How to perform puja of Ma Durga
माँ दुर्गा के पूजन की विधि
आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ ही नवसंवत्सर का आरम्भ हुआ है और माँ भगवती की उपासना का पर्व नवरात्र आरम्भ हो चुके हैं | सभी को हिन्दू नव वर्ष तथा
साम्वत्सरिक नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ…
कुछ मित्रों का आग्रह है कि नवरात्रों में माँ भगवती की उपासना की विधि तथा उसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री के विषय में कुछ लिखें और सामग्री के महत्त्व के विषय में भी जानकारी दें | तो सबसे पहले तो, इस लेख की लेखिका यानी कि हम इस विषय के कोई बहुत बड़े ज्ञाता तो नहीं हैं, फिर भी जैसा माता पिता तथा गुरुजनों और पुस्तकों तथा अनुभवों से जाना वही सब आपके साथ साँझा कर रहे हैं |
सर्वप्रथम तो हमारा सबसे यही आग्रह है कि साधारण रीति से की गई ईशोपासना भी उतनी ही सार्थक होती है जितनी कि बहुत अधिक सामग्री आदि के द्वारा की गई पूजा अर्चना | साथ ही जिसकी जैसी सुविधा हो, जितना समय उपलब्ध हो, जितनी सामर्थ्य हो उसी के अनुसार हर किसी को माँ भगवती अथवा किसी भी देवी देवता की पूजा अर्चना उपासना करनी चाहिए… वास्तविक बात तो भावना की है… भावना के साथ यदि अपने पलंग पर बैठकर भी ईश्वर की उपासना कर ली गई तो वही सार्थक हो जाएगी… भगवान श्री राम ने प्रेम और श्रद्धा की भावना के ही वशीभूत होकर शबरी के झूठे बेर खाए थे और उसे “भामिनी” कहा था – जिसका अर्थ होता है ऐसी महिला जो भासती हो – अर्थात गरिमामयी नारी… भगवान श्री कृष्ण ने विदुर के घर भोजन किया था और सखा सुदामा के लाए तन्दुल पेट भर ग्रहण किये थे… रही बात पूजन की सामग्री की, तो जितनी भी सामग्री पूजन में काम में लाई जाती है वो तो सब भौतिक वस्तुएँ हैं, भगवान कभी ये नहीं कहते कि उन्हें कितनी सामग्री से अपनी पूजा करानी है… वे तो बस भावों के भूखे हैं… प्रेम के भूखे हैं… फिर भी, क्योंकि हमसे कुछ लोगों ने जानना चाहा है, तो सामान्य रूप से पूजा की विधि और सामग्री के विषय में लिख रहे हैं…
घट स्थापना के साथ माँ भगवती के नौ रूपों के आह्वाहन स्थापन के साथ अनुष्ठान का आरम्भ किया जाता है | इसके लिए एक मिट्टी का कलश घट के रूप में स्थापित करने के लिए चाहिए होता है | यदि आप जौ बोते हैं तो उसके लिए भी एक मिट्टी का पात्र मिट्टी और जौ के साथ | जल, मौली जिसे हम कलावा भी कहते हैं, इत्र, सुपारी, पान के पत्ते, आम की टहनी, कच्चे लेकिन साबुत चावल यानी अक्षत, नारियल, पुष्प और पुष्पमाला, माँ भगवती का चित्र अथवा मूर्ति, गणपति का चित्र अथवा मूर्ति, गाय का दूध, दही और घी, नैवेद्य अर्थात मिठाई, फल, सिन्दूर, रोली, धूप दीप इत्यादि, पञ्चामृत, वस्त्र, यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ, हल्दी, – इन वस्तुओं की आवश्यकता होती है | इसके अतिरिक्त विसर्जन के दिन यदि हवन करना है तो उसके लिए हविष्य अर्थात सामग्री जिसमें धूप, जौ, नारियल, गुग्गुल, मखाना, काजू, किसमिस, छुहारा, शहद, घी तथा अक्षत आदि तथा समिधा अर्थात लकड़ी की आवश्यकता होती है | किन्तु सामान्य तौर पर केवल घट स्थापना करके पाठ ही किया जाता है |
दुर्गा पूजा के लिए सर्वप्रथम एक लकड़ी की चौकी पर वेदी बनाई जाती है | इसके लिए चौकी पर श्वेत वस्त्र बिछा दिया जाता है और उस पर गौरी और गणपति की प्रतिमा अथवा चित्र के समक्ष ॐकार, श्री, नवग्रह, षोडश मातृका, नव कन्या तथा सप्तघृतमातृका बनाई जाती हैं | ध्यान रहे पूजा करते समय आपका मुँह उत्तर, पूर्व अथवा उत्तर-पूर्व में हो तो अधिक अच्छा है | वेदी के दाहिनी ओर ईशान कोण में घट स्थापना के लिए अष्टदल कमल बनाकर उस पर घट स्थापित किया जाता है और बाँई ओर दीपक रखा जाता है | साथ ही, यदि जौ बोए जा रहे हैं तो उनका पात्र भी कलश के पास ही होना चाहिए |
अब मन्त्रोच्चारपूर्वक वेदी की पूजा करके अखण्ड दीप प्रज्वलित किया जाता है और फिर कलश को विधिवत स्थापित किया जाता है | इसके बाद ॐकार, श्री, गौरी गणपति आदि की पूजा के बाद नवग्रहों का आह्वाहन स्थापन, षोडश मातृकाओं का, नव कन्याओं का, सप्तघृतमातृकाओं का आह्वाहन स्थापन करके पाठ आरम्भ किया जाता है |
कुछ लोग केवल कवच, अर्गला और कीलक का पाठ करके भी आरम्भ कर देते हैं, कुछ पहले सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ, श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं आदि का पाठ करके वैदिक विधि से अंगन्यास, मौली बन्धन, पुण्याहवाचन, मंगल पाठ, आसन शुद्धि, भूत शुद्धि, प्राण प्रतिष्ठा, कर न्यास, हृदयादि न्यास, शापोद्धार आदि अनेक अंग होते हैं जिनके साथ संकल्प लेकर रात्रि सूक्त और देव्यथर्वशीर्ष आदि का पाठ करके पाठ आरम्भ करते हैं | अन्त में यही समस्त प्रक्रियाएँ पुनः दोहराई जाती हैं और फिर ऋग्वेदोक्त देवी सूक्त, तीनों रहस्य तथा मानस पूजा आदि के द्वारा पाठ सम्पन्न किया जाता है | और भी जो लोग कोई बहुत बड़ा अनुष्ठान करते हैं अथवा किसी कामना की सिद्धि के लिए पाठ करते हैं तो बहुत सारे और भी अंग होते हैं पाठ के समय | लेकिन सामान्य रूप से कवच अर्गला कीलक का पाठ करके पाठ आरम्भ कर दिया जाता है |
हमारा मानना है कि यदि किसी कारणवश पूजन सामग्री न भी उपलब्ध हो तो केवल एक दीप प्रज्वलित करके शुद्ध हृदय से बैठ जाइए श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ
कर दीजिये | उसका भी वही फल प्राप्त होगा तो इतने सारे कर्मकाण्ड की विधि से षोडशोपचार विधि से पूजा अर्चना के बाद प्राप्त होता है |
कहने का तात्पर्य है कि ऐसा कोई विशेष बन्धन इस सबमें नहीं है | आप हर दिन सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ भी कर सकते हैं, या उसमें कहे गए तीनों चरित्रों – मधु कैटभ वध, महिषासुर वध और शुम्भ निशुम्भ वध – को एक एक दिन में कर सकते हैं, अथवा केवल प्रथम, चतुर्थ, पञ्चम तथा एकादश अध्याय की स्तुतियों का पाठ कर सकते हैं, अथवा – समय का अभाव है और पूरी सप्तशती करना चाहते हैं तो हर दिन उतना ही पाठ कीजिए जितना समय उपलब्ध है और इस प्रकार से पूरे नौ दिनों में सप्तशती सम्पन्न कर लीजिये | और यदि संस्कृत नहीं पढ़ सकते हैं तो उनके हिन्दी अनुवाद को ही पढ़ सकते हैं | और सप्तशती यदि नहीं भी पढ़ सकते हैं तो माँ भगवती तो अपने नाम स्मरण मात्र से प्रसन्न हो जाती हैं – यदि सच्ची भावना से उनका स्मरण किया जाए… माँ हैं न, इसलिए… माँ को सन्तान से यदि कुछ चाहिए तो वो है सम्मान और प्रेम की भावना…
अस्तु, बिना ये सोचे विचारे कि हमारे पास पूजन की क्या सामग्री है क्या नहीं – बस हृदय से माँ भगवती का स्मरण कीजिए, इस भावना के साथ संसार में सभी स्वस्थ रहें… कोरोना तथा इसी प्रकार की अन्य भी महामारियों का आतंक समाप्त हो… प्राणियों में सद्भावना हो… और सब परस्पर हिल मिल कर जीवन व्यतीत करें… वासन्तिक नवरात्रों की एक बार पुनः सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ…
______________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा