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Blog: Pujan Samagri for the Worship of Ma Durga

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Pujan Samagri for the Worship of Ma Durga

Pujan Samagri for the Worship of Ma Durga

माँ दुर्गा की उपासना के लिए पूजन सामग्री

साम्वत्सरिक नवरात्र चल रहे हैं और समूचा हिन्दू समाज माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना में बड़े उत्साह, श्रद्धा और आस्था के साथ लीन है | इस अवसर पर कुछ

Katyayani Dr. Purnima Sharma
Katyayani Dr. Purnima Sharma

मित्रों के आग्रह पर माँ दुर्गा की उपासना में जिन वस्तुओं का मुख्य रूप से प्रयोग होता है उनके विषय में लिखना आरम्भ किया है | अभी तक हमने कलश तथा कलश स्थापना और वन्दनवार तथा यज्ञादि में प्रयुक्त किये जाने वाले आम्रपत्र और आम्र वृक्ष की लकड़ी, जौ और दीपक के विषय में लिखने का प्रयास किया था | अब आगे…

किसी भी पूजा में पुष्पों का प्रयोग भी किया जाता है | दुर्गा सप्तशती में श्री दुर्गा मानस पूजा में मन्त्र आता है…

कह्लारोत्पलनागकेसरसरोजाख्यावलीमालती-
मल्लीकैरवकेतकादिकुसुमै रक्ताश्वामारादिभिः |
पुष्पैर्माल्यभरेण वै सुरभिणा नानारसस्रोतसा
ताम्राम्भोजनिवासिनीं भगवतीं श्रीचण्डिकां पूजये ||10||

अर्थात… हम कह्लार, उत्पल, नागकेसर, मालती, मल्लिका, कुमुद, केतकी तथा लाल कनेर आदि पुष्पों से तथा सुगन्धित पुष्पमालाओं से और नाना प्रकार के रसों की धारा से लाल कमल के भीतर निवास करने वाली श्री चण्डिका देवी की पूजा करते हैं |

इनमें कह्लार तथा उत्पल – कह्लार और उत्पल – दोनों ही अलग अलग प्रकार के कमल पुष्पों के नाम हैं तथा भारत के राष्ट्रीय पुष्प हैं | इनका बहुगुणीय औषधि के रूप में भी उपयोग होता है | कमल को पंकज अर्थात कीचड़ में उत्पन्न होने वाला पुष्प भी कहा जाता है और सम्भव है इसीलिए इसे आध्यात्मिकता, ज्ञान और पवित्रता का प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है – अर्थात जो इस असार संसार रूपी कीचड़ से अध्यात्म की ओर ले जाए |

नागकेसर – जिसे नागचम्पा भी कहते हैं तथा यह भी पीले रंग का होता है तथा कषैले स्वाद का होता है | यह एक सदाबहार छायादार वृक्ष है | इस पुष्प से भी औषधि तथा मसाले बनाए जाते हैं |

मधु मालती – इससे मधु प्राप्त होता है और इसे मोगरे अथवा का पुष्प भी कहते हैं – मल्लिका भी इसी का एक प्रकार है, कुमुद – यह कमल के पुष्प जैसा ही पुष्प होता है तथा इसके गुण धर्म भी कमल के ही समान होते हैं | इसी प्रकार केतकी अर्थात केवड़े का पुष्प – हर कोई इसके गुण धर्म से भी परिचित है | इस प्रकार ज्ञात होता है कि भगवती को सभी सुगन्धित तथा शीतलता और बल प्रदान करने वाले पुष्प प्रिय हैं | क्योंकि पुष्पों के अनेकों रंगों से तथा उनकी सुगन्धि से असीम शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है |

इसके अतिरिक्त ऐसी भी मान्यता है कि भगवती के शैलपुत्री रूप को श्वेत कनेर का पुष्प अधिक प्रिय है | ब्रह्मचारिणी को वटवृक्ष के पत्र और पुष्प, चंद्रघंटा को शंखपुष्पी – जिसे शारीरिक पराक्रम तथा मानसिक ज्ञान में वृद्धिकारक और सुख समृद्धि का कारक भी माना जाता है, कूष्माण्डा देवी को पीत पुष्प और कूष्माण्ड अर्थात जिसे हम कद्दू या सीताफल आदि नामों से भी जानते हैं, स्कन्दमाता को नीले रंग के पुष्प, कात्यायनी देबी को बेर के पुष्प, कालरात्रि को गुँजा अर्थात रत्ती की माला, महागौरी मौली यानी कलावा मात्र अर्पित करने से प्रसन्न हो जाती हैं तथा सिद्धिदात्री के रूप में भगवती को गुड़हल के पुष्प अधिक प्रिय हैं |

इसके अतिरिक्त बहुत से सुगन्धि द्रव्यों का भी पूजा में उपयोग किया जाता है… मांसीगुग्गुलचन्दनागुरुरजः कर्पूरशैलेयजै-
र्माध्वीकैः सह कुङ्कुमैः सुरचितैः सर्पिर्भिरामिश्रितैः |
सौरभ्यस्थितिमन्दिरे मणिमये पात्रे भवेत् प्रीतये
धूपोऽयं सुरकामिनीविरचितः श्रीचण्डिके त्वन्मुदे ||11||

अर्थात, हे चण्डिका देवि ! देव वधुओं के द्वारा तैयार किया हुआ यह दिव्य धूप आपकी प्रसन्नता में वृद्धि करे | यह धूप रत्नमय पात्र में – जो सुगन्धि का निवास स्थान है – रखा

Flowers
Flowers

हुआ है, तथा इसमें जटामांसी – डिप्रेशन और तनाव दूर करता है तथा इम्यून सिस्टम को ठीक रखता है, गुग्गुल – गुग्गुल भी सूजन तथा जोड़ों में दर्द के सहित अनेक रोगों में लाभकारी माना जाता है, चंदन, अगुरु – जो देखने में गोंद जैसा होता है तथा यह भी अनेक रोगों में लाभकारी माना जाता है – का चूर्ण, कपूर, शिलाजीत, मधु, कुमकुम और घी मिलाकर उत्तम रीति से इसे बनाया गया है | अर्थात धूप में जितने भी पदार्थ मिलाए जाते हैं वे सभी सुगन्धित होने के साथ ही अनेकों आयुर्वेदीय गुणों के भण्डार भी होते हैं |

ध्यान देने योग्य बात है कि ये सबही पौराणिक आख्यान हैं और इनमें से बहुत सी वस्तुएँ तो आज के युग में सरलता से उपलब्ध भी नहीं हैं, और यदि हैं भी तो महँगी होने के कारण बहुत से लोगों की पहुँच से बाहर हैं | तो यदि ये समस्त सामग्रियाँ नहीं होंगी तो भगवती भक्तों की पूजा स्वीकार नहीं करेंगी ?

इसीलिए हम बार बार यही कहते हैं कि पूजन सामग्री के फेर में न पड़कर केवल भावना की सामग्री से देवी की उपासना की जाए… माँ उसी से प्रसन्न हो जाएँगी… इसीलिये बोला जाता है “पुष्पाणि समर्पयामि ऋतुकालोद्भवानि च…” अर्थात जिस ऋतु में पूजा की जा रही है तथा जिस स्थान पर पूजा की जा रही है उस समय और उस स्थान पर जो पुष्प उत्पन्न होते हैं वे हम आपको समर्पित करते हैं…

माँ भगवती के सभी रूप अल्पात्यल्प सामग्री से की पूजा को भी ग्रहण करते हुए प्राणिमात्र की रक्षा करें तथा सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करें यही कामना है…

____________________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा