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होली तो हो ली

होली तो हो ली… इस अवसर पर हमारे कई सदस्यों की रंगभरी रसभरी रचनाएँ WOW India के “साहित्यकृतिक” पटल पर प्राप्त हुईं, उन्हीं में से कुछ रचनाएँ यहाँ प्रस्तुत हैं… डा पूर्णिमा शर्मा

फाग की थाप पे गाती होली ।

Mrs. Madhu Mohna
Mrs. Madhu Mohna

आ गई धूम मचाती होली ।

फूली सरसों पे भँवर हैं डोलें

भंग में डूब नचाती होली ।

प्रीत की रीति अलग रंगों में

पढ़ रही है पी की पाती होली ।

मोर से पंख सजा रंगों के

श्याम को ख़ूब रिझाती होली ।

होलिका भस्म हुई खुद जलकर

क्यूँकि बस झूठ जलाती होली ।

लाल पीले हरे नीले  सारे

रंग दामन में समाती होली ।

भूल कर शिकवे गिले सारे मधु

प्यार से अपना बनाती होली ।

मधु शर्मा मोहना, न्यूयार्क

 

हमहू गइबे, बिहनवा में फाग रे:

P.N. Mishra
P.N. Mishra

लाल  रंग हमका लगाय देव बबुआ, होली में चढ़त जवानी रे!

फेंकत रहन ऊ अटारी से रंगवा, अबहुँ हैं मोरी दीवानी रे!

राजा के रानी के बतिया न करेहुं, छोड़ो ठिठोली की बतियाँ

अपने ही हथवा, पिलाए दियो हमका, ठंडई में भंगवा का पानी रे!

मनवा पुकारे, पपीहन के जैसे, धधके कलेजवा मा आगुन,

अपने ही रंग में डुबाय देऊ हमका, सुनाइ कै पुरानी कहानी रे!

लाल  रंग हमका लगाय देव बबुआ, होली में चढ़त जवानी रे!

फेंकत रहन ऊ अटारी से रंगवा, अबहुँ हैं मोरी दीवानी रे!

प्राणेंद्र नाथ मिश्र, कोलकाता

 

बसन्त  की मस्ती में

Rekha Asthana
Rekha Asthana

ऋतु बासन्ती चली बयार

फागुन  के महीने में

प्रकृति में चहुंओर उमड़ा प्यार।

आम्र डालियाँ हुईं विनम्र

झुककर मंजरियों ने दिया निमंत्रण।

आओ शुक,कोयलिया आओ

प्रेम का तो एक गीत सुनाओ।

तितलियों ने जब अवसर देखा

आकर डाल से मंजरियों का रस चूसा।

भ्रमर बिचारा प्रिय  प्रेम में पागल

बैठ पुष्पों पर उठना न जाने।

संध्या होते ही जब कलियाँ बंद होती

फिर पागल भौंरा जाए कहाँ से।

होता है अक्सर ऐसा ही जब

प्यार किसी से कोई करता है

छोड़कर न जाने का कभी उसका

जी भी क्या करता है?

शक नहीं  कि उसमें चाहे घुटकर

वह मर जाता है।

है फागुन  मास का यही तो आकर्षण 

सबको मोहित कर लेती है।

वसुधा भी तो देखो निज प्रिय को

रिझाने पीली चूनर ओढ़ती है।

 अपार खुशी से देखते कृषक अपनी अपनी धरती को,

दूर तक स्वर्णिम छटा दिखती

उनको अपनी धरा पर

चहुंओर के खुशी के वातावरण में

कृषक भी छोड़कर  लोकलाज को

पत्नी को गले लगाता है।

जब दिशी-दिशी से मंद सुगन्धित  बयार बहे,

तब कौन ऐसा पागल  होगा जो

अपनी प्रिया को न प्यार करे।

है ही यह फागुन  की ऋतु ऐसी

जन -जन में प्रेम का संचार है भरती

अपने तो अपने गैरों को भी है अपना बनाती।

यह है केवल अपने देश की ही महिमा हर ऋतु की होती अपनी गरिमा।

आओ इस बसन्त ऋतु में बांटे सब में प्यार और अपने देश के नववर्ष

का स्वागत करने को हो जाएँ तैयार।

रेखा अस्थाना

 

होली का हुड़दंग

Ruby Shome
Ruby Shome

होली के हुड़दंग में सब संगी साथी संग

मस्ती में सब नाच रहे हैं चढ़ा है ऐसा रंग

जोगीरा सा रा रा रा

फाग में अबीर-गुलाल से होते दो दो हांथ

एक दूजे के रंग में सब रंग जाते गाल कभी तो मांथ

जोगीरा सा रा रा रा

कोई नाचे आंगन में कोई गली चौबारे

भंग का रंग चढ़ा है ऐसा हो गए वारे न्यारे

जोगीरा सा रा रा रा

गुझिया और मिठाई से सज गए हैं बाजार

गली-गली में बिक रहे पिचकारी और रंगों की कतार

जोगीरा सा रा रा रा

कोई बैठा घोल रहा है रंगों में कई रंग

कोई ठंडाई पीकर मचा रहा हुड़दंग

जोगीरा सा रा रा रा।

रूबी शोम

 

भुला दो गिले शिकवे ये सारे

Mrs. Madhu Rustagi
Mrs. Madhu Rustagi

होली के खिलखिलाते रंगों की बौछारों में

क्यों ना भिगो दे,तन मन हम सारे।

फूल भी खेलें होली देखो,रंगों के संग मिल के

ढूंढे बहाने हज़ार, गोरी की झीनी चुनरिया भिगोने के।

क्यूं शर्माए आज़ हम सब,रंग तो एक बहाना है,

प्रेम और रंगों की पिचकारी से मन के तार भिगोना है।

सुबह की हल्की मीठी सी ठंड और नाचती सूरज की किरणें

टेसू के फूलों की थाली लेकर,फागुन आया अंगनावा बसने।

कलियां भी घूंघट खोल खोल रूप बिखरे ऐसा अपना

इंद्रधनुषी छटा फैली चहुं ओर,सच है ये,नही  सपना।

होंठ कटीले,मुस्काती बिंदियां,नयन तेरे कजरारें

मादक मुस्कान गोरी की, होश उड़ाए हमारे।

होली संग आई देखो मदमस्त रंगीली बहारें।

मधु रुस्तगी

 

कब होली

Dr. Himanshu Shekhar
Dr. Himanshu Shekhar

भाँग, अबीर, गुलाल, मलाल, सभी उड़ते जब फागुन होली,

द्वेष जले, मिटते हर दाग, बने बदरंग, मने जब होली।

विष्णु कृपा बरसे जब पावक, शीतल होकर पावन होली।

देख हुआ हुड़दंग जवान, बने सब आज मनाकर होली।

रंग लिए तन भींग रहे, बदले सब बाहर से, जब होली,

काश! सभी दिल को बदले, असली जग की तब नूतन होली।

रोज मना सकते कुछ ये दिल, पूछ रहा गुजरी जब होली,

लोग मना खुश आज हुए पर, बाद बता फिर से कब होली?

मित्र गले मिलते तब पर्व मनाकर, गीत सुना अब होली,

ये मुहताज नहीं दिन की, हर रोज मना सकते सब होली।

हिमांशु शेखर, पुणे

 

बन्धन आज सभी हैं टूटे, फागुन लाल कपोल हुआ है |

Katyayani Dr. Purnima Sharma
Katyayani Dr. Purnima Sharma

मन के टेसू के संग देखो हर तन लाल गुलाल हुआ है ||

निकल पड़ी मस्तों की टोली, आज खेलने रंग की होली |

जैसे झूम झूम कर खेतों में गेहूँ की बाली डोली ||

गोरी निरख रही दर्पण में, रंग रंगा निज रूप सलोना |

यही रूप तो कर बैठा है, रसिया पर कुछ जादू टोना ||

कुहुक कुहुक कर कोयलिया भी, आज मधुर एक गीत सुनाती |

और बौराए आमों पर, तोतों की टोली टेर लगाती ||

एक भ्रमर ने नई कली के अधरों से मधुपान कर लिया |

विटप आम्र ने लता माधवी का आलिंगन आज कर लिया ||

सतरंगी है हर घर आँगन, उपवन उपवन मस्ती छाई |

फूल फूल पर मस्त तितलियाँ, आज उड़ रही हैं बौराई ||

हर वन में मदिराया महुआ, खेत खेत में सरसों फूली |

लाल पलाश संग ये देखो, जंगल में भी आग है फैली ||

रश्मिरथी ने निज प्रताप से, शीत लहर कुछ शान्त करी है |

इसीलिए रसरंग में डूबी गोरी भी अब चिहुँक रही है ||

चाल चाल में मादकता और तन मन में मीठी अंगड़ाई |

रसिया ने बंसी की धुन में प्रेमपगी एक तान सुनाई ||

रसभीने अंगों पर देखो ,रंग फाग का खूब चढ़ा है |

हर पल ही है रंग रंगीला, और हर कण उल्लास भरा है ||

नाच रही हर किरन किरन, मदमस्त हवा कानों में बोले |

रसिया की बंसी की धुन पर, गोरी मस्त बनी अब डोले ||

कात्यायनी

 

प्रेम से प्रेम में सब सने,प्रेम का भाव सबल |

Pramila Sharad Vyas
Pramila Sharad Vyas

पल पल में बढ़ता रहें, प्रेम प्रवाह प्रबल ||

सब रसायन से बड़ा,प्रेम भाव एक  रुप |

रोम रोम में रम गया ,तन मन कंचन धूप ||

पीना चाहो प्रेम रस ,धर लो सज्जन वेश |

प्रेम पयाला पीजिएे,दूर हो सब क्लेश ||

सागर उमड़ा प्रेम का ,जीवन रसमय संग |

बिन बोले कहता फिरे, रोम रोम सब रंग ||

प्रेम छिपाये ना छिपे,करो अनेक उपाय |

कजरारे से नयन हुए,सागर उमड़ा जाय ||

प्रेम जगत आधार हैं ,कर लो तनिक विचार |

अमर बेल का बीज हैं,फले फुले परिवार ||

प्रेम वलय में वलय हैं, सुझे ना प्रतिबिम्ब |

आँखें मुंदे भाँप लो, प्रतिमान नव बिम्ब ||

प्रमिला शरद व्यास, राजस्थान

 

मेरे मन के ऑंगन में प्रिय, छम-छम नाच रही होली।

Neelu Mehra
Neelu Mehra

बाल-वृद्ध हर एक मस्त है, झूमे बच्चों की टोली।।

कुछ-कुछ शीत मुक्त है धरणी, फागुन दस्तक दे रहा।

राग द्वेष, नफरत की ऑंधी, खुद अपने सर ले रहा।।

मिलजुल सब होली खेलो, भीगे दामन औ’ चोली।

बाल-वृद्ध हर एक मस्त है, झूमे बच्चों की टोली।।

आम्र मञ्जरी से भर जाती, अम्बुआ की हर डाल है।

टेसू के रक्तिम पुष्पों की, शोभा भारी कमाल है।।

कोयल पिक सब कूक रहें हैं, प्यारी,मीठी है बोली।

बाल-वृद्ध हर एक मस्त है, झूमे बच्चों की टोली।।

ढोल- नगाड़े बाज रहे हैं, पीते भांग निगोड़ी है।

सुध-बुध खोया है हर बंदा, हुड़दंग करे जोड़ी है।

भेद-भाव सब भूल-भाल कर,वो करते खूब ठिठोली।

बाल-वृद्ध हर एक मस्त है, झूमे बच्चों की टोली।।

कान्हा की शोभा है न्यारी, रंगा हुआ हर अंग है।

लाल, गुलाबी,नीला,पीला,चटक श्यामल तो रंग है।।

लगा गुलाल प्रिया राधे को, कान्हा करे बरजोरी है।

बाल-वृद्ध हर एक मस्त है, झूमे बच्चों की टोली।

भर पिचकारी राधा लाई, कान्हा छुपे हर बार हैं।

मन मसोस राधा रह जाती, अद्भुत सुकोमल नार है।।

राधे के मस्तक पर साजे, चंदन टीका औ’ रोली।

बाल-वृद्ध हर एक मस्त है झूमे बच्चों की टोली।।

नीलू मेहरा, कोलकाता