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Blog: Earth Day

Earth Day

Earth Day

पृथिवी दिवस

आज समूचा विश्व पृथिवी दिवस यानी Earth Day मना रहा है | आज प्रातः से ही पृथिवी दिवस के सम्बन्ध में सन्देश आने आरम्भ हो गए थे | कुछ संस्थाओं ने तो वर्चुअल

Katyayani Dr. Purnima Sharma
Katyayani Dr. Purnima Sharma

मीटिंग्स यानी वेबिनार्स भी आज आयोजित की हैं पृथिवी दिवस के उपलक्ष्य में – क्योंकि कोरोना के कारण कहीं एक स्थान पर एकत्र तो हुआ नहीं जा सकता | ये समस्त कार्यक्रम पृथिवी के पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण से मुक्ति प्राप्त करने तथा समाज में जागरूकता उत्पन्न करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है | किन्तु, यहाँ विचारणीय बात ये है कि भारतीय समाज में – विशेष रूप से वैदिक समाज में – तो सदा से हर दिन पृथिवी दिवस होता था, तो आज इस प्रकार के आयोजनों की आवश्यकता किसलिए प्रतीत होती है | अथर्व वेद में तो एक समग्र सूक्त ही पृथिवी के सम्मान में समर्पित है | वैदिक विधि विधान पूर्वक कोई भी पूजा अर्चना करें – पृथिवी की पूजा आवश्यक रूप से की जाती है – ससम्मान पृथिवी का आह्वाहन और स्थापन किया जाता है –

ॐ पृथिवी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता |

त्वां च धारय मां भद्रे पवित्रं कुरु चासनम्

पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

अर्थात, हे पृथिवी तुमने समस्त लोकों को धारण किया हुआ है और तुम्हें भगवान विष्णु ने धारण किया हुआ है | तुम मुझे धारण करो, और इस आसन को पवित्र करो | आधार शक्ति पृथिवी को नमस्कार है |

अथर्ववेद के भूमि सूक्त में कहा गया है “देवता जिस भूमि की रक्षा उपासना करते हैं वह भूमि हमें मधु सम्पन्न करे | इस पृथ्वी का हृदय परम आकाश के अमृत से सम्बन्धित  रहता है | यह पृथ्वी हमारी माता है और हम इसकी सन्तानें हैं “माता भूमि पुत्रो अहं पृथिव्या: |

पृथिवी पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण अंग है ये हम सभी जानते हैं | जिस पर प्राणी निवास करते हैं तथा जीवन प्राप्त करते हैं वह भूमि निश्चित रूप से वन्दनीय तथा उपयोगी है | यही कारण है वैदिक वांग्मय में पृथिवी के सम्मान में अनेक मन्त्र उपलब्ध होते हैं | वैदिक ऋषि क्षमायाचना के साथ पृथिवी पर चरण रखते थे…

समुद्रवसने देवि, पर्वतस्तनमण्डिते | विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं, पादस्पर्शं क्षमस्व मे ||

अर्थात हे समुद्र में निवास करने वाली देवी, पर्वतरूपी स्तनों को धारण करने वाली, विष्णुपत्नी हम आपका अपने चरणों से स्पर्श कर रहे हैं – हमें इसके लिए क्षमा कीजिए |

इसके अतिरिक्त अनेकों मन्त्र पृथिवी की उपासना स्वरूप उपलब्ध होते हैं, यथा…

भूमे मातर्निधेहि मा भद्रया सुप्रतिष्ठितम् |

संविदाना दिवा कवे श्रियां मा धेहि भूत्याम् ||

हे धरती माता मुझे कल्याणमय  बुद्धि के साथ स्थिर बनाए रखें | हे गतिशीले (जो प्राणिमात्र को गति प्रदान करती है), प्रकाश के साथ संयुत होकर मुझे श्री और विभूति में धारण करो |

सत्यं बृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति |
सा नो भूतस्य भव्यस्य पत्न्युरुं लोकं पृथिवी नः कृणोतु ||

पृथ्वी के लिए नमस्कार है जो सत्य, ऋत अर्थात अपरिवर्तनीय तथा सर्वशक्तिमान परब्रहम में विद्यमान आध्यात्मिक शक्ति, ऋषियो मुनियों की समर्पण भाव से किये गये यज्ञ और तप की शक्ति से अनन्तकाल से संरक्षित है | यह पृथिवी हमारे भूत और भविष्य की साक्षी है और सहचरी है | यह हमारी आत्मा को इस लोक से उस दिव्य लोक की ओर ले जाए |

असंबाधं बध्यतो मानवानां यस्या उद्वतः प्रवतः समं बहु |
नानावीर्या ओषधीर्या बिभर्ति पृथिवी नः प्रथतां राध्यतां नः ||                     

यह अपने पर्वतों, ढालानों तथा मैदानों के माध्यम से समस्त जीवों के लिए निर्बाध स्वतन्त्रता प्रदान करती हुई अनेकों औषधियों को धारण करती है | यह हमें समृद्ध और स्वस्थ बनाए रखे |

यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो यस्यामन्नं कृष्टयः संबभूवुः |
यस्यामिदं जिन्वति प्राणदेजत्सा नो भूमिः पूर्वपेये दधातु || 

समुद्र तथा नदियों के जल से सिंचित क्षेत्रों के माध्यम से अन्न प्रदान करने वाली पृथिवी हमें जीवन का अमृत प्रदान करे |

यस्यां पूर्वे पूर्वजना विचक्रिरे यस्यां देवा असुरानभ्यवर्तयन् |
      गवामश्वानां वयसश्च विष्ठा भगं वर्चः पृथिवी नो दधातु ||

आदिकाल से हमारे पूर्वज इस पर विचरण करते रहे हैं | इस पर सत्व ने तमस को पराजित किया है | इस पर समस्त जीव जंतु और पशु आदि पोषण प्राप्त करते हैं | यह पृथिवी हमें समृद्धि तथा वैभव प्रदान करे |

गिरयस्ते पर्वता हिमवन्तोऽरण्यं ते पृथिवि स्योनमस्तु |
बभ्रुं कृष्णां रोहिणीं विश्वरूपां ध्रुवां भूमिं पृथिवीमिन्द्रगुप्ताम् |
अजीतेऽहतो अक्षतोऽध्यष्ठां पृथिवीमहम् ||  

हे माता, आपके पर्वत, हिमाच्छादित हिमश्रृंखलाएँ तथा घने वन घने जंगल हमें शीतलता तथा सुख प्रदान करें | अपने अनेक वर्णों के साथ आप विश्वरूपा हैं | आप ध्रुव की भाँति अचल हैं तथा इन्द्र द्वारा संरक्षित हैं | आप अविजित हैं अचल हैं और हम आपके ऊपर दृढ़ता से स्थिर रह सकते हैं |

अथर्ववेद के भूमि सूक्त से इन कुछ मन्त्रों को उद्धत करने से हमारा अभिप्राय मात्र यही था कि जिस पृथिवी को माता के सामान – देवी के समान पूजा जाता था – क्या कारण है कि आज उसी की सुरक्षा के लिए इस प्रकार के “पृथिवी दिवस” का आयोजन करने की आवश्यकता उत्पन्न हो गई |

इसका कारण हम स्वयं हैं | पूरे विश्व में आज यानी 22 अप्रैल को विश्व पृथिवी दिवस मनाया जाता है | इसका आरम्भ 1970 में हुआ था तथा इसका उद्देश्य था जन साधारण को पर्यावरण के प्रति सम्वेदनशील बनाना | पृथिवी पर जो भी प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं उन सबके लिए मनुष्य स्वयं ज़िम्मेदार है – फिर चाहे वह ओजोन परत में छेद होना हो, भयंकर तूफ़ान या सुनामी हो, या आजकल जैसे कोरोना ने आतंक मचाया हुआ ऐसा ही किसी महामारी का आतंक – सब कुछ के लिए मानव स्वयं ज़िम्मेदार है | यदि ये आपदाएँ इसी प्रकार आती रहीं तो पृथिवी से समस्त जीव जन्तुओं का – समस्त वनस्पतियों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा | इसी सबको ध्यान में रखते हुए पृथिवी दिवस मनाना आरम्भ किया गया |

आज पृथिवी के पर्यावरण में प्रदूषण के कारण पृथिवी का वास्तविक स्वरूप नष्ट होता जा रहा है | और इस प्रदूषण के प्रमुख कारणों से हम सभी परिचित हैं – जैसे जनसंख्या में वृद्धि, बढ़ता औद्योगीकरण, शहरीकरण में वृद्धि तथा यत्र तत्र फैलता जाता कचरा इत्यादि इत्यादि | पोलीथिन का उपयोग, ग्लोबल वार्मिंग आदि के कारण अनियमित होती ऋतुएँ और मौसम | आज हमें समाज की चिन्ता न होकर स्वयं की सुविधाओं की चिन्ता कहीं बहुत अधिक है | जैसे जैसे मनुष्य प्रगति पथ पर अग्रसर होता जा रहा है वैसे वैसे पर्यावरण की ओर से उदासीन होता जा रहा है | अर्थात हम स्वयं ही पृथिवी के इस पर्यावरण के लिए ज़िम्मेदार हैं |

इस प्रकार हम तो यही कहेंगे कि पृथिवी दिवस केवल एक आयोजन की औपचारिकता मात्र तक सीमित न रहने देकर यदि हर दृष्टिकोण से परस्पर एकजुट होकर चिन्तन मनन किया जाए तथा प्रयास किया जाए तभी हम पृथिवी को पुनः उसी रूप में देखने में समर्थ हो सकेंगे | और यह कार्य केवल पृथिवी दिवस के दिन ही न करके अपनी दैनिक दिनचर्या का महत्त्वपूर्ण अंग बना लें तभी हम अपनी धरती माँ का ऋण चुका सकेंगे |

___________________कात्यायनी