Pujan Samagri for the Worship of Ma Durga
माँ दुर्गा की उपासना के लिए पूजन सामग्री
साम्वत्सरिक नवरात्र चल रहे हैं और समूचा हिन्दू समाज माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना में बड़े उत्साह, श्रद्धा और आस्था के साथ लीन है | इस अवसर पर कुछ मित्रों के आग्रह पर माँ दुर्गा की उपासना में जिन वस्तुओं का मुख्य रूप से प्रयोग होता है उनके विषय में लिखना आरम्भ किया है | कल अपनी अल्पबुद्धि से कलश तथा कलश स्थापना और वन्दनवार तथा यज्ञादि में प्रयुक्त किये जाने वाले आम्रपत्र और आम्र वृक्ष की लकड़ी और जौ के विषय में लिखने का प्रयास किया था | आज आगे…
आज हम बात करते हैं दीपक की | किसी भी पूजा में दीपक का बहुत महत्त्व होता है | पूजा में कहा जाता है ““भो दीप त्वम् ब्रह्मस्वरूप: अन्धकारनिवारक:, इमां मया कृतां पूजां गृहाण तेजो प्रर्द्धय”…” इत्यादि इत्यादि | अन्धकार – सबसे बड़ा अन्धकार तो अज्ञान का ही होता है, गले सड़े ऐसे रीति रिवाज़ों का होता है जो मानव समाज को बेड़ियों में जकड़े रहते हैं और इसी कारण से मानव मात्र की प्रगति में बाधक होते हैं, दुर्भावों का होता है | तो समस्त प्रकार के अन्धकार को दूर भगाने की प्रार्थना दीप प्रज्वलन के समय की जाती है |
माँ भगवती की उपासना में तथा अन्य भी पूजा अर्चना में प्रायः घी का अखण्ड दीप प्रज्वलित करने की प्रथा है | गौ घृत हो तो अत्युत्तम, अन्यथा कोई भी घी चल सकता है | दीप प्रज्वलित करने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, नकारात्मक ऊर्जाएँ समाप्त होती हैं तथा आस-पास का वातावरण शुद्ध हो जाता है | दीप प्रज्वलन के समय मन्त्र बोले जाते हैं:
शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसम्पदा |
शात्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोSस्तु ते ||
दीपो ज्योति परम ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दान: |
दीपो हरतु में पापं सन्ध्यादीप नमोSस्तु ते ||
अर्थात, सुख और कल्याण करने वाले, आरोग्य प्रदान करने वाले, धन सम्पत्ति प्रदान करने वाले तथा शत्रुओं की बुद्धि का विनाश करने वाले दीप को हम नमस्कार करते हैं | स्पष्ट है कि व्यक्ति के मन से – विचारों से – अज्ञान तथा नकारात्मकता का अन्धकार जब छंट जाएगा तभी वह कुछ सकारात्मक और क्रियात्मक दिशा में प्रयास कर सकेगा | और इस सकारात्मकता के कारण उसका मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा – तथा मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो शारीरिक स्वास्थ्य तो स्वयं ही ठीक रहेगा | दीपक की ऊँची उठती लौ किसी भी प्रकार अज्ञान को – चाहे वह अज्ञान का हो, अशिक्षा का हो, नकारात्मकता का हो – कैसा भी अज्ञान हो – मिटाकर जीवन में निरन्तर कर्मशील रहने तथा उन्नति के पथ पर अग्रसर रहने की प्रेरणा देती है |
अखण्ड दीप को पूजा स्थल के आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण पूर्व दिशा में रखना शुभ माना जाता है | दीप एक साधक के लिए साधना में सहायक नेत्र और हृदय ज्योति का भी प्रतीक है |
दीप प्रायः गौ के देसी घी से प्रज्वलित किया जाता है | यदि उपलब्ध न हो तो तिल अथवा सरसों के तेल से भी दीप प्रज्वलित कर सकते हैं – किन्तु रिफायंड का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए – न पूजा में और न ही भोजन बनाने में | गाय से प्राप्त हर वस्तु में पोषक तथा स्वास्थ्यवर्धक तत्व उपस्थित रहते हैं – चाहे वह दूध हो, गौ मूत्र हो, गाय का गोबर हो अथवा गाय के दूध से निर्मित पदार्थ हों जैसे घी, दही, मक्खन इत्यादि | इसीलिए पञ्चामृत में भी गाय के ही दूध, घी तथा दही का प्रयोग किया जाता है | साथ ही गाय के घी में बहुत से ऐसे तत्व भी पाए गए हैं जो रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं | संस्कृत में घी को घृत कहा जाता है – जिसका अर्थ होता है सिंचित करने वाला, आलोकित करने वाला, उज्ज्वल करने वाला | इसी प्रकार तिल के तेल में भी तिल के औषधीय गुण निहित होते हैं, जैसे : यह मधुर होता है, वातशामक होता है, प्रकृति इसकी गर्म होती है तथा यह भी स्निग्धता प्रदान करता है | सरसों के तेल में भी इसी प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं | इसीलिए दीप प्रज्वलन तथा यज्ञादि के लिए गौ घृत सबसे अधिक उपयुक्त माना जाता है | और यदि न उपलब्ध हो सके तो तिल अथवा सरसों के तेल का प्रयोग करने की सलाह विद्वान् लोग देते हैं |
आज चैत्र शुक्ल तृतीया को भगवती के चंद्रघंटा रूप की उपासना का विधान है | भगवती का ये रूप सबका मंगल करे तथा सभी के जीवन तथा हृदयों से समस्त प्रकार के अन्धकार का उन्मूलन करे और सबको स्वास्थ्य प्रदान करे… यही कामना है…
________________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा