है और वो बोल उठी है – मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ… रचना का शीर्षक है “फाग का राग”…
सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ, विकल विकल ज़न ज़न के मन |
नयनों भरा जब हो उनके नीर, निज को उलझन में पाऊँ ll
सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ…
प्रकृति की क्या है प्रकृति, कभी भी समझ नहीं पाती |
मोहिनी बन छाई वसुधा पर, अभिराम छटा आँखों में समाऊँ ||
सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ…
मोहन से दोहन की यात्रा, मनुज कर्म का ही है लेखा |
लोभ सुरसा का उदर भरे न, असमंजस में घिरे हुए पाऊँ ||
सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ…
हरीतिम मखमली धरा के युग – युग ऋणी रहे हम |
समय माँग करे है हमसे, वैभव बन पुनः बिछ जाऊँ ||
सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ…
चेतना होगा मनु जाति को कहर बरपे न कभी ऐसा |
सृष्टि निर्मित साध्य बने सब, पुष्प पराग बन खिल जाऊँ ||
सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ…
___________________डॉ बृजबाला शर्मा
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माँ वाणी के वन्दन के साथ वसन्त के उल्लास का बड़ा सुन्दर शब्द चित्र प्रस्तुत किया है डॉ रश्मि चौबे ने… शीर्षक है “देखो फिर आ गया वसंत”…
देखो फिर आ गया वसन्त, जिन्दगी में भरने को रंग |
सरस्वती माँ ने वीणा बजाई,
चारों ओर मंत्रोच्चार की आवाज आई |
पीले परिधानों में सज गयी सखियाँ,
पीले पकवानों से भर गयीं थालियाँ |
वीणा की झंकार के संग देखो फिर आ गया वसन्त |
धरती ने पहनी फूलों की चुनरिया,
मन में भरी उमंगों की गगरिया,
वसुंधरा चलती मदमस्त यौवन से भर उल्लास,
पवन भी मन्द-मन्द सुनाता अपना राग,
लताएं लेती अंगडाई, छत पर मीठी धूप है आई,
हरियाली छायी चहुं ओर,
अब नाचने लगा है मन का मोर, देखो फिर आ गया वसन्त |
वसंतोत्सव के साथ मदनोत्सव है आया,
फूलों के आदान-प्रदान का मौसम छाया,
शहनाई बजाता प्यार बरसात चहुं ओर,
जीवन को रंगों से करेगा सराबोर |
देखो फिर आया वसंत, जिंदगी में भरने को रंग |
___________________डॉ रश्मि चौबे
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और अब, ऋतुराज के सम्मान में कुछ पंक्तियाँ हमारी ओर से भी… शीर्षक है “आया वसन्त, आया वसन्त”…
आया वसन्त आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त |
वसुधा के कोने कोने में छाया वसन्त छाया वसन्त ||
लो फिर से है आया वसन्त, लो फिर से मुस्काया वसन्त |
हरियाली धरती को मदमस्त बनाता लो आया वसन्त ||
और अंग अंग में मधु की मस्त बहारों सा छाया वसन्त |
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
मुरझाई डाली लहक उठी, फूलों की बगिया महक उठी |
सरसों फूली अम्बुवा फूले, कोयल मधुस्वर में चहक उठी ||
वन उपवन बाग़ बगीचों में पञ्चम सुर में गाया वसन्त |
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
पपीहा बंसी में सुर फूँके, और डार डार महके फूले |
है सजा प्रणय का राग, हरेक जड़ चेतन का है मन झूमे ||
लो मस्ती का है रास रचाता महकाता आया वसन्त |
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
भंवरा गाता गुन गुन गुन गुन, कलियों से करता अठखेली |
और प्रेम पगे भावों से मन में उनके हूक उपज उठती ||
फिर मस्ती का है राग सुनाता लहराता आया वसन्त |
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
धरती ने पाया नव यौवन, उन्मत्त हो उठे चरन चरन |
छवि देख निराली मधुऋतु की रह गए खुले के खुले नयन |
नयनों की गागर में छवि का सागर भर छलकाया वसन्त ||
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
ऋतु ने नूतन श्रृंगार किया, नैनों में भर अनुराग दिया |
और कामदेव ने एक बार फिर चढ़ा धनुष पर बाण दिया |
तब पीत पुष्प से सजी धरा संग फिर से बौराया बसन्त ||
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
माँ वाणी की उपासना के साथ ही वासन्ती हवाओं से सबके मनों को प्रफुल्लित करते हुए ऋतुराज वसन्त के स्वागत हित प्रस्तुत इस काव्य संकलन के साथ ही वसन्त पञ्चमी की सभी को एक बार पुनः हार्दिक शुभकामनाएँ…
