Christmas Vs Basil Worship Day
क्रिसमस बनाम तुलसी पूजन दिवस
कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा
तुलसी पूजन दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सभी को सुबह की राम राम जी… आज कुछ विशेष बात करने का मन हुआ तो सुबह सुबह लिखने बैठ गए… आजकल “क्रिसमस बनाम तुलसी पूजन दिवस” एक अत्यन्त आवश्यक विषय बना हुआ है और बहुत दिनों से इस पर चर्चाएँ देखने सुनने पढ़ने में आ रही हैं | हम क्रिसमस के स्थान पर तुलसी पूजन दिवस मनाने की बात करते हैं – जो हमारी सनातन संस्कृति के विचार से बहुत अच्छा प्रयास है – हम भी सहमत हैं इस बात से कि निश्चित रूप से हमारा देश सांता का नहीं है – स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर, गुरु तेग बहादुर, गुरु नानक देव जैसे सन्तों का है – और इन सबने जो उच्च आदर्श स्थापित किये उनका सम्मान करना ही भारतीय संस्कृति का भी सम्मान करना होगा और यही हर भारतवासी का प्रथम कर्तव्य भी होना चाहिए |
लेकिन यहाँ एक बात अवश्य जानना चाहेंगे | आप सब जानते ही होंगे कि “क्रिसमस ट्री” को जब सजाया जाता है तो उस पर बहुत सारे उपहार लटका दिए जाते हैं जो बाद में सभी को दिए जाते हैं | बच्चों के लिए तो बहुत बड़ा आकर्षण होता है यह | साथ ही एक आकर्षण और होता है कि रात को जुराब में या बच्चों के तकिए के नीचे कोई उपहार छिपा दिया जाता है और बच्चे जब सुबह नींद से जागते हैं तो उस “सरप्राइज गिफ्ट” को देखकर उछल पड़ते हैं | इसी सन्दर्भ में कुछ दिन पहले एक सुझाव फॉरवर्ड किया था कि क्या हम क्रिसमस के स्थान पर तुलसी पूजन के अवसर पर ऐसा कुछ नहीं कर सकते ? इससे हमारे बच्चों में भी तुलसी पूजन के प्रति क्रिसमस जैसा ही उत्साह उत्पन्न होगा | हम तुलसी पूजन के समय वहाँ कुछ उपहार रखें जो बाद में प्रसाद के रूप में बच्चों में वितरित किये जाएँ तो बच्चे पूर्ण उत्साह के साथ उसमें भाग लेंगे और धीरे धीरे क्रिसमस के प्रलोभन को भूल जाएँगे | जिनके बच्चे 2 वर्ष से दस वर्ष तक की आयु के हैं वे एक बार ऐसा प्रयोग आरम्भ तो करें, केवल “क्रिसमस का बहिष्कार करो और उसके स्थान पर तुलसी पूजन करो” इस प्रकार की कोरी नारेबाजी से क्या कुछ सम्भव होगा ?
तुलसी वृक्ष की महानता को कोई नहीं नकार सकता – चाहे वह आयुर्वेद की दृष्टि से हो, सामाजिक या धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टि से हो – पर्यावरण की दृष्टि से हो – प्रत्येक दृष्टि से तुलसी, अश्वत्थ, वट, आमलकी इत्यादि वृक्षों की महानता से तो समूचा विश्व ही परिचित है – जो हम भारतीयों के लिए वास्तव में गर्व की बात है | नहीं मालूम क्रिसमस ट्री में इस प्रकार के कोई गुण हैं अथवा नहीं – इस विषय में या तो उन देशों के निवासी बता सकते हैं जहाँ यह बहुतायत से उत्पन्न होता है और इसी कारण से उन देशों में क्रिसमस के अवसर पर इसे सजाया जाता है, या फिर वनस्पति विज्ञान के ज्ञाता इस पर कोई प्रकाश डाल सकते हैं | इसीलिए हमारे देश और संस्कृति के अनुकूल वास्तव में तुलसी आदि वृक्षों का पूजन ही है |
हमने देखा है कि जब तुलसी विवाह होता है तो उस समय बहुत सारे उपहार उपस्थित अतिथियों को देने का एक प्रकार से “फैशन” हो गया है | कुछ परिवारों में तुलसी विवाह में हम भी गए हैं तो वहाँ विशेष रूप से सौभाग्यवती महिलाओं को बड़े अच्छे उपहार ख़ूबसूरत पैकिंग में भेंट किये गए – तो फिर “तुलसी पूजन दिवस” को बच्चों के मध्य आकर्षण का केन्द्र बनाने के लिए ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता…? इसीलिए आप सबसे विनम्र निवेदन है कि इस उपहार वाले प्रस्ताव पर एक बार विचार अवश्य कीजियेगा…
साथ ही एक बात हमारे इस महान देश के विषय में हम सभी को याद रखने की आवश्यकता है कि भारतीय वैदिक संस्कृति ने संसार की सभी संस्कृतियों का सम्मान करना सिखाया है… सभी को एक सूत्र में पिरोने का उदात्त विचार दिया है…
जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं नानाधर्माणं पृथिवी यथौकसम् |
सहस्त्रं धारा द्रविणस्य मे दुहां ध्रुवेव धेनुरनपस्फुरन्ती ||
– अथर्ववेद 12/1/45 – जिसका आशय यही है कि…
विविध धर्म बहु भाषाओं का देश हमारा,
सबही का हो एक सरिस सुन्दर घर न्यारा ||
राष्ट्र भूमि पर सभी स्नेह से हिल मिल खेलें,
एक दिशा में बहे सभी की जीवन धारा ||
निश्चय जननी जन्मभूमि यह कामधेनु सम,
सबको देगी सम्पति, दूध, पूत धन प्यारा ||
धन्यवाद…