अकेलापन और एकान्त – An article by Dr. Purnima Sharma
हम सभी जानते हैं कि सारा विश्व 2019 के अन्तिम माह से कोरोना से जूझ रहा है – एक ऐसी महामारी जिसने समूचे विश्व को इस तरह जकड़ लिया कि हर कोई अपने घर में
ही बन्द होकर बैठने को विवश हो गया | इस सबसे ये लाभ तो हुआ कि परिवार के साथ मिल बैठने के लिए अवकाश प्राप्त हुआ – क्योंकि काम की भाग दौड़ के चलते इसके लिए समय नहीं निकाल पाते थे, अपने घरों के काम जिनके लिए जहाँ हम सभी घर में काम करने के लिए आने वाले सहायकों पर निर्भर हो गए थे वहीं लॉकडाउन के कारण अपने घरों के काम परिवार के सदस्यों ने मिल जुलकर करने आरम्भ कर दिए, आए दिन जो बाहर जाकर डिनर और लंच करने का या बाहर से घर पर भोजन मँगाकर खाने का स्वभाव हम सभी का हो गया था – अब घर में पके भोजन का महत्त्व सभी को समझ आने लगा, सड़कों पर वाहनों की कमी के कारण प्रदूषण का अभाव हुआ और सारी प्रकृति फिर से एक बार युवा हो उठी, हमें सभी को अपनी अपनी उन रुचियों में कुशलता प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ जो हम सामान्य तौर पर कार्य की अधिकता के कारण नहीं कर पाते थे | और एक बात जो बहुत अच्छी हुई वो यह कि हमें स्वयं को समझने के लिए – आत्मानुशीलन और आत्म विश्लेषण के लिए समय प्राप्त हो गया – विशेष रूप से अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर व्यक्तियों के लिए यह एक बहुत सकारात्मक अनुभूति रही | ऐसा नहीं था कि हम एकान्त में थे, परिवार के बीच थे – लेकिन समय इतना अधिक था कि परिवार के बीच बैठकर भी कुछ समय अपने लिए निकालना सरल हो रहा था |
हम प्रायः अकेलेपन और एकान्त को समझने में भूल कर बैठते हैं और सोचने लगते हैं कि जो व्यक्ति अकेला रहता है वही वास्तव में एकान्तवासी होता है और वही एकाग्रचित्त होकर अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करके लक्ष्य प्राप्त कर सकता है | अथवा एकान्त में बैठकर साधना करके मोक्ष को प्राप्त हो सकता है | जबकि वास्तविकता यह है कि अकेलापन और एकान्त दोनों एक दूसरे से पृथक हैं |
अकेलापन ख़ालीपन का अहसास लिए हुए एक ऐसी भावना है जिसके चलते व्यक्ति का स्वयं पर से विश्वास उठ सकता है, उसके भीतर प्रवाहित होती रहने वाली आनन्द और प्रेम की निर्मल सरिता शुष्क हो सकती है, रुचियाँ समाप्त हो सकती हैं और यहाँ तक कि व्यक्ति घोर निराशा और अवसाद में डूब सकता है | ऐसा इसलिए कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है |
हालाँकि यह भी सच है कि अपने दैनिक क्रियाकलापों से थक कर कुछ समय के लिए यदि अकेला रहकर एकान्त के क्षणों का अनुभव किया जाए तो व्यक्ति में नवजीवन का संचार होकर फिर से कार्य के लिए उत्साह उत्पन्न हो जाता है – क्योंकि तब वह पूर्ण रूप से अपने साथ होता है | लेकिन आत्मोन्नति के लिए किसी एकान्त की आवश्यकता नहीं होती | सबके बीच बैठकर भी व्यक्ति अन्तर्मुखी हो सकता है और आत्मोन्नति के लिय एकान्त के क्षणों का अनुभव कर सकता है |
हम सभी एकान्त का अनुभव करें, अकेलेपन का नहीं, क्योंकि अकेलापन एक पीड़ादायक अहसास है – जबकि एकान्त में हम स्वयं के प्रति जागरूक होकर स्वयं के सान्निध्य का सुख अनुभव करते हैं…
__________________डॉ पूर्णिमा शर्मा