अकेलापन और एकान्त – An article by Dr. Purnima Sharma
हम सभी जानते हैं कि सारा विश्व 2019 के अन्तिम माह से कोरोना से जूझ रहा है – एक ऐसी महामारी जिसने समूचे विश्व को इस तरह जकड़ लिया कि हर कोई अपने घर में
ही बन्द होकर बैठने को विवश हो गया | इस सबसे ये लाभ तो हुआ कि परिवार के साथ मिल बैठने के लिए अवकाश प्राप्त हुआ – क्योंकि काम की भाग दौड़ के चलते इसके लिए समय नहीं निकाल पाते थे, अपने घरों के काम जिनके लिए जहाँ हम सभी घर में काम करने के लिए आने वाले सहायकों पर निर्भर हो गए थे वहीं लॉकडाउन के कारण अपने घरों के काम परिवार के सदस्यों ने मिल जुलकर करने आरम्भ कर दिए, आए दिन जो बाहर जाकर डिनर और लंच करने का या बाहर से घर पर भोजन मँगाकर खाने का स्वभाव हम सभी का हो गया था – अब घर में पके भोजन का महत्त्व सभी को समझ आने लगा, सड़कों पर वाहनों की कमी के कारण प्रदूषण का अभाव हुआ और सारी प्रकृति फिर से एक बार युवा हो उठी, हमें सभी को अपनी अपनी उन रुचियों में कुशलता प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ जो हम सामान्य तौर पर कार्य की अधिकता के कारण नहीं कर पाते थे | और एक बात जो बहुत अच्छी हुई वो यह कि हमें स्वयं को समझने के लिए – आत्मानुशीलन और आत्म विश्लेषण के लिए समय प्राप्त हो गया – विशेष रूप से अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर व्यक्तियों के लिए यह एक बहुत सकारात्मक अनुभूति रही | ऐसा नहीं था कि हम एकान्त में थे, परिवार के बीच थे – लेकिन समय इतना अधिक था कि परिवार के बीच बैठकर भी कुछ समय अपने लिए निकालना सरल हो रहा था |
हम प्रायः अकेलेपन और एकान्त को समझने में भूल कर बैठते हैं और सोचने लगते हैं कि जो व्यक्ति अकेला रहता है वही वास्तव में एकान्तवासी होता है और वही एकाग्रचित्त होकर अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करके लक्ष्य प्राप्त कर सकता है | अथवा एकान्त में बैठकर साधना करके मोक्ष को प्राप्त हो सकता है | जबकि वास्तविकता यह है कि अकेलापन और एकान्त दोनों एक दूसरे से पृथक हैं |
अकेलापन ख़ालीपन का अहसास लिए हुए एक ऐसी भावना है जिसके चलते व्यक्ति का स्वयं पर से विश्वास उठ सकता है, उसके भीतर प्रवाहित होती रहने वाली आनन्द और प्रेम की निर्मल सरिता शुष्क हो सकती है, रुचियाँ समाप्त हो सकती हैं और यहाँ तक कि व्यक्ति घोर निराशा और अवसाद में डूब सकता है | ऐसा इसलिए कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है |
हालाँकि यह भी सच है कि अपने दैनिक क्रियाकलापों से थक कर कुछ समय के लिए यदि अकेला रहकर एकान्त के क्षणों का अनुभव किया जाए तो व्यक्ति में नवजीवन का संचार होकर फिर से कार्य के लिए उत्साह उत्पन्न हो जाता है – क्योंकि तब वह पूर्ण रूप से अपने साथ होता है | लेकिन आत्मोन्नति के लिए किसी एकान्त की आवश्यकता नहीं होती | सबके बीच बैठकर भी व्यक्ति अन्तर्मुखी हो सकता है और आत्मोन्नति के लिय एकान्त के क्षणों का अनुभव कर सकता है |
हम सभी एकान्त का अनुभव करें, अकेलेपन का नहीं, क्योंकि अकेलापन एक पीड़ादायक अहसास है – जबकि एकान्त में हम स्वयं के प्रति जागरूक होकर स्वयं के सान्निध्य का सुख अनुभव करते हैं…
Yesterday our finance Minister Mrs. Nirmala Seetharaman presented the Union Budget for the year 2021-2022, here are some highlights by CA Deepali N Bansal… Deepali N Bansal is a practicing Chartered Accountant since 1999. Following article is a compilation of information available at Govt. Website and professional experts. She tried to cover maximum points which are relevant to general Public in simplified manner… Must read… Dr. Purnima Sharma…)
Union Budget 2021-22 Highlights
✅ *Direct and Indirect Tax*
Senior Citizens: Reduced Compliance burden. 75 years and above. Proposal not to file ITR, if only pension income and interest income.
Reduction in time for IT Proceedings: Reopening of Assessments period reduced from 6 years to 3 years except in cases of serious tax evasion cases- where evasion evidence is 50 Lacs or more than reopening within 10 years
Reducing Litigation for small tax payers – Constitution of Faceless Dispute Resolution Panel for people with Total Income upto Rs.50 lakh and disputed income of Rs.10 lakh U/S 245MA.
Income Tax Appellate Tribunal to become Faceless – Only electronic communication will be done or with video call.
Relaxations to NRI: Propose to notify rules for removing hardship for double taxation.
Tax Audit Limit: Proposal of tax audit increased from 5 Cr. to 10 cr. (Only for 95% digitized payments business)
Dividend Tax : Dividend will be exempt from TDS. Advance tax liability on dividend income will arise only after declaration or payment of dividend. For Foreign Investors – lower treaty rate benefit will be given.
Tax Holiday: Propose to include tax holidays for Aircraft leasing companies
Prefiling of returns: (Salary, Tax payments, TDS etc.) Details of Capital Gains, Dividend Income and Interest income will be pre-filled in the returns
Small Charitable Trusts: Increased from 1 crore to 5 crores (Compliance limit)
LatePF Contribution: Late deposit of employee’s contribution by employer will not be allowed as deduction
Incentive to startup: Tax holiday for Start-Ups extended to 31st March, 2022. Capital Gains exemption on investment in start ups also extended to 31s March, 2022.
Duties reduced :on various textile, chemicals and other products
Gold and Silver: Basic Custom Duty reduced
Agriculture Products: Custom duty increased on cottons, silks, alcohol etc.
Section 80EEA (AHAD) deduction extended:The affordable housing additional deduction was extended till 31st March 2022. The tax exemption has been granted for affordable rental projects.
NO CHANGE IN INCOME TAX SLAB
NO CHANGE IN EXEMPTION UNDER CHAPTER IX
NO RELIEF TO SALARY PERSON UNDER STANDARD DEDUCTION
✅ MCA, Companies Act, LLP Act*
Easing Compliance requirements of Small Companies – Threshold increased to Share Capital upto Rs.2 crore and Turnover upto Rs.20 crore will be Small Companies
Allow One Person Companies (OPC) to grow without any restriction in Share Capital or Turnover. NRIs will be allowed to set-up OPCs. Presence in India of 120 days in a year enough to start an OPC.
Launching MCA Version 3.0 – E-Scrutiny, E-Adjudication and Compliance management to be simplified.
Decriminalisation of LLP Act, 2008
Tribunals to be rationalised
✅ *General*
First digital Budget in the history of India
Vehicle Scrapping Policy: Vehicle Fitness Test after 20 years in case of Personal vehicle and 15 years in case of commercial vehicles
64,180 crores allocated for New Health Schemes
35,000 crores allocated for Covid Vaccine
7 Mega Textile Investment parks will be launched in 3 years
5.54 lakh crore provided for Capital Expenditure
1.18 lakh crore for Ministry of Roads
1.10 lakh crore allocated to Railways
Proposal to amend Insurance Act: Proposal to increase FDI from 49% to 74 %.
Deposit Insurance cover (DICGC Act 1961 to be amended): Easy and time bound access of deposits to help depositors of stress banks.
Proposal to revive definition of ‘Small Companies’ under Companies Act 2013: Capital less than 2 Cr. and Turnover Less than 20 Cr.
Disinvestment: IPO of LIC, Announced Disinvestment of Companies will be completed in FY 2021-22
Agriculture Infrastructure And Development Cess (AIDC) : has been newly imposed on petrol and diesel at Rs.2.5 and Rs.4 per litre respectively.(But no new burden on Consumers)
Turant Customs :A new initiative called ‘Turant Customs’ will be introduced for faceless, paperless, and contactless customs measures.
(If you wish to get in touch with CA Deepali N Bansal, you can send an e-mail on deepalinbansal@gmail.com or call on 9873135670)
बच्चा जब जन्म लेता है तो वह एक मासूम सा प्यारा सा बच्चा होता है | हर परेशानियों से दूर जिम्मेदारियों से मुक्त बचपन जब बच्चा बड़ा होता है, स्कूल जाता है, खेलता है और लंच तो ब्रेक से पहले ही खत्म हो जाता है और, उनका दिल साफ, उड़ने के लिए तैयार, आसमान को छूने को तैयार, तब तक यह सिर्फ नंबर ही होते हैं | बड़े होते हैं | नए दोस्त, पढ़ाई का बोझ, वह केवल नंबर होते हैं इस तरह बचपन खुशनुमा मस्ती भरा, थोड़ा हैवी और बहुत सारी यादों के साथ बचपन का नंबर उम्र में बदलना शुरू होता है |
तब शुरू होती है एक उम्र कई जिम्मेदारियों परेशानियों के साथ अपने प्यार को पाने, के लिए भी एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन, एक अच्छी नौकरी की | और इस भाग दौड़ में हम जीते हैं अपनी सिर्फ एक उम्र, जिसमें होते हैं कई सवाल | जैसे इतनी उम्र में एक घर, उतनी उम्र में शादी और एक मुकाम इस बीच में रह जाती है | सिर्फ केवल एक उम्र | कुछ लोग तो सिर्फ एक उम्र ही जीते हैं | ना उनकी कोई ख्वाहिश होती है ना दिल में उमंग | उन्हें याद ही नहीं रहता कि वह आखिरी बार दिल खोलकर कब हंसे थे | कब आखिरी बार बारिश में भीगे थे | कई लोग तो इतने बोर होते हैं जैसे वह अपनी जिंदगी बोझ की तरह जी रहे हैं | वे ना उम्र जीते हैं और ना ही नंबर,…….
कुछ लोगों की किस्मत साथ देती है फिर भी पैसे कमाने की होड़ में लग जाते हैं और वह इस होड़ में इतनी दूर आ जाते हैं कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि कितने सालों से उनकी साथी कई तरह की दवाइयां बन चुकी है | कई बार तो इतनी देर हो जाती है और उन्हें पता चलता है कि उन्हें कोई गंभीर बीमारी है | फिर उनकी आखिरी समय तक रह जाता है हॉस्पिटल का एक बेड चार बाय चार का कमरा, एक गर्म पानी की बोतल, और बिना स्वाद वाला खाना, और कई सवाल – क्यों मैंने एक पिंजरे में बंद पक्षी की तरह जिंदगी जी – क्यों मैंने एक उम्र जी – क्यों मैं उसे नंबर में नहीं बदल सका…
इसलिए उठो… थोड़ा सोचो… ज्यादा देर हो जाए उससे पहले स्वयं को पहचानो… तुम्हें क्या पसंद है… और शुरूआत करो एक सफर की उम्र को नंबर में बदलने की…
सुबह उठकर 5 मिनट पसंदीदा गाने पर अपने पांव को थिरकाओ | चाहे उम्र 90 की क्यों ना हो फिर भी जिंदादिली से अपनी इच्छाओं को पूरा करो और एक बार अपना बचपन फिर जी लो | हर वह काम करो जो कहीं किसी दिल में कोने में दब गया था | एक बार फिर बचपन जी लो बच्चों के साथ बच्चे बनकर दिल खोलकर हंसो और 90 की उम्र में भी एक गोल्ड मेडल जीतो | हर वह काम करो कि मरने का अफसोस ना रहे और ना कोई सवाल, हो तो एक चेहरे पर बड़ी मुस्कान… एक खुशी… और मन की शांति कि मैंने केवल उम्र नहीं जी… मैंने अपनी उम्र को रोक दिया है सिर्फ नंबर में… और हर पल की एक सेल्फी लो… जब उसे देखो तो मन खुश हो जाए और चेहरे पर आ जाए बड़ी मुस्कान कि हमने अपनी उम्र को नंबर मैं रोक दिया,………,???
पूजा भारद्वाज
(पूजा भारद्वाज ने दिल्ली के हंसराम कॉलेज से आर्ट्स में ग्रेजुएशन किया है | वर्तमान में ये अपने पति के साथ मिलकर financial consultancy services देती हैं | इस सबके साथ ही इन्हें पेंटिंग का तथा कुकिंग का शौक़ है | साथ में लिखने का भी शौक़ है | ये WOW India की इन्द्रप्रस्थ विस्तार ब्रांच की सदस्य हैं…) डॉ पूर्णिमा शर्मा…
हम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफल रहें और हमें किसी प्रकार का मानसिक तनाव न हो इसके लिए हमें जीवन भर कहीं न कहीं से कोई न कोई सलाह मिलती ही रहती है – यह करो, वह न करो – इत्यादि इत्यादि, और आप स्वयं को इस सुझावों के चक्रव्यूह में घिरा अनुभव करने लगते हैं | पर क्या आज के समय में ऐसा कोई व्यक्ति है जो तनाव रहित जीवन जी रहा हो ? कभी कभी तो लगता है कि ये तनाव मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग हैं | इनसे भागा नहीं जा सकता, हाँ इन्हें कम अवश्य किया जा सकता है | बहुत से तनाव तो ऐसे होते हैं कि जिनका कोई औचित्य ही नहीं होता | अनावश्यक रूप से हमने उन तनावों को ओढ़ लिया होता है |
इसलिए सबसे पहली आवश्यकता है कि हम अपने जीवन का, अपनी भावनाओं का और अपने परिवेश का अच्छी तरह आकलन करें | इससे हमें उन वस्तुओं, उन परिस्थितियों, उन सम्बन्धों को पहचानने में सहायता प्राप्त होगी जिनके कारण हमें तनाव होता है | उन बातों की एक सूची तैयार करें जिनके कारण हमें तनाव होता है | अब इस सूची में से उन बातों को खोजें जो हमारे लिए निरर्थक हैं और जिन्हें हम सरलता से अपने जीवन से निकाल सकते हैं | अब ईमानदारी के साथ इन्हें अपने जीवन से निकालने का प्रयास करें | इनमें से कुछ टेंशन तो ऐसी होंगी जिन्हें हम अपनी जीवनशैली यानी लाइफ स्टाइल में सुधार करके दूर कर सकते हैं |
साथ ही, सम्बन्धों के प्रति ईमानदार रहें | कुछ सम्बन्ध ऐसे भी होंगे जो हमारे लिए निरर्थक या हम पर बोझ होंगे और उनके कारण हमें निरन्तर तनाव का – नकारात्मकता का अनुभव होता होगा | उन सम्बन्धों को यदि छोड़ा भी नहीं जा सकता है तो कम से कम उनसे विनम्रता पूर्वक इतनी दूरी अवश्य बनाई जा सकती है कि वे आपको प्रभावित न कर सकें | सम्बन्ध परस्पर सम्मान की भावना पर आधारित होने चाहिएँ और उनमें किसी प्रकार की अपेक्षा दोनों ही ओर से नहीं होनी चाहिए | साथ ही, यदि आप विवाहित हैं, तो ध्यान रहे – विवाहेतर सम्बन्ध सदैव तनाव का कारण होते हैं |
अपने जीवन मूल्यों और अपने कार्य के प्रति निष्ठावान रहें | और अपने प्रति भी निष्ठावान रहें | ऐसा करने से आपका बहुत से तनाव स्वतः ही दूर हो जाएगा | बहुत से तनाव तो इसलिए भी उत्पन्न होते हैं कि हमें वो कार्य करने पड़ते हैं जिनमें हमारी रुचि नहीं होती | माता पिता या रिश्तेदारों ने कहा ये कोर्स कर लो, ये काम कर लो, उसमें रूचि है या नहीं – लेकिन करना पड़ जाता है | ऐसे में न तो उस कार्य में मन लगेगा और न ही उसमें पूर्ण कुशलता प्राप्त हो पाएगी | और यही सबसे कारण बन जाएगा मानसिक तनाव का – मानसिक अवसाद का | इसलिए प्रयास ऐसा करना चाहिए की आपकी शिक्षा दीक्षा यानी एजुकेशन और आपका व्यवसाय यानी प्रोफेशन आपकी रुचि का हो | केवल पैसा कमाने के लिए काम करेंगे तो तनाव स्वाभाविक है | और इस बात को आपके परिवारजनों को भी समझना आवश्यक है | भले ही आपको सपरिवार इसके लिए काउंसलिंग ही क्यों न लेनी पड़े | ऐसा करके आपको उचित दिशा निर्देश प्राप्त होगा और आप सफलतापूर्वक बिना किसी तनाव के अपना कार्य करने में सक्षम हो सकेंगे |
ध्यान रहे हमारे पास दिन भर में 24 घण्टे ही होते हैं, लेकिन हम सारे संसार को प्रसन्न रखना चाहते हैं – जिसके लिए 48 घण्टे भी कम पड़ जाते हैं और हम मानसिक तनाव में आ जाते हैं | इसलिए सोच समझ कर अपनी सामर्थ्य के अनुसार कार्य करना चाहिए |
यदि जीवन शैली और सोच इस प्रकार की होगी तो सरलता से एक ईमानदार, सत्यता से युक्त, आनन्दमय लेकिन सादा जीवन जी सकते हैं |
जीवन संघर्षों का नाम है | संघर्षों से लड़ते हुए जो व्यक्ति बिना धैर्य खोए आगे बढ़ता रहता है वही व्यक्ति जीवन में सफल होता है – अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है | जो
व्यक्ति संकटों और संघर्षों से घबराता नहीं, बाधाओं के उपस्थित होने पर अपना धैर्य नहीं खोने देता उसी व्यक्ति की सफलता की कहानियों को लोग युगों युगों तक याद करते रहते हैं |
“भय बाधा से हार मानकर आगे पीछे क़दम बढ़ाना
यह इस पथ की रीत नहीं, ना कर्मयोगी का है यह बाना |”
लेकिन सफलता किसी को भी यों ही प्राप्त नहीं हो जाती | सफलता प्राप्ति के लिए तथा उस सफलता के अहंकार से बचने के लिए और विनम्र भाव से हर किसी की सहायता करते रहने के लिए व्यक्ति में कुछ विशेष गुणों का होना भी आवश्यक है |
सबसे पहली आवश्यकता है सकारात्मक सोच | व्यक्ति की सोच सकारात्मक होगी तो वह कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी साहस के साथ मार्ग बनाकर आगे बढ़ सकता है | साथ ही जो व्यक्ति जीवन में सफल हो जाता है – जिसे कुछ उपलब्धि हो जाती है – ऐसे व्यक्ति का दृष्टिकोण पूर्ण रूप से सकारात्मक हो जाता है | किसी प्रकार की नकारात्मकता के लिए वहाँ कोई स्थान नहीं रहता न ही किसी दूसरे व्यक्ति की आलोचना की सोच उसके मन में आने पाती है | अपितु अन्य व्यक्तियों के समक्ष वह अपने प्रतिद्वन्द्वियों की भी हृदय से प्रशंसा ही करता है | क्योंकि उस व्यक्ति के मन में समभाव – समत्व बुद्धि – आ जाती है |
व्यक्ति को बड़े से बड़े अवॉर्ड क्यों न मिल जाएँ उसकी योग्यताओं के कारण, कितनी भी सम्पन्नता क्यों न प्राप्त हो जाए उसकी समझदारी और परिश्रम के बल पर, किन्तु यदि उसकी सोच में तनिक भी नकारात्मकता है – अहंकार है – दूसरों की अस्वस्थ आलोचना (स्वस्थ भाव से की गई आलोचना व्यक्ति को भूल सुधार का अवसर प्रदान करती है) करने का स्वभाव है – वह व्यक्ति बाहर से सफल होते हुए भी भीतर से बिल्कुल रीता है – अपूर्ण है – असन्तुष्ट है |
इसके साथ ही आवश्यकता है कि व्यक्ति को समाधान बनने का प्रयास करना चाहिए न की यह कि वह स्वयं ही समस्या बन जाए – समस्या का कारण बन जाए | जो व्यक्ति हर बात में – हर परिस्थिति में केवल समस्याएँ ही देखता है उसे कोई भी बड़ा उत्तरदायित्व सौंपने से बचता है | उसकी बातों को भी लोग गम्भीरता से नहीं लेते | जो लोग समस्या में भी समाधान खोज लेते हैं वही प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होकर अपना लक्ष्य प्राप्त करते हैं और सफल होते हैं तथा दूसरों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करते हैं | ऐसे व्यक्ति दूसरों की समस्याओं का भी समाधान कर सकने में सक्षम होते हैं |
सफल व्यक्तियों का स्वभाव होता है कि वे सदा अपने कार्य का सम्मान करते हैं तथा दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करते | क्योंकि जो व्यक्ति अपने कार्य का सम्मान करता है कार्य भी उसका सम्मान करता है | साथ ही जो व्यक्ति दूसरों के कार्यों में बिना कहे हस्तक्षेप नहीं करते दूसरे व्यक्ति भी उनका सम्मान करते हैं और इस प्रकार उन्हें अपना लक्ष्य प्राप्त करने में भी सहायता प्राप्त होती है | साथ ही, सफल व्यक्ति कभी भी किसी दूसरे व्यक्ति के कार्य में व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास नहीं करते अपितु जितना सम्भव हो उस व्यक्ति को आगे बढ़ाने में उसकी सहायता ही करते हैं |
और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि – जैसा आरम्भ में ही लिखा है – सफलता की कामना करने वाला व्यक्ति धैर्य और उत्साह से परिपूर्ण होता है | अपनी स्वयं की भूलों से सीख लेकर साहस के साथ आगे बढ़ता है और सफलता का आनन्द उठता है | ऐसे सफल व्यक्ति अपने कथनों और कार्यों के माध्यम से बिना किसी स्वार्थ के दूसरों का भी धैर्य और साहस बढ़ाने में सहयोग देते हैं… डॉ पूर्णिमा शर्मा
रविवार आषाढ़ कृष्ण अमावस्या को प्रातः दस बजकर बीस मिनट के लगभग सूर्य ग्रहण का आरम्भ होगा जो भारत के कुछ भागों में कंकणाकृति अर्थात वलयाकार दिखाई
देगा तथा कुछ भागों में आंशिक रूप से दिखाई देगा और दिन में 1:49 के लगभग समाप्त हो जाएगा | बारह बजकर दो मिनट के लगभग ग्रहण का मध्यकाल होगा | ग्रहण की कुल अवधि 3 घंटे 28 मिनट 36 सेकेंड्स की है | ग्रहण का सूतक शनिवार 20 जून को रात्रि नौ बजकर बावन मिनट से आरम्भ होगा | किन्तु जो लोग बीमार हैं उनके लिए, बच्चों के लिए तथा गर्भवती महिलाओं के लिए 21 जून की प्रातः पाँच बजकर चौबीस मिनट यानी सूर्योदय काल से सूतक का आरम्भ माना जाएगा | यह ग्रहण मिथुन राशि पर है जहाँ सूर्य, चन्द्र और राहु के साथ बुध भी गोचर कर रहा है | सूर्य, चन्द्र और राहु मृगशिर नक्षत्र में हैं | साथ ही इस दिन से भगवान भास्कर दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान आरम्भ कर देते हैं और दिन की अवधि धीरे धीरे कम होनी आरम्भ हो जाती है, इसीलिए इस दिन को ग्रीष्मकालीन सबसे बड़ा दिन भी माना जाता है | किन्तु ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार कर्क संक्रान्ति को सूर्यदेव का दक्षिण दिशा में प्रस्थान आरम्भ होता है जिसे निरयण दक्षिणायन कहा जाता है – जो 16 जुलाई को होगी |
ग्रहण के विषय में हम पूर्व में भी बहुत कुछ लिख चुके हैं | अतः पौराणिक कथाओं के विस्तार में नहीं जाएँगे | हमारे ज्योतिषियों की मान्यता है कि ग्रहण की अवधि में उपवास रखना चाहिए, बालों में कंघी आदि नहीं करनी चाहिए, गर्भवती महिलाओं को न तो बाहर निकलना चाहिए, न ही चाकू कैंची आदि से सम्बन्धित कोई कार्य करना चाहिए, अन्यथा गर्भस्थ शिशु पर ग्रहण का बुरा प्रभाव पड़ता है (यद्यपि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है) तथा ग्रहण समाप्ति पर स्नानादि से निवृत्त होकर दानादि कर्म करने चाहियें | साथ ही जिन राशियों के लिए ग्रहण का अशुभ प्रभाव हो उन्हें विशेष रूप से ग्रहण शान्ति के उपाय करने चाहियें | इसके अतिरिक्त ऐसा भी माना जाता है कि पितृ दोष निवारण के लिए, मन्त्र सिद्धि के लिए तथा धार्मिक अनुष्ठानों के लिए ग्रहण की अवधि बहुत उत्तम होती है |
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ये सब खगोलीय घटनाएँ हैं और खगोल वैज्ञानिकों की खोज के विषय हैं क्योंकि ग्रहण के आध्यात्मिक महत्त्व के साथ ही संसार भर के वैज्ञानिकों के लिए यह अवसर किसी उत्सव से कम नहीं होता जब वे सौर मण्डल में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन करते हैं | तो इस विषय पर हम नहीं जाएँगे | क्योंकि विज्ञान और आस्था में भेद होता है | हम यहाँ बात करते हैं हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और आस्थाओं की | भारतीय हिन्दू मान्यताओं तथा भविष्य पुराण, नारद पुराण आदि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य और चन्द्र ग्रहण अत्यन्त अद्भुत ज्योतिषीय घटनाएँ हैं जिनका समूची प्रकृति पर तथा जन जीवन पर प्रभाव पड़ता है |
यदि व्यावहारिक रूप से देखें तो इसे इस प्रकार समझना चाहिए कि जिस प्रकार वर्षाकाल में जब सूर्य को मेघों का समूह ढक लेता है उस समय प्रायः बहुत से लोगों की भूख प्यास कम हो जाती है, पाचन क्रिया भी दुर्बल हो जाती है, शरीर में आलस्य की सी स्थिति हो जाती है | इसका कारण है कि सूर्य समस्त चराचर जगत की आत्मा है – परम ऊर्जा और चेतना का स्रोत है | बादलों से ढका होने के कारण सूर्य से प्राप्त वह ऊर्जा एवं चेतना जीवों तक नहीं पहुँच पाती और उनमें इस प्रकार के परिवर्तन आरम्भ हो जाते हैं | इसी प्रकार यद्यपि चाँद घटता बढ़ता रहता हैं, किन्तु जब बादलों के कारण आकाश में चन्द्रमा के दर्शन नहीं होते तब भी समूची प्रकृति पर भावनात्मक प्रभाव पड़ना आरम्भ हो जाता है | ग्रहण में भी यह स्थिति होती है |
सूर्य और चन्द्रमा के मध्य जब पृथिवी आ जाती है और चन्द्रमा पर पृथिवी की छाया पड़ने लगती है तो उसे चन्द्र ग्रहण कहा जाता है, और जब सूर्य तथा पृथिवी के मध्य चन्द्रमा आ जाता है तो सूर्य का बिम्ब चन्द्रमा के पीछे कुछ समय के लिए ढक जाता है – इसे सूर्य ग्रहण कहा जाता है | चन्द्र ग्रहण के समय चन्द्रमा की शीतल किरणें प्राणियों तक नहीं पहुँच पातीं | ज्योतिषीय सिद्धान्तों के अनुसार चन्द्रमा को मन का कारक माना गया है | अतः चन्द्रग्रहण का मन की स्थिति पर व्यापक प्रभाव माना जाता है | तथा सूर्य ग्रहण के समय सूर्य की किरणें पूर्णतः स्वच्छ रूप में प्राणियों तक नहीं पहुँच पातीं | जिसका मनुष्यों के पाचन क्षमता, उनकी कार्य क्षमता आदि पर व्यापक प्रभाव माना जाता है | यही कारण है ग्रहण की स्थिति में कुछ भी भोजन आदि तथा अन्य कार्यों के लिए मना किया जाता है | क्योंकि न तो इस अवधि में किया गया भोजन पचाने में हमारी पाचन प्रणाली सक्षम होती है और न ही इस अवधि में उतनी अधिक कुशलता से कोई कार्य सम्भव हो पाता है | आपने देखा भी होगा कि जब पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है – जब दिन में रात्रि के जैसा अन्धकार छा जाता है – तो मनुष्यों पर ही इसका प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि सारी प्रकृति को रात का अनुभव होने लगता है और समूची प्रकृति मानो निद्रा देवी की गोद में समा जाती है – सारे पशु पक्षी तक अपने अपने घोसलों और दूसरे निवासों में छिप जाते हैं – क्योंकि उन्हें लगता है कि अब रात हो गई है और हमें सो जाना चाहिए | जब सारी प्रकृति ही ग्रहण के प्रति इतनी सम्वेदनशील है तो फिर मनुष्य तो स्वभावतः ही सम्वेदनशील होता है |
ज्योतिषीय दृष्टि से मिथुन राशि पर पड़ रहा यह सूर्य ग्रहण मिथुन राशि के लिए तो अनुकूल है ही नहीं – उन्हें अपने स्वास्थ्य के साथ साथ अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण रखने की आवश्यकता है तथा भाई बहनों के साथ व्यर्थ के विवाद से बचने की भी आवश्यकता है, क्योंकि सूर्य उनका तृतीयेश है | साथ ही कर्क राशि के लिए सूर्य द्वितीयेश होकर धन तथा वाणी का कारक है और उनकी राशि से बारहवें भाव में होने के कारण इस राशि के जातकों के लिए भी इस ग्रहण को अच्छा नहीं कहा जाएगा – उन्हें अपने स्वास्थ्य तथा दुर्घटना और व्यर्थ की धनहानि के प्रति सावधान रहने की आवश्यकता होगी | वृश्चिक राशि के जातकों के लिए सूर्य दशमेश है तथा ग्रहण उनके अष्टम भाव में आ रहा है अतः उन्हें भी विशेष रूप से अपने स्वास्थ्य तथा कार्य स्थल पर गुप्त शत्रुओं की ओर से सावधान रहने की आवश्यकता होगी | मीन राशि के जातकों के लिए सूर्य षष्ठेश है और इस समय उनके चतुर्थ भाव – परिवार तथा अन्य प्रकार की सुख सुविधाओं का भाव – में गोचर कर रहा है – उनके लिए भी इसे शुभ नहीं कहा जा सकता – पारिवारिक क्लेश न होने पाए इसका प्रयास करते रहने की आवश्यकता होगी |
किन्तु साथ ही हमारा अपना यह भी मानना है कि ग्रहण जैसी आकर्षक खगोलीय घटना से भयभीत होने की अपेक्षा इसके सौन्दर्य को निहार कर प्रकृति के इस सौन्दर्य की सराहना करने की आवश्यकता है… क्योंकि इन सब बातों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, केवल जन साधारण की अपनी मान्यताओं, निष्ठाओं तथा आस्थाओं पर निर्भर करता है…
बहरहाल, मान्यताएँ और निष्ठाएँ, आस्थाएँ जिस प्रकार की भी हों और विज्ञान के साथ उनका सम्बन्ध स्थापित हो या नहीं, हमारी तो यही कामना है कि सब लोग स्वस्थ तथा सुखी रहें, दीर्घायु हों ताकि भविष्य में भी इस प्रकार की भव्य खगोलीय घटनाओं के साक्षी बन सकें… डॉ पूर्णिमा शर्मा…